""शिक्षक दिवस के अवसर पर विद्यार्थियो को पत्र""
##पाठशालाओं की तरफ लौटौ मेरे बच्चौ ##
मेरे प्रिय विद्यार्थियो
आज शिक्षक दिवस है मेरे जीवन के 29 वर्ष आपके साथ बीत गये।आप सभी ने स्नेह दिया सम्मान दिया ।
आप सभी ने ज्ञान प्राप्त कर अपनी अपनी दुनियाँ बनाई मेरे लिये स्कूल पाठशालाये या शिक्षण संस्थानईट गारे मिट्टी या सीमेंट काँक्रीट से बनाई गई दीवारे या खपरैल भर नहीं है इनमे अपने समय की जीवंतताँये है। पाठशालायें समय के साथ हमारे आसपाश और हमसे सटकर होने वाली घटनाओं का जीवंत दस्तावेज हैं जो दृश्य संसार मे कभी न कभि व्यक्त होता ही है ।
हमने अभावो मे भी तुम्हे भरपूर ज्ञान दिया। जीवन जीने का ,व्यवहारिक पाठ पढ़ाया ।आपने ,समाज ने भरपूर सम्मान दिया ।सरकारो ने विद्यार्थियो के हित मे दिये गये सूझावो को लागू किया हम आभारी हैं। धन्यवाद ।
इस पत्र के माध्यम से यह कहना चाहते है कि ##विद्यार्थी शिक्षक समाज और लोकतँत्र एक दूसरे के पूरक है ।शिक्षक एक प्लेटफार्म है जहाँ से कक्षा रुपी रेलगाड़ियाँ धड़धड़ाती हुई निकलती जाती है पर उस प्लेटफार्म की खूबसुरती को एकाद विद्यार्थी ही निहारता और समझ पाता है।##
आपने कभी सोचा है कि समूची दुनियां मे कितावो का अंबार लगा होने के बाद भी शिक्षक क्यो जरूरी है ? मै समझता हूँ कि ज्ञान देने वाली किताबे हमारे दरवाजे पर लगा हुआ एक बड़ा ताला है और शिक्षक उसकी चावी है जब हम चावी का उपयोग करते है तब ज्ञान के कपाट खुलते है ।इसलिये शिक्षक की आवश्यकता है।
मेरे बच्चो अपने स्कूलो की तरफ लौटकर देखो वे अब वैसे नही रहे है ।सामाजिक माहौल पुर्ववत् नही रह गया है। शैक्षिक प्रशासन लोकताँत्रिक नही रह गया है । सब कुछ बदल गया है किन्तु हमारे शिक्षक कमोवेश परिवर्तनो के बाबजूद वेसे ही अपने दायित्वो का निर्वहन कर रहे है ।
आपकी पाठशालाये अब भोजन शालाओ मे बदल चुकी है ।पढ़ने वाले मेधावी विद्यार्थियौ के स्थान पर कक्षाओं मे पुस्तक न बाँच सकने वाले विद्यार्थी निकल रहे है । हमारे देश मे आजादी लोकतंत्र की बयार मे पाठशालाओं, शिक्षको, विद्यार्थियों का अनिवर्णनीय योगदान है । बच्चौ ने ही तिरँगे फहराये है अपनी पीठ से क्रान्ति की सूचना वाले पोस्टर चिपकाये है ।शिक्षको ने आजादी के गीत गाँव गाँव फैलाये है। हमारी पाठशालाओं की दरो दीवार और दरीचे इसके मूक गवाह है ।
आपको यह पता हो कि अमेरिका के स्व.राष्ट्रपति अब्राहिम लिंकन जी के पत्र की हमारे देश मे चर्चा होती है पर हमारे देश मे शिक्षको के पत्रो और प्रतिवेदनो की कोई बात नही की जाती है यह कितना दुखद है। शिक्षा के भव्य कार्यालय आनन फानन मे खड़े कर दिये जाते है किन्तू पुर्व मे देशवाशियो व्दारा दान की जमीनो पर एकत्रित धन से निर्मित पाठशालाओ के भवन दरकते हुये जर्जर खड़े रहते है ।आज प्रशासन हर कार्य शिक्षको से ही करवाने की जुगत मे लगा रहता है और मंशा यह है कि शिक्षको के खुन से बिजली भी बना ली जावे उनसे मध्याँन्ह भोजन के वर्तन मंजवाये जावें उनसे ही टायलेट साफ करवाये जावे ।मैला धुलवाया जावे ।गंदगी साफ करायी जावे ।
