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शुक्रवार, 14 अक्तूबर 2011


आकाश छोटा

रहम की बस्ती मे आये
जलजले इतने  बड़े थै
कि हुआ आकाश छोटा ।

सब पता था इन हवाओं को,
सिरफिरे तूफान को
उसने न टोका ।
कि हुआ आकाश छोटा ।

रेत के घर को हिमालय मानते थे
ईट गारे को शिवालय जानते थे
एक बड़ा जल से भरा गढ्ढा,सागर हुआ था
एक झरने को नदी सा जानते थे

बहम की किश्ती मे आए
महकमें इतने बड़े थे
कि हुआ आभास थोथा ।
कि हुआ आकाश छोटा ।

    कमलेश कुमार दीवान
      २५ मार्च १९०६

रविवार, 31 जुलाई 2011

सींच रहा कोई


सींच रहा कोई

मंद पवन मुस्काये
मेघ नेह गीत गाये
शीतल जल बूँद बूँद मारे फुहार रे
सींच रहा कोई मन द्वार रे ।

अँखियो और आंगन मे
सपने ही सपने है
दूर से बटोही भी
लगते है अपने ही
भीगते नहाते
आर पार रे
सींच रहा कोई
मन द्वार रे ।

कमलेश कुमार दीवान

गुरुवार, 7 जुलाई 2011

दादा दादी रहे नही अब


 
दादा दादी रहे नही अब
दादा दादी
रहे नही अब
न निम्बूँ का पेड़ ,
ढोर बछेरू ,बाड़ा बागुड़
न खेतो की मेड़ ।

सुखुआ भैया
छोड़ काम को
पहुँच गया परदेश
गांव के आधे घर सूने है
कैसे रहे विदेह ।

बेटा बेटी
बसे विदेशवा
न झूला न टेर
गीत गालियाँ और भुजलियाँ
न बँडा न बेर ।
दादा दादी
रहे नही अब
न निम्बूँ का पेड़ ।

कमलेश कुमार दीवान
30/07/09

मंगलवार, 19 अप्रैल 2011

समाचार है खेत जले है खड़ी फसल वाले


समाचार है

समाचार है
खेत जले है
खड़ी फसल वाले ।
पड़ी फसल वाले ।

बस्ती उजड़ी
और छिने है
मुँह के निबाले
खड़ी फसल वाले ।

नरवाई मे आग लगी
तो कई बहाने से
क्या मशीन का दोष
या कि फिर बीड़ी चूल्हे से

बिजली की चिंगारी से या
कोई करता घात
रहा नही विश्वास परस्पर
एक दूजे की बात ।

ओ किसान के पुत्र
समझ लो
पशुचारे का मोल
कोई नही तुम्हारे ये सब
साख रहे है तौल
इसी भूमि से
पशुओ के पेट पले है ।

समाचार है
खेत जले है ।
पड़ी फसल वाले
खड़ी फसल वाले ।

कमलेश कुमार दीवान

 नोट..यह गीत भारत मे म.प्र के होशँगाबाद जिले मे
गेहूँ की खड़ी फसल जलने की घटनाओ पर है ।किसानो से अनुरोध है कि एकल फसल प्रणाली के अतिरिक्त  मिश्रित फसल प्रणाली और
 पशुपालन के लिये भी विचार करेँ

शनिवार, 16 अप्रैल 2011

अखबारो मे


अखबारो मे

अखबारो मे आम हुये है
खास खास चरचे
खास खास चरचे ।

दीवारो पर लिखे इबारत
अबकी बारी इनकी हैं
ढोल मढ़ैया ,चौसर चंका
सारी बाजी इनकी है
हरकारो के दाम हुये है
सड़को पर पर्चे ।
खास खास चरचे ।

कीमत बढ़ी आसमानो सी
सुलतानो के होश उड़े
दरबारी को नींद न आई
रहे ऊँघते खड़े खड़े
लोकतंत्र मे आई खराबी
फिर जनता पर दोष मढ़े
द्वार द्वार बदनाम  हुये है
दौलत और खर्चे ।
खास  खास चरचे ।

अखबारो मे आम हुये है
खास खास चरचे
खास खास चरचे ।

कमलेश कुमार दीवान
दिनाँक २७ । १०। १९९८

मंगलवार, 5 अप्रैल 2011

भारतवर्ष के नव संवत् विक्रम संवत् २०६८

नव संवत् शुभ..फलदायक हों

नव संवत् शुभ..फलदायक हों।
ग्रह     नक्षत्र
काल  गणनाएँ
मानवता को सफल बनाएँ
नव मत..सम्मति  वरदायक हो।
नव संवत् शुभ...फलदायक हो।

