पतझड़ के लिये गीत
अब फूले है,पलाश
सरसो भर आई है
कोयलियाँ कुहक रही
बादलिया छाई है ।
आम्र बौर लद आये
झर रहे है नीम पात
पछुआ पुरवाई भी
बहती है साथ साथ
मौसम की आहट है
पतझड़ फिर आई है।
वन प्रांतर सुलग रहे
झुलस रहे गात गात
महुये के पेड़ों मे
आई तरूणाई है ।
अब जिनको है तलाश
वर्षो की पायी है ।
अब फूले है फलाश
सरसों भर आई है।
कमलेश कुमार दीवान
9/03/2010
अब फूले है,पलाश
सरसो भर आई है
कोयलियाँ कुहक रही
बादलिया छाई है ।
आम्र बौर लद आये
झर रहे है नीम पात
पछुआ पुरवाई भी
बहती है साथ साथ
मौसम की आहट है
पतझड़ फिर आई है।
वन प्रांतर सुलग रहे
झुलस रहे गात गात
महुये के पेड़ों मे
आई तरूणाई है ।
अब जिनको है तलाश
वर्षो की पायी है ।
अब फूले है फलाश
सरसों भर आई है।
कमलेश कुमार दीवान
9/03/2010