हमे कुछ करना चाहिये
जब भी हम उदास होते हैं
अपने हालात पर लिखते हैं,कविताएँ
गाते गुनगुनाते है,कोई मनपसंद गीत
या फिर चलते चले जाते है उस ओर
जहाँ रास्तो मे मंजिले नही होती
नहीं होते है घर,शोर मचाते बच्चे
लोरियाँ सुनाती धाँय माँ,
कहानियाँ कहती दादी नानी
किस्से हाँकते बाबा और बचपन के दिन
सब पास और अधिक पास आ जाते हैं
तब लगता है ,हमे कुछ करना चाहिये ।
हम जो चाहते हैं वह यही है कि.....
नदियाँ तालाब पोखर या समुंदर के किनारे जाएँ
फेके उनमे पतली चिप्पियाँ और छपाक उछलती कूद गिनें
कुये के पाट पर जाये ,उनमे ढूँके,बोम मारे
फैक दे बड़ी सी ईट और सुने धमाक।
अमियाँ तोड़े या डाली
या पेड़ों पर चढकर झूले और कूद पड़े
बागों से चुने फूल या निहारे खूबसूरती
माली की प्रशंसा मे गीत लिखे या खाये गाली
सच तो यही है कि हम
करना चाहते बही सब कुछ जो करते रहे है पर
ओहदों की याद,शहर की आदतें और
उत्तर आधुनिक समय
हाँक रहा होता है हमें
तब लगता है
हमे कुछ और करना चाहिये
उनमे से कुछ होती है..
बड़े होते बच्चों पर झिड़कियाँ
नौकरी पर जाती औरतो पर फिकरे
खाँसते..खखारते पिता पर ताने और
बर्तन माँजती माँ..बीबी पर टिप्पणियाँ
भाई बहन के लिये उलाहनें
बचे हुये लोगो के लिये लानत ..मनालत
हम यही सब तो करते हैं
जो नहीं करना चाहिये ,फिर भी.
क्या हमे कुछ करना चाहिये ?
कमलेश कुमार दीवान
१७ अप्रेल २००५
I am writer,poet and retired principle higher secondary government school for more than 33 years. Published articles in news paper through Sarvodaya press service, Indore .Naiduniya Jansatta ,and others.my poems got published in Samkaleen Bhartiya Saahitya NewDelhi,Uttaraardh,Akshat,Kala-kalash etc.
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बुधवार, 8 दिसंबर 2010
बुधवार, 3 नवंबर 2010
दीपावली के मंगलमय पर्व पर
दीपावली के मंगलमय पर्व पर आप सभी को शुभ हो ,स्वरचित पक्तियाँ
सादर प्रस्तुत है.......
आलोकित हो गये
तिमिर पथ
लघु विस्तृत
आकाश और वृत
प्रमुदित प्राण
अर्थ अर्पित है
दीप.. दीप का पर्व
मंगलकामनाओं सहित
कमलेश कुमार दीवान
दीपावली 1983
सादर प्रस्तुत है.......
