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रविवार, 3 सितंबर 2017

तुमसे क्या छिपायें

"आजादी के बाद मेरे देश मे संसदीय लोकतंत्र और बहुत बाद मे स्थानीय स्वशासन एवं पंचायती राज प्रणाली
अपनाई गई पर इस प्रकार की दोहरी तिहरी शासन प्रशासन प्रणाली से भी आजादी के समय स्वतंत्रता सेनानियो के सपनो को पूर्ण नही कर पाये है देश की अर्थव्यवस्था पर बौझ बढ़ा लोकतात्रिक संस्थाऐ एक दूसरे से पृथक कर दि गई आम चुनाव बहुत महंगे हुये सहिष्णुता भाईचारा सब कुछ तिरोहित हो गया हम नेतृत्व से बहुत आशा करते है किन्तू वह प्रशासनिक व्यवस्थाओ मे कोई सुधार नही होने के कारण मजबूर हो गये है नेतृत्व से जन अपेक्षाओं के संदर्भ मे यह गीत  प्रस्तूत है ...

लोकतंत्र का नया गान ......

 "तुमसे क्या छिपायें"

नित नये नारे ,नए उदघोष ,नव आंकाँछाएँ
हो नही सकती कभी पूरी
 ये तुमसे क्या छिपाएँ  ।

देश का इतना बड़ा,कानून है
भूख पर जिसका असर ,होता नहीं
मूल्य बदले दलदलो ने भी
क्राँति जैसे जलजलों का
अब असर होगा नहीं
और नुस्खे आजमायें ।
ये तुमसे क्या छिपाएँ।

अरगनी खाली ,तबेले बुझ रहे हैं
छातियों में उग आये स्वप्न सारे
जंगलों से जल रहे है्
तानकर ही मुट्ठियों को क्या करेगें
ध्वज पताकाएँ उठाने मे मरेगें
तालियाँ भी इस हथेली से नहीं बजती
ढोल कैसे बजाएँ।
तुमसे क्या छिपाएँ।
   
कमलेश कुमार दीवान
लेखक
होशंगाबाद म.प्र.
kamleshkumardiwan.youtube.com