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शुक्रवार, 20 मार्च 2009

दूर कहीं नींद उड़ी जाये रे

suniye
दूर कहीं नींद उड़ी जाये रे
आओ खत लिख दें
थम गई हवाओं को
रोके कुछ देर और
श्याम सी घटाओं को
दूर कहीं नींद उड़ी जाये रे ..।
दूर कहीं नींद उड़ी जाये रे...।
मन के है पंख ,पर बहुत छोटे
आकाशी सपनो के सामने
कद कितना बौना है, तन के र्मग छौने का
पलकों का बोझ चले नापने
आओं छत ओढ लें ,भागते समय की
दूर कहीं नींद उड़ी जाये रे...।
दूर कहीँ नींद उड़ी जाये रे...।
स्वप्नो के ढेर ,सच कहाँ होंगें
भूल चले शक संवत इतिहास को
पेरौं के नीचे जमीन कहाँ
दौड़ पड़े छूने इस ऊँचें आकाश को
तानते रहें चादर ,अनसिले कमीज की
दूर कहीं नीद उड़ी जाये रे...।
दूर कहीं नींद उड़ी जाये रे....।
आओ खत लिख दें
थम गई हवाओं को
रोके कुछ देर और
श्याम सी घटाओं को
दूर कहीं नीद उड़ी जाये रे...।
दूर कहीं नींद उड़ी जाये रे...।
कमलेश कुमार दीवान

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