मेरे बच्चो पढ़ लिखकर डाक्टर इंजीनियर वैज्ञानिक और कूशल कारीगर बनो पर ऐसी मशीनो की ईजाद करना जो हमारे कार्य को आसान बनाये जिससे हम समाज और संसार को बदल सके । तुम संहार करने बाले अस्त्र शस्त्रो को तरजीह मत देना मेरा अनुरौध है कि ऐसे ायध निर्मित करना जिससे फेकें गये परमाणु बम का प्रभाव पल भर मे शून्य हो जावे ।हमे इस संसार से भूख मिटाना है गरीबी दूर करना है तुम ऐसा एँटिना बनाना जिसके व्दारा सीधे सौर्य उर्जा से जीव मात्र भिजन प्राप्त कर अपनी भूख मिटा सके । साफ सफाई के लिये स्वचालित यंत्र बनाना ।मौसम को मनोनुकूल बनाने के लिये वैज्ञानिक कवायद करना जिससे हवा पानी बादल बरसात बेहतर हो । ऐसि तकनीकी विकसित करना जिसके एक कण से अगणित वर्ष बाहन चलता रहे ऐसा रसायन बनाना जो नुकसान पहुँचाते रसायनो को शुध्द कर परिशोधित कर सके ।
मेरे बच्चो चहँऔर ऐसा वातावरण बनाना जिसमे मानव करूणा प्रेम दया ममता जैसे शाश्वत मानवीय मूल्यो से ओत प्रोत रहे ताकि यह दुनियां तन मन से स्वस्थ रहे अर्थात् संरचना करना जिससे यह सृष्टि निरंतरता को प्राप्त हो सके ।
शिक्षक दिवस पर विद्यार्थियो की दुनियाँ प्रकाशवान बने मेरे बच्चो आपके अंदर जितना भी अँधेरा है वह सब मुझे सौपकर उजाले की और बढ़ो यह दुनियाँ तुम्हारा इंतजार कर रही है।
""आप कहीं भी रहो "अपने स्कूलो की तरफ लौटो ,उन्हे देखो उन्हे अपनाओ मेरे बच्चौ आज भी तुम्हे उन पाठशालाओ की जरूरत है जहाँ से पाठ पढ़ते हये दुनियां मे ऊँचाई पर पहुँचे हो।समुन्दर को मापने के पैमाने पाठशालाओ के बगैर कितने कितने अधूरे है ।बच्चौ तुम सुन रहे हो न "। अब कोई शिक्षक नही बनना चाहता है ।
यह गीत टिमरनी जिला होशँगाबाद म.प्र.मे सन् 1989 ..90 मे विद्यार्थियो को प्रेरणा हेतु लिखा था ।हमे आशाओं के सृजन का यह गीत गाते रहना है आपको समर्पित है आशाओं के सृजन का गीत
ओ सूरज
ओ सूरज तुम हटो ,मुझे भी
आसमान मे आना है
पँख लगा उड़ जाना है ।
पँख लगा उड़ जाना है ।
चाहे अँधियारे घिर आएँ
सिर फोड़े तूफान
मेरी राह नहीं आयेगें
नदियों के उँचे ऊफान
ओ चँदा तुम किरन बिखेरों
तारों मे छिप जाना है ।
पँख लगा उड़ जाना है।
ओ सूरज तुम हटो, मुझे भी
आसमान मे आना है
पँख लगा उड़ जाना है ।
यह गीत टिमरनी जिला होशँगाबाद म.प्र.मे सन् 1989 ..90 मे विद्यार्थियो को प्रेरणा हेतु लिखा था ।हमे आशाओं के सृजन का यह गीत गाते रहना है आपको समर्पित है
कमलेश कुमार दीवान
शुभकामनाये सहित
कमलेश कुमार दीवान
प्राचार्य एवम् लेखक
होशंगाबाद म.प्र.
