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गुरुवार, 10 जून 2010

मेघ गीत मेघ बरसो रे

मेघ गीत    मेघ बरसो रे

मेघ बरसो रे
प्यासे  देश,
बहां सब रीत गये ।
ताल तलैया ,नदियाँ सूखी
रीता हिया का नेह 
मेघ बरसो रे पिया के देश ...
बहाँ सब बीत गये ।

कुम्लाऍ है
कमल   कुमुदनी
घास पात  और देह
उड़ उड़ टेर लगाये  पपीहा
होते गये विदेह ।
मेघ हर्षो रे
प्यासे देश
यहाँ सब रीत गये ।
मेघ बरसो रे
पिया के देश
बहाँ सब रीत गये ।

    कमलेश कुमार दीवान
 दिनाँक २३अगस्त २००९

गुरुवार, 3 जून 2010

कल क्या हो ?

पृथ्वी दिवस केअवसर पर गीत

       कल क्या हो ?

कोई मुझसे पूछे ,
कल क्या हो ?
मैं कहता ,यह संसार रहे ।

हम रहें ,न रहें
फिर भी तो
घूमेगी दुनियाँ इसी तरह।
चमकेगा आसमान सारा
नदियाँ उमड़ेगी उसी तरह।

ये सात समुंदर, बचे रहें
कोई व्दीप न डूबें
सागर में,
सब कुछ बिगड़े
पर थोड़ा सा
जल बचा रहे
इस गागर मे।

सब कुछ तो
खत्म नहीं होता
जो बचा आपसी प्यार रहे
कोई मुझसे पूछे
कल क्या हो
मे कहता हूँ ,संसार रहे ।

      कमलेश कुमार दीवान
नोटःःप्राकृतिक पर्यावरण के केन्द्र मे मानव है।जलवायु परिवर्तनशील तत्वो का
      समुच्य है।परिवर्तन होते रहें हैं और होंगें,परन्तु हमे आशाओं का सृजन
          करना चाहिये।संसार की आबादियो को यह गीत सादर समर्पित है।