*जला है दिया *
कमलेश कुमार दीवान
कभी हवाओं से तो कभी तूफान से जला है दीया
कि बुझाने वालों के ही अभिमान से जला है दीया
मिटाने आई है कितनी ही बार हस्तियां फिर भी
बार बार हर मक़ाम उसी शान से जला है दीया
बहुत उजाला था बस्ती में कहीं अंधेरा ही न था
दिखाएं ऐसे नजारे बड़े अरमान से जला है दीया
समय की धार तेज है उस भंवर में घूमते 'दीवान'
सच है कि बार बार अपने ईमान से जला है दीया
कमलेश कुमार दीवान
12/4/25
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