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बुधवार, 14 अक्तूबर 2009

दो कदम साथ हो ले

दो कदम साथ हो ले

ये तन्हाईयाँ भी
डराने लगी हैं
मेरे हमसफर ,दो कदम साथ हो ले ।

बहुत पास थे ,रास्ते
मुड़ के देखा
कदम दो मिलाते
तो मँजिल ही होती

कई खौफ थे जिनसे
डरते रहे हम
नकाबों,लिबासों में
मरते रहे हम
बड़े सपने आँखों मे
बसते गये थे
बही आज फिर भय
सजाने लगी हैं
ये तन्हाईयाँ भी
डराने लगी हैं
मेरे हमसफर दो कदम साथ हो लें ।
कमलेश कुमार दीवान

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