5 सितम्बर 2015
kamleshkumardiwan.blogspot.com
##पाठशालाओं की तरफ लौटौ मेरे बच्चौ ##
मेरे प्रिय विद्यार्थियो
आज शिक्षक दिवस है मेरे जीवन के 29 वर्ष आपके साथ बीत गये।आप सभी ने स्नेह दिया सम्मान दिया ।
आप सभी ने ज्ञान प्राप्त कर अपनी अपनी दुनियाँ बनाई मेरे लिये स्कूल पाठशालाये या शिक्षण संस्थानईट गारे मिट्टी या सीमेंट काँक्रीट से बनाई गई दीवारे या खपरैल भर नहीं है इनमे अपने समय की जीवंतताँये है। पाठशालायें समय के साथ हमारे आसपाश और हमसे सटकर होने वाली घटनाओं का जीवंत दस्तावेज हैं जो दृश्य संसार मे कभी न कभि व्यक्त होता ही है ।
हमने अभावो मे भी तुम्हे भरपूर ज्ञान दिया। जीवन जीने का ,व्यवहारिक पाठ पढ़ाया ।आपने ,समाज ने भरपूर सम्मान दिया ।सरकारो ने विद्यार्थियो के हित मे दिये गये सूझावो को लागू किया हम आभारी हैं। धन्यवाद ।
इस पत्र के माध्यम से यह कहना चाहते है कि ##विद्यार्थी शिक्षक समाज और लोकतँत्र एक दूसरे के पूरक है ।शिक्षक एक प्लेटफार्म है जहाँ से कक्षा रुपी रेलगाड़ियाँ धड़धड़ाती हुई निकलती जाती है पर उस प्लेटफार्म की खूबसुरती को एकाद विद्यार्थी ही निहारता और समझ पाता है।##
आपने कभी सोचा है कि समूची दुनियां मे कितावो का अंबार लगा होने के बाद भी शिक्षक क्यो जरूरी है ? मै समझता हूँ कि ज्ञान देने वाली किताबे हमारे दरवाजे पर लगा हुआ एक बड़ा ताला है और शिक्षक उसकी चावी है जब हम चावी का उपयोग करते है तब ज्ञान के कपाट खुलते है ।इसलिये शिक्षक की आवश्यकता है।
मेरे बच्चो अपने स्कूलो की तरफ लौटकर देखो वे अब वैसे नही रहे है ।सामाजिक माहौल पुर्ववत् नही रह गया है। शैक्षिक प्रशासन लोकताँत्रिक नही रह गया है । सब कुछ बदल गया है किन्तु हमारे शिक्षक कमोवेश परिवर्तनो के बाबजूद वेसे ही अपने दायित्वो का निर्वहन कर रहे है ।
आपकी पाठशालाये अब भोजन शालाओ मे बदल चुकी है ।पढ़ने वाले मेधावी विद्यार्थियौ के स्थान पर कक्षाओं मे पुस्तक न बाँच सकने वाले विद्यार्थी निकल रहे है । हमारे देश मे आजादी लोकतंत्र की बयार मे पाठशालाओं, शिक्षको, विद्यार्थियों का अनिवर्णनीय योगदान है । बच्चौ ने ही तिरँगे फहराये है अपनी पीठ से क्रान्ति की सूचना वाले पोस्टर चिपकाये है ।शिक्षको ने आजादी के गीत गाँव गाँव फैलाये है। हमारी पाठशालाओं की दरो दीवार और दरीचे इसके मूक गवाह है ।
आपको यह पता हो कि अमेरिका के स्व.राष्ट्रपति अब्राहिम लिंकन जी के पत्र की हमारे देश मे चर्चा होती है पर हमारे देश मे शिक्षको के पत्रो और प्रतिवेदनो की कोई बात नही की जाती है यह कितना दुखद है। शिक्षा के भव्य कार्यालय आनन फानन मे खड़े कर दिये जाते है किन्तू पुर्व मे देशवाशियो व्दारा दान की जमीनो पर एकत्रित धन से निर्मित पाठशालाओ के भवन दरकते हुये जर्जर खड़े रहते है ।आज प्रशासन हर कार्य शिक्षको से ही करवाने की जुगत मे लगा रहता है और मंशा यह है कि शिक्षको के खुन से बिजली भी बना ली जावे उनसे मध्याँन्ह भोजन के वर्तन मंजवाये जावें उनसे ही टायलेट साफ करवाये जावे ।मैला धुलवाया जावे ।गंदगी साफ करायी जावे ।
