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बुधवार, 14 जुलाई 2021

निराश न हो .......एक गजल आशाओं के सृजन हेतु

 निराश न हो मेरे दोस्त ,हौंसला भी रख्खो 

आते हुये जाएंगें मौसम भी बदलते हैं

ये जो गर्दिश है ढल जायेगी सूरज की तरह 

इनआसुंओसे पत्थर भी पिघलते हैं 

ह्म है तो जमीं और सितारे फलक पे होंगे 

इस कायनात मे सब साथ साथ चलते हैं 

सब तो आशाओं मे ठ हरे हुए होंगे दीवान 

अपनी यादें हैं जिसके सिलसिले से चलते हैं 

कमलेश कुमार दीवान 

16/4/21

3 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 15-07-2021को चर्चा – 4,126 में दिया गया है।
    आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी।
    धन्यवाद सहित
    दिलबागसिंह विर्क

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