यह ब्लॉग खोजें
रविवार, 31 जुलाई 2011
सींच रहा कोई
सींच रहा कोई
मंद पवन मुस्काये
मेघ नेह गीत गाये
शीतल जल बूँद बूँद मारे फुहार रे
सींच रहा कोई मन द्वार रे ।
अँखियो और आंगन मे
सपने ही सपने है
दूर से बटोही भी
लगते है अपने ही
भीगते नहाते
आर पार रे
सींच रहा कोई
मन द्वार रे ।
कमलेश कुमार दीवान
1 टिप्पणी:
Divya Narmada
11 सितंबर 2011 को 8:42 am बजे
sumadhur rachna. sadhuvad.
जवाब दें
हटाएं
उत्तर
जवाब दें
टिप्पणी जोड़ें
ज़्यादा लोड करें...
नई पोस्ट
पुरानी पोस्ट
मुख्यपृष्ठ
मोबाइल वर्शन देखें
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
sumadhur rachna. sadhuvad.
जवाब देंहटाएं