प्रार्थनाओ के युगों में..मीत मेरे
प्रार्थनाओं के युगो मे
मीत मेरे,
तुम हमारे साथ मिलकर
गुनगुनाओ ,गीत गाओ ।
बीज वोये थे सृजन के
आज अँकुराने लगे हैं
कारवाँ को रोककर
ये रास्ते जाने लगे हैं
मँजिले है दूर उनके
सिलसिले भर रह गये हैं
अर्हताओं के युगो में
मीत मेरे
तुम हवा के साथ मिलकर
खुद ही खुद ही गाना सीख जाओ ।
प्रार्थनाओं के युगों मे
मीत मेरे
तुम हमारे साथ मिलकर
गुनगुनाओ,गीत गाओ ।
प्रार्थनाएँ की अहिल्या ने
युगों से ठुकराई वही नारी बनी थी
प्रार्थना से भिल्लनी..शबरी
भक्ति पथ की सही अधिकारी बनी थी
प्रार्थनाएँ दुःखों के संहार की थी
प्रार्थनाएँ एक नये अवतार की थी
प्रार्थनाओं से हम बनाते राम
वही फिर दुःख भोगता,अभिषाप ढोता है
वर्जनाओ के युगो मे
मीत मेरे
तुम हमारे साथ मिलकर बीत जाओ।
प्रार्थनाओ के युगो मे
तुम हमारे साथ मिलकर
गुनगुनाओ, गीत गाओ ।
कमलेश कुमार दीवान
०२ अप्रेल ०६
I am writer,poet and retired principle higher secondary government school for more than 33 years. Published articles in news paper through Sarvodaya press service, Indore .Naiduniya Jansatta ,and others.my poems got published in Samkaleen Bhartiya Saahitya NewDelhi,Uttaraardh,Akshat,Kala-kalash etc.
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गुरुवार, 6 अगस्त 2009
छोटे छोटे हाशियाँ
छोटे छोटे हाशियाँ
छोटे छोटे हाशियाँ है
कितनी बड़ी जमात,
जात पाँत के खाने बढते
घटती गई समात।
कागज पत्तर दौड़ रहे हैं
बड़े बड़े गिनतारे ले
घूमे राम रहीमा चाचा
बड़े चढे गुणतारे ले
सड़के और मदरसे होंगे
गाँव गाँव की दूरी पर
नहीं रखेगा कोई किसी को
फोकटिया मजदूरी पर
साहूकार नही हाँकेगा
रेबड़ अपने ढोरों की
यह सरकार बनी है अपनी
नही चलेगी औरों की
समझाये पर कौन क्या हुआ
सब अग्रेजी भाषा मे
लुटते रहे पतंगों जैसे
आसमान की आशा मे
बड़े बड़े सपने है भैया
छोटी छोटी मात ।
जाति पाँति के खाने बढते
घटती गई समात।
कमलेश कुमार दीवान
९ मार्च १९९४
छोटे छोटे हाशियाँ है
कितनी बड़ी जमात,
जात पाँत के खाने बढते
घटती गई समात।
कागज पत्तर दौड़ रहे हैं
बड़े बड़े गिनतारे ले
घूमे राम रहीमा चाचा
बड़े चढे गुणतारे ले
सड़के और मदरसे होंगे
गाँव गाँव की दूरी पर
नहीं रखेगा कोई किसी को
फोकटिया मजदूरी पर
साहूकार नही हाँकेगा
रेबड़ अपने ढोरों की
यह सरकार बनी है अपनी
नही चलेगी औरों की
समझाये पर कौन क्या हुआ
सब अग्रेजी भाषा मे
लुटते रहे पतंगों जैसे
आसमान की आशा मे
बड़े बड़े सपने है भैया
छोटी छोटी मात ।
जाति पाँति के खाने बढते
घटती गई समात।
कमलेश कुमार दीवान
९ मार्च १९९४