॥श्री गणेशाय नमः॥
भजन ःः मेरो मन न अंत को पावे
मेरो मन न
अंत को पावे ।
मेरो मन न अंत को पावे।
कोटि कोटि
ब्रम्हाण्ड रचियता
नित नवीन उपजावे ।
मेरो मन न, अंत को पावे ।
लोग कहत
उजियार जगत् में
जित देखा तम है,
एक सूरज से
क्या होता है
कई करोड़ कम हैं ।
टिम टिमाते
तारे.... तारे से
बार बार भरमावे ।
जगा जोत सम लागे।
मेरा मन न, अंत को पावे।
जो दीखें न
अँधकार है
तब प्रकाश भ्रम है
भरम मिटे न
इस दुनियाँ का
आदि ... अनादि क्रम है।
तृण.... तृण
अनंत हो जावे ।
मेरो मन न, अंत को पावे ।
कमलेश कुमार दीवान
गणेश चतुर्थी रविवार
दिनाँक २३ अगस्त २००९
बहुत बढ़िया .
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