आलोकित हो गये
तिमिर पथ
लघु विस्तृत
आकाश और वृत
प्रमुदित प्राण
अर्थ अर्पित है
दीप.. दीप का पर्व
मंगलकामनाओं सहित
कमलेश कुमार दीवान
दीपावली 1983
शुक्रवार, 8 अक्तूबर 2010
।।करें बँदना मैया तोरी ।।
।।करें बँदना मैया तोरी ।।
करें बँदना
मैया तोरी ।
रहे सब सुखी
हो समृध्दशाली,
बहू बेटियाँ
हों सौभाग्य वाली।
यही अर्चना
मैया मोरी ।
करे बँदना मैया तौरी।
करे कामना जो
माँ शेरों वाली
तेरे दर से कोई न
जा पाये खाली
यही प्रार्थना है
मैया मोरी ।
करे बँदना ,मैया तोरी ।
कमलेश कुमार दीवान
अध्यापक एवम् लेखक
24/09/2009
होशंगाबाद म.प्र. मो.91+9425642458
email..kamleshkumardiwan.yahoo.com
करें बँदना
मैया तोरी ।
रहे सब सुखी
हो समृध्दशाली,
बहू बेटियाँ
हों सौभाग्य वाली।
यही अर्चना
मैया मोरी ।
करे बँदना मैया तौरी।
करे कामना जो
माँ शेरों वाली
तेरे दर से कोई न
जा पाये खाली
यही प्रार्थना है
मैया मोरी ।
करे बँदना ,मैया तोरी ।
कमलेश कुमार दीवान
अध्यापक एवम् लेखक
24/09/2009
होशंगाबाद म.प्र. मो.91+9425642458
email..kamleshkumardiwan.yahoo.com
मंगलवार, 21 सितंबर 2010
नावों के लिये
नावों के लिये
इन पालदार नावो के लिये
नदियाँ होनी चाहिये
नदियों के लिये जल
जल के लिये पेड़
और
पेड़ो के लिये पहाड़
पहाड़ बनने के युग
कभी कभी ही आते है
पैड़ उगाने के मौसम हर वरस,
पौधा रोपने वाले नही देखते गर्मी,
काटने वाले कहाँ देखते है सर्दी..बरसात
जहाँ वन होना चाहिये वहाँ नही है पेड़
जहाँ जल होना चाहिये वहाँ नहीं है नदियाँ
नावे अब जहाज हो गई है
उनके पाल अब नहीं बचे हैं।
कमलेश कुमार दीवान
21/07/06
इन पालदार नावो के लिये
नदियाँ होनी चाहिये
नदियों के लिये जल
जल के लिये पेड़
और
पेड़ो के लिये पहाड़
पहाड़ बनने के युग
कभी कभी ही आते है
पैड़ उगाने के मौसम हर वरस,
पौधा रोपने वाले नही देखते गर्मी,
काटने वाले कहाँ देखते है सर्दी..बरसात
जहाँ वन होना चाहिये वहाँ नही है पेड़
जहाँ जल होना चाहिये वहाँ नहीं है नदियाँ
नावे अब जहाज हो गई है
उनके पाल अब नहीं बचे हैं।
कमलेश कुमार दीवान
21/07/06
सोमवार, 6 सितंबर 2010
भजन ःः मेरो मन न अंत को पावे (स्वरचित)
॥श्री गणेशाय नमः॥
भजन ःः मेरो मन न अंत को पावे
मेरो मन न
अंत को पावे ।
मेरो मन न अंत को पावे।
कोटि कोटि
ब्रम्हाण्ड रचियता
नित नवीन उपजावे ।
मेरो मन न, अंत को पावे ।
लोग कहत
उजियार जगत् में
जित देखा तम है,
एक सूरज से
क्या होता है
कई करोड़ कम हैं ।
टिम टिमाते
तारे.... तारे से
बार बार भरमावे ।
जगा जोत सम लागे।
मेरा मन न, अंत को पावे।
जो दीखें न
अँधकार है
तब प्रकाश भ्रम है
भरम मिटे न
इस दुनियाँ का
आदि ... अनादि क्रम है।
तृण.... तृण
अनंत हो जावे ।
मेरो मन न, अंत को पावे ।
कमलेश कुमार दीवान
गणेश चतुर्थी रविवार
दिनाँक २३ अगस्त २००९
भजन ःः मेरो मन न अंत को पावे
मेरो मन न
अंत को पावे ।
मेरो मन न अंत को पावे।
कोटि कोटि
ब्रम्हाण्ड रचियता
नित नवीन उपजावे ।
मेरो मन न, अंत को पावे ।
लोग कहत
उजियार जगत् में
जित देखा तम है,
एक सूरज से
क्या होता है
कई करोड़ कम हैं ।
टिम टिमाते
तारे.... तारे से
बार बार भरमावे ।
जगा जोत सम लागे।
मेरा मन न, अंत को पावे।
जो दीखें न
अँधकार है
तब प्रकाश भ्रम है
भरम मिटे न
इस दुनियाँ का
आदि ... अनादि क्रम है।
तृण.... तृण
अनंत हो जावे ।
मेरो मन न, अंत को पावे ।
कमलेश कुमार दीवान
गणेश चतुर्थी रविवार
दिनाँक २३ अगस्त २००९
बुधवार, 25 अगस्त 2010
सावन आये रे सावन आये रे....