जीवन के संघर्ष
सरल हों
आपस के संबंध
सहज हों
नया भोर यह,नया दौर है
विपत्ति निबारक सुखदायक हो।

नव संवत् शुभ...फलदायक हो ।
नव संवत् शुभ...फलदायक हो ।

       कमलेश कुमार दीवान

सोमवार, 4 अप्रैल 2011

।।करें बँदना मैया तोरी ।।


।।करें बँदना मैया तोरी ।।

करें बँदना
मैया तोरी ।

रहे सब सुखी
हो समृध्दशाली,
बहू  बेटियाँ
हों सौभाग्य वाली।
यही अर्चना
मैया मोरी ।
करे बँदना मैया तौरी।

करे कामना जो
माँ शेरों वाली
तेरे दर से कोई न
जा पाये खाली

यही  प्रार्थना है
मैया   मोरी ।

करे बँदना ,मैया तोरी ।

      कमलेश कुमार दीवान
           अध्यापक एवम् लेखक
                 24/09/2009
होशंगाबाद म.प्र. मो.91+9425642458
email..kamleshkumardiwan.yahoo.com

बुधवार, 23 मार्च 2011

ऐसे फागुन आये




  ऐसे फागुन आये

ओ भाई ,ऐसे फागुन आऍ ।
जो न गाऍ गीत,गऐ हो रीत
खूब  बतियाऍ
ओ भाई ,ऐसे फागुन आऍ।
दरक गई है प्रीत परस्पर
ढूढै मिले न मन के मीत
हारे हुये ,समय के संग संग
कहां मिली है सबको जीत।
दुख सुख साथ साथ चलते हैं
हम सबको ललचाऍ
ओ भाई ,ऐसे फागुन आऍ।

नये सृजन हों, नव आशाऍ
नये रंग हों नव आभाऍ
नया समय है ,नव विचार से
पा जाये हम नई दिशाये
कोई न छूटे सँगी साथी
साथ साथ चल पाये ..
ओ भाई ,ऐसे फागुन आऍ।
                
        कमलेश कुमार दीवान
              १० मार्च ०९

    

बुधवार, 16 मार्च 2011

होली के रंग


होली के रंग

होली के रंग छाँयेगे
कोई न हो उदास ।
मौसम ही सब समायेगे
कोई न हो उदास ।

नदियाँ ही रँग लाई हैं
तितली के पँखों से
ध्वनियाँ मधुर सुनाई दें
पूजा के शँखो से
पँछी भी चहचहायेगे
आ जाये आस पास ।
होली के रँग छायेगे
कोई न हो उदास ।

पुरवाईयो ने बाग बाग
पात   झराये
बागो से उड़ी खुशबूओं ने
भँबरे   बुलाये
अमिया हुई सुनहरी
मौसम का  है अंदाज ।
बोली के ढँग आयेगें
कोई न हो उदास ।
होली के रँग छाँयेगे
कोई न हो उदास ।

कमलेश कुमार दीवान
26/02/10

रविवार, 6 मार्च 2011

मै जानता हूँ यह बजट नहीं है


मै जानता हूँ यह बजट नहीं है

मै जानता  हुँ,तुम जरूर आओगे
अपनी बगल मे दबाए कुछ दस्तावेजो के साथ
लगभग दर्जन भर कटौतियाँ होंगी और
एक -आद कल्याणकारी योजना
सौ पचास पाँच सौ हजार के नये नोट छापने और
एक आद अंको के सिक्के आयात करने की घोषणाओ के साथ
सब कुछ मिलेनियम होगा पर........
शायद कटे फटे टुकड़ों मे मुड़े तुड़े नोट खूब चलैगें
ढेर सारी रियायतें ,सपनों को पूरा करने की कवायदें हो्गी पर
शायद नहीं होंगी गूँजाइश उन पैबँदों के लिये
जिन्हे आबादी अपनी कमीज पर चिपकाकर तन ढँक सके।
कूछ मेजें हैं जो थपथपायी जाती रही है ..आजादी के बाद से
कुछ कोने हैं जहाँ से शर्म शर्म के नारे गूँजते हैं ...आजादी के बाद से
तुम्ही बताओं इस देश ने
बच्चों के आँगन कहाँ छिपा लिये है
युवाओं के सपने किसकी आँखों मे भर दिये है
सुनो दहकते पलाश के रंगों की आभाएँ
फैल रही है जुआघर मे तब्दील हो चुके शेयर बाजारों मे
सटोरियों,दलालो नव दौलतियों की कोठियाँ
उद्योगपतियों के शाही उद्यान
बड़ी कम्पनियों के कारोबारी परिसर
सब कुछ विराट हुये है मुगल गार्डन से   पर
शायद आम आदमी के पास अब बसंत नही है
फिर भी तुम जरूर आओगे बसंत
इस जाती हूई बहार मे खुशगबार कुछ नही होता है
एक आद खिलखिलाते हैं,सारा जंगल रोता है
मै जानता हूँ ये बसंत
ये कागज हैं कोई मौसम नहीं हैं
यहाँ सब कुछ जो दिखाई दे रहा है
वह बजट नही है ।
                                             कमलेश कुमार दीवान
                                         28/02/2000

