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गुरुवार, 22 जनवरी 2015

मै चलता रहा

मै चलता रहा

मै चलता रहा अजनवी रास्तो से
गजब क्या हुआ ,मेरी मंजिल ही आई

मेरा वास्ता रहनुमाई से ही था
करूँ क्या वयाँ जगहँसाई से ही था
कदम दर कदम लोग मिलते गये है
बना कारबाँ ही अजब हादसो से।

मै चलता रहा अजनबी रास्तो से ...।

मुझे भी तलाशा गया हाशियों मे
अकेला खड़ा रह गया साथियों मे
हर एक खाने मे टुकड़े टुकड़े हुआ हूँ
मिला कतरा कतरा मै उन बस्तियों मै।

मै चलता रहा अजनबी रास्तो से ...।

कमलेश कुमार दीवान
अप्रेल १९९१
mob.no.9425642458
email...kamleshkumardiwan@gmail.com