" जरा संभल के चलो "
कमलेश कुमार दीवान
बहुत खामोश हैं लम्हे उदास सुबह और शाम
क्या होगी रात भी ऐसी ,जरा संभल के चलो
हुई हैं बंदिशे आयत खुले दरीचे भी कहां होगें
किसी से बात हो कैसे ,जरा संभल के चलो
अब हवाये बहुत धीमे से चल रही है यहां
उसी के साथ है तूफांं , जरा संभल के चलो
हम भी पेड़ो से गिरे सूखे पत्तो की तरह
हमारे पास ही आतिश, जरा संभल के चलो
अपने जेहन मे भी इतनी जगह रखो 'दीवान'
किसी से घात भी हो तो, जरा संभल के चलो
कमलेश कुमार दीवान
26/4/2021