सावन आये रे
सावन आये रे....
बादल बिजुरी और हवायें
घिर आये घनघोर घटाएँ
घन बरसाएँ रे...
सावन आये रे....।
सरवन के कच्चे धागों से
बहना करे श्रृंगार भाई का
जग जाने भारत की रीति
मूल्य जाने बहना कलाई का
सब मन भाये रे.....
सावन आये रे ...।
कमलेश कुमार दीवान
24/08/2010
होशंगाबाद म.प्र.
सावन आये रे....
बादल बिजुरी और हवायें
घिर आये घनघोर घटाएँ
घन बरसाएँ रे...
सावन आये रे....।
सरवन के कच्चे धागों से
बहना करे श्रृंगार भाई का
जग जाने भारत की रीति
मूल्य जाने बहना कलाई का
सब मन भाये रे.....
सावन आये रे ...।
कमलेश कुमार दीवान
24/08/2010
होशंगाबाद म.प्र.
गुरुवार, 19 अगस्त 2010
सावन झूले पड़े भाई परदेश मे,
सावन झूले पड़े
सावन झूले पड़े
भाई परदेश मे,
कैसे जश्न मनाएँ
जायें देश मे।
माँ ने सोचा
पिता आयेगें
पर वो गये नौकरी ,
भुआ आयेगी
राखी लेकर
पर हो गई डोकरी ।
बूढा बूढी
बच्चा बच्ची
युवा किशोरी
सव ही नये परिवेश में
छौड़ गये सब तैश मे ,
कैसे जश्न मनाये
जायें देश मे ।
सावन झूले पड़े
भाई परदेश मे
कैसे जश्न मनाये
जाये देश मे ।
कमलेश कुमार दीवान
२अगस्त २००९
सावन झूले पड़े
भाई परदेश मे,
कैसे जश्न मनाएँ
जायें देश मे।
माँ ने सोचा
पिता आयेगें
पर वो गये नौकरी ,
भुआ आयेगी
राखी लेकर
पर हो गई डोकरी ।
बूढा बूढी
बच्चा बच्ची
युवा किशोरी
सव ही नये परिवेश में
छौड़ गये सब तैश मे ,
कैसे जश्न मनाये
जायें देश मे ।
सावन झूले पड़े
भाई परदेश मे
कैसे जश्न मनाये
जाये देश मे ।
कमलेश कुमार दीवान
२अगस्त २००९
रविवार, 15 अगस्त 2010
tiranga ke liye geet
तिरंगा गीत
हरी भरी धरती हो नीला आसमान रहे
फहराता तिरंगा चाँद तारों के समान रहे।
त्याग शूरवीरता महानता का मन्त्र है
मेरा यह देश एक अभिनव गणतन्त्र है।
शान्ति अमन चैन रहे खुशहाली छाए
बच्चों को बूढों को सबको हर्षाए
सबके चेहरों पर फैली मुसकान रहे।
लहराता तिरंगा चाँद तारों के समान रहे.
कमलेश कुमार दीवान
होशंगाबाद म.प्र.
हरी भरी धरती हो नीला आसमान रहे
फहराता तिरंगा चाँद तारों के समान रहे।
त्याग शूरवीरता महानता का मन्त्र है
मेरा यह देश एक अभिनव गणतन्त्र है।
शान्ति अमन चैन रहे खुशहाली छाए
बच्चों को बूढों को सबको हर्षाए
सबके चेहरों पर फैली मुसकान रहे।
लहराता तिरंगा चाँद तारों के समान रहे.
कमलेश कुमार दीवान
होशंगाबाद म.प्र.
गुरुवार, 10 जून 2010
मेघ गीत मेघ बरसो रे
मेघ गीत मेघ बरसो रे
मेघ बरसो रे
प्यासे देश,
बहां सब रीत गये ।
ताल तलैया ,नदियाँ सूखी
रीता हिया का नेह
मेघ बरसो रे पिया के देश ...
