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बुधवार, 10 मार्च 2021

पंतंग💐.... दो गजलें

             💐 पंतंग💐

रूख देख हवाओं का उड़ाओगे जब पतंग
छू लेगी आसमान को रह जाए सभी दंग
कोहरा भी बादल भी हैं कौधेंगी बिजुरिया
चरखी के साथ धागा चलाने का आए ढंग
साथी भी अपना हो माझा भी स्वयं का
जब देर तक आकाश में ठहरी रहे पतंग
कागज तो ताव ही हो पिंचीं हो बाँस की
अच्छी बने कमान तो लहरायेगी पतंग
जब भी किसी मकसद से उड़ाएंगे मेहरबां
काटेंगे दूसरों की खुद ही की गिरे पतंग
हम अपनी पतंग को कभी ऐसे न उड़ाएं
पंछी गिरे दो चार और लुट जाएं फिर पतंग
कमलेश कुमार दीवान
17/2/21
       💐पतंग.... 2
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कुछ खास से अरमानों को लेकर उड़ी पतंग
कुछ ख्वाहिशो के साथ  मे जीती रही पतंग
उड़ती हुई वो दूर तक पहुंची जरूर थी
बदला हवा का रूख तो उलझती गई पतंग
एक दौर रहा होगा जब त्यौहार थी पतंग
अब दौरे  सियासत का मापन बनी पतंग
ऊँची बहुत गई थी कभी आसमान मे
माँझा बहुत था तेज कटकर गिरी  पतंग
कमलेश कुमार दीवान
18/2/21