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रविवार, 31 जुलाई 2011
सींच रहा कोई
सींच रहा कोई
मंद पवन मुस्काये
मेघ नेह गीत गाये
शीतल जल बूँद बूँद मारे फुहार रे
सींच रहा कोई मन द्वार रे ।
अँखियो और आंगन मे
सपने ही सपने है
दूर से बटोही भी
लगते है अपने ही
भीगते नहाते
आर पार रे
सींच रहा कोई
मन द्वार रे ।
कमलेश कुमार दीवान
गुरुवार, 7 जुलाई 2011
दादा दादी रहे नही अब
दादा दादी रहे नही अब
दादा दादी
रहे नही अब
न निम्बूँ का पेड़ ,
ढोर बछेरू ,बाड़ा बागुड़
न खेतो की मेड़ ।
सुखुआ भैया
छोड़ काम को
पहुँच गया परदेश
गांव के आधे घर सूने है
कैसे रहे विदेह ।
बेटा बेटी
बसे विदेशवा
न झूला न टेर
गीत गालियाँ और भुजलियाँ
न बँडा न बेर ।
दादा दादी
रहे नही अब
न निम्बूँ का पेड़ ।
कमलेश कुमार दीवान
30/07/09
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