मेरे बच्चो पढ़ लिखकर डाक्टर इंजीनियर वैज्ञानिक और कूशल कारीगर बनो पर ऐसी मशीनो की ईजाद करना जो हमारे कार्य को आसान बनाये जिससे हम समाज और संसार को बदल सके । तुम संहार करने बाले अस्त्र शस्त्रो को तरजीह मत देना मेरा अनुरौध है कि ऐसे ायध निर्मित करना जिससे फेकें गये परमाणु बम का प्रभाव पल भर मे शून्य हो जावे ।हमे इस संसार से भूख मिटाना है गरीबी दूर करना है तुम ऐसा एँटिना बनाना जिसके व्दारा सीधे सौर्य उर्जा से जीव मात्र भिजन प्राप्त कर अपनी भूख मिटा सके । साफ सफाई के लिये स्वचालित यंत्र बनाना ।मौसम को मनोनुकूल बनाने के लिये वैज्ञानिक कवायद करना जिससे हवा पानी बादल बरसात बेहतर हो । ऐसि तकनीकी विकसित करना जिसके एक कण से अगणित वर्ष बाहन चलता रहे ऐसा रसायन बनाना जो नुकसान पहुँचाते रसायनो को शुध्द कर परिशोधित कर सके ।
मेरे बच्चो चहँऔर ऐसा वातावरण बनाना जिसमे मानव करूणा प्रेम दया ममता जैसे शाश्वत मानवीय मूल्यो से ओत प्रोत रहे ताकि यह दुनियां तन मन से स्वस्थ रहे अर्थात् संरचना करना जिससे यह सृष्टि निरंतरता को प्राप्त हो सके ।
शिक्षक दिवस पर विद्यार्थियो की दुनियाँ प्रकाशवान बने मेरे बच्चो आपके अंदर जितना भी अँधेरा है वह सब मुझे सौपकर उजाले की और बढ़ो यह दुनियाँ तुम्हारा इंतजार कर रही है।
""आप कहीं भी रहो "अपने स्कूलो की तरफ लौटो ,उन्हे देखो उन्हे अपनाओ मेरे बच्चौ आज भी तुम्हे उन पाठशालाओ की जरूरत है जहाँ से पाठ पढ़ते हये दुनियां मे ऊँचाई पर पहुँचे हो।समुन्दर को मापने के पैमाने पाठशालाओ के बगैर कितने कितने अधूरे है ।बच्चौ तुम सुन रहे हो न "। अब कोई शिक्षक नही बनना चाहता है ।
यह गीत टिमरनी जिला होशँगाबाद म.प्र.मे सन् 1989 ..90 मे विद्यार्थियो को प्रेरणा हेतु लिखा था ।हमे आशाओं के सृजन का यह गीत गाते रहना है आपको समर्पित है आशाओं के सृजन का गीत
ओ सूरज
ओ सूरज तुम हटो ,मुझे भी
आसमान मे आना है
पँख लगा उड़ जाना है ।
पँख लगा उड़ जाना है ।
चाहे अँधियारे घिर आएँ
सिर फोड़े तूफान
मेरी राह नहीं आयेगें
नदियों के उँचे ऊफान
ओ चँदा तुम किरन बिखेरों
तारों मे छिप जाना है ।
पँख लगा उड़ जाना है।
ओ सूरज तुम हटो, मुझे भी
आसमान मे आना है
पँख लगा उड़ जाना है ।
यह गीत टिमरनी जिला होशँगाबाद म.प्र.मे सन् 1989 ..90 मे विद्यार्थियो को प्रेरणा हेतु लिखा था ।हमे आशाओं के सृजन का यह गीत गाते रहना है आपको समर्पित है
कमलेश कुमार दीवान
शुभकामनाये सहित
कमलेश कुमार दीवान
प्राचार्य एवम् लेखक
होशंगाबाद म.प्र.
5 सितम्बर 2015
kamleshkumardiwan.blogspot.com
bhut achhi baat khi hai
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