शिक्षक दिवस 2024 पर विशेष
*उनींदी पाठशालाएं * हिंदी नज़्म
कमलेश कुमार दीवान
बच्चों अपने आप को देखों निहारों पाठशालाएं
तुम्हारी जिंदगी थी और हजारों स्वप्न शालाएं
अपनी सी दर ओ दीवार काले पर सफेद चाक
लिखे सब किलम से और किए स्लेट में साफ़
सफेद झक कुर्ते धोती पहने गुरूदेव शाला में
सजे है मेज़ और एक तस्वीर पर फूल मालाएं
वीणा वादनी मां सरस्वती होती थी किताबों में
नदी पर्वत की पावनता पढ़ते थे दो-आबो में
उत्तर में पहरी हिमालय आज़ भी है ,बहुत ऊंचा
पावन नदी गंगा जिसने सभ्यताओं को बहुत सींचा
बच्चों अब भी वही तस्वीर तख्ता चाक डस्टर है
बदलती जा रही है जिंदगी, लगाए जैसे अस्तर हैं
घंटी हैं मगर चुपचाप से बच्चे हैं और स्थूल शालाएं
न वो बातें, न वो मंजर ,न वो फोटो ,न मालाएं
सभी के साथ भी तो है सभी को याद भी तो है
अपने आप को देखों निहारों उनींदी पाठशालाएं
कमलेश कुमार दीवान
1/9/24
नर्मदा पुरम मध्यप्रदेश भारत वर्ष
461001