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शनिवार, 24 अगस्त 2013

महासागर के आदेश...... सागर ने बादलो से कहा ( एक गीत)

महासागरो को स्वच्छ जल आपूर्ति  पूर्व की तरह नही हो पाने के परिणामस्वरूप समुद्र
देवता शायद कुपित हो और बादलो को आदेश दे रहे है कि वहा वरसो जहा जल रूका रहता है
सूर्य देव भी अधिक ताप से उत्तरी गोलार्ध को जता रहे है अर्थात् आज समूचा जल थल और वायुमंडल
मौसम की उथलपुथल से प्रभावित हो रहा है अधिक बरसात अनेक देशो मे भयावह बाढ आ रही है तब कही अधिक तापमान से जनजीवन अस्तव्यस्त  हो गया है ,निवेदन है कि महासागरो की और जाने वाले स्वच्छ जल की निश्चित आपूर्ति बनाये रखे ।मेरा लेख जनसत्ता मे दिनाँक23/4.1998  प्रकाशित हुआ था शीर्षक " समंदरो को भी चाहिये मीठा पानी "
इस संबंध मै यह एक गीत है .....
महासागर के आदेश

सागर ने बादलो से कहा
जाओ धरा पर
बरसा हुआ पानी जहाँ
ठहरा हुआ मिले ।

सब तार तार हो रहा है
मेरा आशियाँ
बहती  हुई नदी से
नही पा रहा हूँ जल

सूरज की शिकायत है
कि उठती नही है भाप
कैसे बनाऊँ बादलो को
सोचता हर पल ।

मे तरसता रहा
एक नदी के लिये
सव ने पानी चुराया
आदमी के लिये

इसलिये चाहता जाके
बरसो वहाँ
जहाँ वर्षा हुआ पानी
ठहरा  मिले ।

सागरो ने कहा
बादलों से यही
जाओ वरसो जहाँ
पानी ठहरा मिला ।

4 टिप्‍पणियां:



  1. सागर ने बादलों से कहा
    जाओ धरा पर
    बरसा हुआ पानी जहां
    ठहरा हुआ मिले



    आदरणीय कमलेश कुमार दीवान जी
    सुंदर गीत लिखा है...
    यद्यपि इस रचना को मैं गीत की तरह समझने में असमर्थ रहा हूं...

    हार्दिक मंगलकामनाओं सहित...
    -राजेन्द्र स्वर्णकार

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  2. बहुत खूब सुन्दर भाव उकेरे हैं आपने .

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