बहाँ सब बीत गये ।
कुम्लाऍ है
कमल कुमुदनी
घास पात और देह
उड़ उड़ टेर लगाये पपीहा
होते गये विदेह ।
मेघ हर्षो रे
प्यासे देश
यहाँ सब रीत गये ।
मेघ बरसो रे
पिया के देश
बहाँ सब रीत गये ।
कमलेश कुमार दीवान
दिनाँक २३अगस्त २००९
मेघ बरसो रे
प्यासे देश,
बहां सब रीत गये ।
ताल तलैया ,नदियाँ सूखी
रीता हिया का नेह
मेघ बरसो रे पिया के देश ...
बहाँ सब बीत गये ।
कुम्लाऍ है
कमल कुमुदनी
घास पात और देह
उड़ उड़ टेर लगाये पपीहा
होते गये विदेह ।
मेघ हर्षो रे
प्यासे देश
यहाँ सब रीत गये ।
मेघ बरसो रे
पिया के देश
बहाँ सब रीत गये ।
कमलेश कुमार दीवान
दिनाँक २३अगस्त २००९
गुरुवार, 3 जून 2010
कल क्या हो ?
पृथ्वी दिवस केअवसर पर गीत
कल क्या हो ?
कोई मुझसे पूछे ,
कल क्या हो ?
मैं कहता ,यह संसार रहे ।
हम रहें ,न रहें
फिर भी तो
घूमेगी दुनियाँ इसी तरह।
चमकेगा आसमान सारा
नदियाँ उमड़ेगी उसी तरह।
ये सात समुंदर, बचे रहें
कोई व्दीप न डूबें
सागर में,
सब कुछ बिगड़े
पर थोड़ा सा
जल बचा रहे
इस गागर मे।
सब कुछ तो
खत्म नहीं होता
जो बचा आपसी प्यार रहे
कोई मुझसे पूछे
कल क्या हो
मे कहता हूँ ,संसार रहे ।
कमलेश कुमार दीवान
नोटःःप्राकृतिक पर्यावरण के केन्द्र मे मानव है।जलवायु परिवर्तनशील तत्वो का
समुच्य है।परिवर्तन होते रहें हैं और होंगें,परन्तु हमे आशाओं का सृजन
करना चाहिये।संसार की आबादियो को यह गीत सादर समर्पित है।
कल क्या हो ?
कोई मुझसे पूछे ,
कल क्या हो ?
मैं कहता ,यह संसार रहे ।
हम रहें ,न रहें
फिर भी तो
घूमेगी दुनियाँ इसी तरह।
चमकेगा आसमान सारा
नदियाँ उमड़ेगी उसी तरह।
ये सात समुंदर, बचे रहें
कोई व्दीप न डूबें
सागर में,
सब कुछ बिगड़े
पर थोड़ा सा
जल बचा रहे
इस गागर मे।
सब कुछ तो
खत्म नहीं होता
जो बचा आपसी प्यार रहे
कोई मुझसे पूछे
कल क्या हो
मे कहता हूँ ,संसार रहे ।
कमलेश कुमार दीवान
नोटःःप्राकृतिक पर्यावरण के केन्द्र मे मानव है।जलवायु परिवर्तनशील तत्वो का
समुच्य है।परिवर्तन होते रहें हैं और होंगें,परन्तु हमे आशाओं का सृजन
करना चाहिये।संसार की आबादियो को यह गीत सादर समर्पित है।
गुरुवार, 22 अप्रैल 2010
कुछ देर सही .... गीत
कुछ देर सही गीत
आओ कुछ देर सही
दूर तक चले हम
जीवन मे रास्तो के
फाँसले करे कम ।
आओ कुछ देर ...
हौसले बहुत है अब
आगे ही बढ़ना है
ऊँचे पर मुकाम
पाँव पाँव चढ़ना है
अपने जब दे शिकस्त
गिरकर सभँलना है
सपने हो ढेर सही
पूर्ण कर चले हम ।
आओ कुछ देर सही
दूर तक चले हम।
कमलेश कुमार दीवान
होशंगाबाद म.प्र.
