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बुधवार, 15 सितंबर 2021

न जाने क्या जमीं का हो.....गजल

 बहुत मदहोश हैं बादल ,न जाने क्या जमीं का हो

हवा में ताप भी ज्यादा न जाने क्या जमीं का हो

सूरज से बरसती हो तपन ,धरा से आग उठती हो 

मौसम भी सितमगर है,न जाने क्या जमीं का हो 

सागर की सतह से बहुत ऊँची उठ रही लहरें 

तटों पर टूटती हैं तब ,न जाने क्या जमीं का हो

खिसकते बर्फ के हिस्से और ढहते शीर्ष पर्वत के 

नदी में आ रहा मलबा न जाने क्या जमीं का हो 

थिरकती सी हवाएँ दे रही तूफानों की आहट 

उठेंगे जब बबंडर तब ,न जाने क्या जमी का हो 

कमलेश कुमार दीवान

11/7/21

*यह रचना मौसम के वर्तमान हालत और जमीन पर उसके प्रभाव के संबंध में है