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सोमवार, 17 जुलाई 2023

कोई तो है जो

******कोई तो है जो ******
कतरा कतरा कोई तो है जो अंदर अंदर रहता है
थोड़ा- थोड़ा दर्द ही होगा , रफ्ता रफ्ता कहता है
दरिया सी ही पहुंच रही है ,पीढ़ाएं पानी पानी
जो भीतर है बाहर होकर  हफ़्ता हफ्ता बहता है
देखा भी क्या वो एक समुंदर दूर दूर तक फैला है
ये एहसास हुआ है दिल में  रस्ता रस्ता रहता है
चुप चुप बहुत पुकार रहे हैं लफ्ज़ लफ्ज़ धीरे धीरे
दिल की कलम रोशनाई से दस्ता दस्ता सहता है
भाग रही क्यों हवा बादलों को ले लेकर धरती पर
कहां कहां भीगा है मन भी , वस्ता- वस्ता रहता है

कमलेश कुमार दीवान
11/1/22

वस्ता=दीप्त होने वाला , चमकने वाला /दस्ता=कागज़ की गड्डी