इन हवाओं से बुझते नहीं होंगे वे चिराग़
जिनको तूफ़ानों के संग साथ जलाया होगा
जिसने दरिया को धकेला है समुंदर की तरफ़
लौट कर वो ही फिर बादलों में समाया होगा
हर दराजों से झिरा, नदियों से ओझल भी हुआ
आसमां छू छू के पहाड़ों पे फिर छाया होगा
तेज थी धूप वारिश भी तो बार बार हुई
हमने तो निकले ही थे कि तुमने बुलाया होगा
इन फिजाओं से कोई पूछता ही कब है दीवान
जिनके आने से कोई साथ साथ घर आया होगा
कमलेश कुमार दीवान
17/12/20