31/12/09
आओ कुछ देर सही
दूर तक चले हम
जीवन मे रास्तो के
फाँसले करे कम ।
आओ कुछ देर ...
हौसले बहुत है अब
आगे ही बढ़ना है
ऊँचे पर मुकाम
पाँव पाँव चढ़ना है
अपने जब दे शिकस्त
गिरकर सभँलना है
सपने हो ढेर सही
पूर्ण कर चले हम ।
आओ कुछ देर सही
दूर तक चले हम।
कमलेश कुमार दीवान
होशंगाबाद म.प्र.
31/12/09
रविवार, 11 अप्रैल 2010
लो आई गर्मियाँ ....... विछ गये हैं फूल,सेमल के
लो आई गर्मियाँ
विछ गये हैं फूल,
सेमल के
लो आई गर्मियाँ ।
लो आई गर्मियाँ ।
सुर्ख ,कोमल,लाल पखुरियाँ
लिए रहती,
अनेकों तान छत वाली
बहुत ऊँची,
गगन छूती डालियाँ
खिल उठी हैं
हो के मतवाली।
छा गई मैदान पर,
रक्तिम छटाएँ
चलो नंगे पाँव तो,
वे गुदगुदाएँ
खदबदाती सी खड़ी
वेपीर लगती है,
खुशी के पल भरा पूरा
नीड़ लगती हैं।
ग्रीष्म भर उड़ती रहेगीं रेशे ..रेशे
जो कभी विचलित,
कभी प्रतिकूल लगती है।
विछ गयें हैं शूल,
तन...मन के
लो आई गर्मियाँ ।
विछ गये हैं फूल,
सेमल के
लो आई गर्मियाँ ।
कमलेश कुमार दीवान
१० मार्च २००८
नोटःः यह गीत ग्रीष्म ऋतु मे सेमल के पेड़ के फूलने फलने
और बीजों को लेकर उड़ते सफेद कोमल रेशों के द्श्य
परिस्थितियों पर लिखा गया है ।
विछ गये हैं फूल,
सेमल के
लो आई गर्मियाँ ।
लो आई गर्मियाँ ।
सुर्ख ,कोमल,लाल पखुरियाँ
लिए रहती,
अनेकों तान छत वाली
बहुत ऊँची,
गगन छूती डालियाँ
खिल उठी हैं
हो के मतवाली।
छा गई मैदान पर,
रक्तिम छटाएँ
चलो नंगे पाँव तो,
वे गुदगुदाएँ
खदबदाती सी खड़ी
वेपीर लगती है,
खुशी के पल भरा पूरा
नीड़ लगती हैं।
ग्रीष्म भर उड़ती रहेगीं रेशे ..रेशे
जो कभी विचलित,
कभी प्रतिकूल लगती है।
विछ गयें हैं शूल,
तन...मन के
लो आई गर्मियाँ ।
विछ गये हैं फूल,
सेमल के
लो आई गर्मियाँ ।
कमलेश कुमार दीवान
१० मार्च २००८
नोटःः यह गीत ग्रीष्म ऋतु मे सेमल के पेड़ के फूलने फलने
और बीजों को लेकर उड़ते सफेद कोमल रेशों के द्श्य
परिस्थितियों पर लिखा गया है ।
शुक्रवार, 19 मार्च 2010
स्वरचित भजन
चलते चलो
चलते चलो,चलते चलो ,चलते चलो रे.....
मैया रानी का
दरबार आयेगा ।
बढ़ते चलो ,चढ़ते चलो ,चलते चलों रे
मैया रानी का
घर द्वार आयेगा ।
मैया के भुवन मे
दस दरवाजे (दस दिशाओं मे )
काम..क्रोध ,लोभ मद मोह
समा जावेगा ।
मैया रानी का दरबार ।
चलते चलो, चलते चलो, चलते चलो रे...... ।
कमलेश कुमार दीवान
18/09/o9
चलते चलो
चलते चलो,चलते चलो ,चलते चलो रे.....
