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रविवार, 21 जून 2020

मुझे थोड़ी खुशियाँ तो दो मेरे बच्चो

मुझे थोड़ी खुशियाँ तो दो

मेरे बच्चो 
इस ढलती उम्र में 
मुझे  थोड़ी खुशियाँ तो दो 
मेरे बच्चो ।
मुझे पता है 
घर के अनुशासन से 
तुम सब ऊब चुके हो 
मुझे जानकारियाँ मिल रही है कि 
हमारे ही कारण तुम सब 
अपनी अपनी दुनियां मे रम चुके हो 
ये फोन ,ये कम्प्यूटर और शोसल नेटवर्क 
सब कुछ अच्छी शिक्षा नही दे रहे हैं 
जिस तरह किताबे, दादा दादी और परिवार से 
सब कुछ मिल जाता था जो जरूरी था 
गाँव,घर ,स्कूल पड़ोस कस्बा और शहर 
सभी कूछ पहले जैसे नहीं रहे हैं 
मेरे बच्चो 
पर तुम बड़े होने के बाद भी 
 हमारे लिये बच्चे ही हो 
गृहस्थी बसाओ, घर बनाओं खुश रहो
फिर भी हमारी अपेक्षाओं मे बदलाब नही ला पाते 
मेरे बच्चो ,
चाहते है इस ढलती उम्र में 
थोड़ी सी खुशियाँ 
ताकि हम नदियों के वहाव,हवाओ के प्रवाह और 
बागो से उड़ती हुई खुशबूओं को 
महसूस कर सकें 
मेरे बच्चो 
थोड़ी सी खुशियाँ बाँटोगे 
अपार हर्ष पाओगे ।


कमलेश कुमार दीवान
27/09/2016
kamleshkumardiwan@gmail.com 

सोमवार, 15 जून 2020

हम सुनना चाहते हैं

*हम सुनना चाहते हैं
अब हम सुनना चाहते हैं
वही आवाज
जो सुखकर लगे
हमारे कानों को ।
हम करना चाहते हैं
वही कार्य
जो भाए मन को हाथों को
हम देखना चाहते हैं वही सब‌ कुछ
जो आते जा रहा है हमारी आंखों के सामने
हम बोलना चाहते हैं
वह सब कुछ
जो सुना किया देखा
और झेला है
किन्तु अब
कानों, आंखों, ज़ुबान और ज़ेहन
जबाव देने लगें हैं
शिराएं थकने लगी है
अब हमें सुना रहे हैं वे
जिन्होंने कभी हमारी बातों पर
कान नहीं दिया
सुनना ही पड़ेगा
कमलेश कुमार दीवान
10/07/2019