" हमने खुशबू से"
हमने खुशबू से कहा छोड़ हवा का दामन
वो लरजती रही सकुचाई भी शरमाई भी
उसने तूफान के संग साथ ही रहना चाहा
बाग में तितलियों भंवरों की याद आई भी
फूल से था तो बहुत पास का गहरा रिश्ता
बागवां खामोश हुआ तो पाई तन्हाई भी
अभी सूखी हुई है शाख और उड़े हुए हैं रंग
जो बिखरती रही हूं साथ ले आशनाई भी
वो तो चुप हो गए देकर मुझे खूशबू 'दीवान'
जो सिमटती रही ग़ज़लों से और रूबाई में भी
कमलेश कुमार दीवान
27/12/21