मैया रानी का
दरबार आयेगा ।
बढ़ते चलो ,चढ़ते चलो ,चलते चलों रे
मैया रानी का
घर द्वार आयेगा ।
मैया के भुवन मे
दस दरवाजे (दस दिशाओं मे )
काम..क्रोध ,लोभ मद मोह
समा जावेगा ।
मैया रानी का दरबार ।
चलते चलो, चलते चलो, चलते चलो रे...... ।
कमलेश कुमार दीवान
18/09/o9
सोमवार, 15 मार्च 2010
नव संवत् शुभ..फलदायक हों
॥ ॐ श्री गणेशाय नमः ॥
भारतवर्ष के नव संवत् विक्रम संवत् २०६७
गुड़ी पड़वा चैत्र शुक्ल प्रथम के पावन पर्व पर
शुभमंगलकामनाएँ है। देशवाशियों को यह गीत
सादर समर्पित है......
नव संवत् शुभ..फलदायक हों
नव संवत् शुभ..फलदायक हों।
ग्रह नक्षत्र
काल गणनाएँ
मानवता को सफल बनाएँ
नव मत..सम्मति वरदायक हो।
नव संवत् शुभ...फलदायक हो।
जीवन के संघर्ष
सरल हों
आपस के संबंध
सहज हों
नया भोर यह,नया दौर है
विपत्ति निबारक सुखदायक हो।
नव संवत् शुभ...फलदायक हो ।
नव संवत् शुभ...फलदायक हो ।
कमलेश कुमार दीवान
चैत्र शुक्ल एकम् संवत् २०६६
भारतवर्ष के नव संवत् विक्रम संवत् २०६७
गुड़ी पड़वा चैत्र शुक्ल प्रथम के पावन पर्व पर
शुभमंगलकामनाएँ है। देशवाशियों को यह गीत
सादर समर्पित है......
नव संवत् शुभ..फलदायक हों
नव संवत् शुभ..फलदायक हों।
ग्रह नक्षत्र
काल गणनाएँ
मानवता को सफल बनाएँ
नव मत..सम्मति वरदायक हो।
नव संवत् शुभ...फलदायक हो।
जीवन के संघर्ष
सरल हों
आपस के संबंध
सहज हों
नया भोर यह,नया दौर है
विपत्ति निबारक सुखदायक हो।
नव संवत् शुभ...फलदायक हो ।
नव संवत् शुभ...फलदायक हो ।
कमलेश कुमार दीवान
चैत्र शुक्ल एकम् संवत् २०६६
गुरुवार, 18 फ़रवरी 2010
ऐसे फागुन आऍ ।
होली शुभ हो
ओ भाई ,ऐसे फागुन आऍ ।
जो न गाऍ गीत,गऐ हो रीत
खूब बतियाऍ
ओ भाई ,ऐसे फागुन आऍ।
दरक गई है प्रीत परस्पर
ढूढै मिले न मन के मीत
हारे हुये ,समय के संग संग
कहां मिली है सबको जीत।
दुख सुख साथ साथ चलते हैं
हम सबको ललचाऍ
ओ भाई ,ऐसे फागुन आऍ।
नये सृजन हों, नव आशाऍ
नये रंग हों नव आभाऍ
ओ भाई ,ऐसे फागुन आऍ।
कमलेश कुमार दीवान
१० मार्च ०९
ओ भाई ,ऐसे फागुन आऍ ।
जो न गाऍ गीत,गऐ हो रीत
खूब बतियाऍ
ओ भाई ,ऐसे फागुन आऍ।
दरक गई है प्रीत परस्पर
ढूढै मिले न मन के मीत
हारे हुये ,समय के संग संग
कहां मिली है सबको जीत।
दुख सुख साथ साथ चलते हैं
हम सबको ललचाऍ
ओ भाई ,ऐसे फागुन आऍ।
नये सृजन हों, नव आशाऍ
नये रंग हों नव आभाऍ
ओ भाई ,ऐसे फागुन आऍ।
कमलेश कुमार दीवान
१० मार्च ०९
