यह ब्लॉग खोजें

रविवार, 7 जून 2009

क्या करूँ मेरे मना....... गीत

suniye
क्या करूँ मेरे मना....... गीत

क्या करूँ , मै क्या करूँ मेरे मना
दिल नहीं लगता है,रहता अनमना।

ऐसा लगता,भागते रहने से
सब कुछ खो रहा है
जिंदगी के गीत गाये साथ साथ
अब खुशी के साथ भी कुछ हो रहा है।
दिल नहीं लगता है ,रहता अनमना
क्या करूँ मै क्या करूँ मेरे मना ।

ठहरना ,चलना,ठिठकना, याद रखना भूलना
शुष्क ॠतुओं मे उपजना,लहलहाना
और फलना फूलना
आए मौसम जब बहारों का
मुस्कराने ,मचलने और श्रृगारों का
भूलकर होती नहीँ है कल्पना ।
क्या करूँ मै क्या करूँ मेरे मना
दिल नहीं लगता है रहता अनमना ।

क्या अधेंरी रात का आकाश या तारा बनूँ
बादलों बरसात की एक बूँद ,जल सारा बनूँ
या कि सागर झील का मोती रहूँ
सीप में पलते हुए संसार का कारा बनूँ
पीर हरने का सहारा जन्मना.
दिल नहीं लगता है रहता अनमना ।

क्या करूँ मै क्या करूँ मेरे मना
दिल नहीं लगता है रहता अनमना ।

कमलेश कुमार दीवान
०१ मई २००६