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रविवार, 7 सितंबर 2025

सबा न थी .... गज़ल कमलेश कुमार 'दीवान''

 सबा न थी  --गजल 

                    कमलेश कुमार दीवान 

हम जिस हवा के साथ थे वो तो सबा न थी 

वो गुलिस्तां में थी मगर बाद ए सबा न थी 

कैसे जले चिराग़ ये सब, तूफान आए तब 

कोई मेहरबां न थी वो कोई हम नवा न थी 

माजी से थक गया हूं अब मौसम भी नहीं है 

चाहत थी गुल खिले  वहां रूह ए रवा न थी 

दरिया में था महताब तब दिल में अलाव सा 

बागों में तितलियां तो थी आब ओ हवा न थी 

किसने छुपाया कौन सा वो राज फिर 'दीवान '

चलता रहा वो रात भर कोह ए फिजा न थी 

कमलेश कुमार दीवान 

15/4/25



बुधवार, 3 सितंबर 2025

इंसान ने किया.....गजल

 इंसान ने किया -गजल 

                कमलेश कुमार दीवान 

कुछ हवा ने किया कुछ तूफान ने किया 

आंधी का काम भी यहां इंसान ने किया 

बादल के फूट पड़ने से खिसके पहाड़ भी 

बाकी बचा ही क्या सब आसमान ने किया 

बहुतेरी सड़क बन गई जंगल के बीच से 

रूठे हैं पेड़ पौधे ये क्या अनजान ने किया 

कुछ तो कुसूर अपना कुछ जरूरतों का था 

सब ढह गया है  जो यहां नादान ने किया 

क्या क्या गिनाए दुःख यहां घाटी पहाड़ के 

'दीवान 'इस जहां में सब पहचान ने किया 

'कमलेश कुमार दीवान' 

26/8/25