बुधवार, 10 फ़रवरी 2010
मुझे खत लिखना
मुझे खत लिखना
भूल जाओ अगर कोई बात
मुझे खत लिखना ।
याद रखना हो मुलाकात
मुझे खत लिखना ।
एक दिन आयेगा सैलाव
या संमुदर से ऊफान
खाली रह जायेगी कश्ती
और किनारे से मुकाम
तुम उठाओ अगर कोई पात
मुझे खत लिखना ।
भूल जाओ अगर कोई बात
मुझे खत लिखना ।
कमलेश कुमार दीवान
१७ मार्च २००९
भूल जाओ अगर कोई बात
मुझे खत लिखना ।
याद रखना हो मुलाकात
मुझे खत लिखना ।
एक दिन आयेगा सैलाव
या संमुदर से ऊफान
खाली रह जायेगी कश्ती
और किनारे से मुकाम
तुम उठाओ अगर कोई पात
मुझे खत लिखना ।
भूल जाओ अगर कोई बात
मुझे खत लिखना ।
कमलेश कुमार दीवान
१७ मार्च २००९
बुधवार, 20 जनवरी 2010
ॠतु गीत ....बसंत
ॠतु गीत ....बसंत
मुझसे बसंत के गीत नहीं
गाए जाते ओ मन ।
मुझसे बसंत के गीत नहीं
गाए जाते ओ वन ।।
कुछ देर डालियों पर ठहरो
पाती पर नाम लिखूँगा
अजनवी हवाओ,सखा साथियों
के तन मन पैठूँगा
धूँ धूँ जल रहे पहाड़ और
भाए भरमाये मन।
मुझसे इस अंत के गीत नहीं
गाए जाते ओ वन।
मुझसे बसंत के गीत नहीं
गाए जाते ओ मन ।।
कमलेश कुमार दीवान
०८ मार्च १९९५
मुझसे बसंत के गीत नहीं
गाए जाते ओ मन ।
मुझसे बसंत के गीत नहीं
गाए जाते ओ वन ।।
कुछ देर डालियों पर ठहरो
पाती पर नाम लिखूँगा
अजनवी हवाओ,सखा साथियों
के तन मन पैठूँगा
धूँ धूँ जल रहे पहाड़ और
भाए भरमाये मन।
मुझसे इस अंत के गीत नहीं
गाए जाते ओ वन।
मुझसे बसंत के गीत नहीं
गाए जाते ओ मन ।।
कमलेश कुमार दीवान
०८ मार्च १९९५
शुक्रवार, 1 जनवरी 2010
आओ नव वर्ष गीत २०१०
आओ नव वर्ष गीत २०१०
आओ नव वर्ष
हम करे बँदन।
खुश हो सब
सुखी रहें
हो अभिनंदन ।।
आओ नव वर्ष....
काल की कृपा होगी
सारे सुख पायेगें
पीकर हम हालाहल
अमृत बरसायेगें ।
धरती गुड़..धानी दे
पर्वतों पर पेड़ रहें
रेलो मे सड़को पर
हम सबकी खेर रहें।
माँग मे सिंदूर रहे
भाल पर तिलक चंदन
आओ नव वर्ष
हम करे बँदन ।
नूतन वर्ष मंगलमय हो ।शुभकामनाओ सहित..
कमलेश कुमार दीवान
होशंगाबाद म.प्र.
आओ नव वर्ष
हम करे बँदन।
खुश हो सब
सुखी रहें
हो अभिनंदन ।।
आओ नव वर्ष....
काल की कृपा होगी
सारे सुख पायेगें
पीकर हम हालाहल
अमृत बरसायेगें ।
धरती गुड़..धानी दे
पर्वतों पर पेड़ रहें
रेलो मे सड़को पर
हम सबकी खेर रहें।
माँग मे सिंदूर रहे
भाल पर तिलक चंदन
आओ नव वर्ष
हम करे बँदन ।
नूतन वर्ष मंगलमय हो ।शुभकामनाओ सहित..
कमलेश कुमार दीवान
होशंगाबाद म.प्र.