शनिवार, 26 फ़रवरी 2011

बसंत बजट और हम


बसंत बजट और हम

मै जानता हूँ बसंत,
तुम जरूर आओगे
हर बार की तरह
लगभग हर तरफ बिछ जाती है
पीली पड़कर गिरती उड़ती पत्तियाँ
लगभग हर तरफ उठता है धुँआ
और बाड़ो से छनकर फैलती है एक गंध
जो नथुनो मै समाती हुईदहका जाती है
अंदर तक पल रहे बीहड़ उजाड़ वनों को ।

ओह! बसंत
तुम फिर फिर सुलगाओगे ,
हर बार जलाओगे
लगभग हर ओर से बुझते हुये मन को ,
अपनी आभाएँ बिखेरते
दहकते ,अकेले खड़े रहते पलाश
जंगल मे होते हुये भी हमारे दिल मे है
जो प्राकृतिक बजट के साथ
फूलते फलते ,झरते ..खिरते जाते हैं
बसंत आने से उधर वन सहमते है
बजट आने से इधर मन थरथराते हैं
समझ नही आता कि आखिर क्यों दोनो
साथ साथ आते है ।

मैं जानता हूं बसंत
तुम जरूर आओगे
हर बार की तरह
तुम, फिर फिर सुलगाओगे
हर बार जलाओगे
क्योकि तुम्हे आना है उन सपनो को रौंधने
जो उसनींदे युवाओं के अन्दर महक रहे है
ये महुये के फूल, तेदूये पत्ते आँवले अचार
और वनो की बहार
सब कि सब बजट हो गई है
जो कटौतियाँ लाती है
निर्जीव मेजे पितवाती है ,
किसी बच्चे की पीठ ठोकने के अवसर
जाने कबके हिरा गये है
ये *नासमिटे बजट और *धुआँलिये बसंत फिर फिर आ जाते

*नासमिटे और धुआलिये ग्रामीण क्षैत्रौ मे माँ द्वारा दी जाने वाली मीठी झिड़कियाँ है।

                                       कमलेश कुमार दीवान
                                     15/38 मित्र विहार कालोनी
                               सिविल लाइंस  मालाखेड़ी रोड होशंगाबाद (म.प्र)


  

मंगलवार, 15 फ़रवरी 2011

बसंत के बारे मे


बसंत के बारे मे

ऐसे बसंत आये।
ऐसे बसंत आये।

मौसम हो खुशुबगार
और पँछी चहचहाये ।
नदिया बहे और खेतों मे
धानी चुनर लहराये।

ऐसे बसंत आये ।
ऐसे बसंत आये ।
 
 कमलेश कुमार दीवान
        27/11/09

शुक्रवार, 7 जनवरी 2011

नव वर्ष गीत

नव वर्ष  गीत

आओ नव वर्ष
हम करे बँदन।
खुश हो सब
सुखी रहें
हो अभिनंदन ।।
आओ नव वर्ष....

काल की कृपा होगी
सारे सुख पायेगें
पीकर हम हालाहल
अमृत बरसायेगें ।
धरती गुड़..धानी दे
पर्वतों पर पेड़ रहें
रेलो मे सड़को पर
हम सबकी खेर रहें।
माँग मे सिंदूर रहे
भाल पर तिलक चंदन
आओ नव वर्ष
हम करे बँदन ।

नूतन वर्ष मंगलमय हो ।शुभकामनाओ सहित..

कमलेश कुमार दीवान
होशंगाबाद म.प्र.