*हम सुनना चाहते हैं
अब हम सुनना चाहते हैं
वही आवाज
जो सुखकर लगे
हमारे कानों को ।
हम करना चाहते हैं
वही कार्य
जो भाए मन को हाथों को
हम देखना चाहते हैं वही सब कुछ
जो आते जा रहा है हमारी आंखों के सामने
हम बोलना चाहते हैं
वह सब कुछ
जो सुना किया देखा
और झेला है
किन्तु अब
कानों, आंखों, ज़ुबान और ज़ेहन
जबाव देने लगें हैं
शिराएं थकने लगी है
अब हमें सुना रहे हैं वे
जिन्होंने कभी हमारी बातों पर
कान नहीं दिया
सुनना ही पड़ेगा
कमलेश कुमार दीवान
10/07/2019
अब हम सुनना चाहते हैं
वही आवाज
जो सुखकर लगे
हमारे कानों को ।
हम करना चाहते हैं
वही कार्य
जो भाए मन को हाथों को
हम देखना चाहते हैं वही सब कुछ
जो आते जा रहा है हमारी आंखों के सामने
हम बोलना चाहते हैं
वह सब कुछ
जो सुना किया देखा
और झेला है
किन्तु अब
कानों, आंखों, ज़ुबान और ज़ेहन
जबाव देने लगें हैं
शिराएं थकने लगी है
अब हमें सुना रहे हैं वे
जिन्होंने कभी हमारी बातों पर
कान नहीं दिया
सुनना ही पड़ेगा
कमलेश कुमार दीवान
10/07/2019
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