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मंगलवार, 16 मई 2017

दादा जी संक्षेप मे

भारतीय किसानो की दशा पर वर्ष १९८२ मे लिखा यह गीत आज भी प्रासांगिक है ।
पहले महाजन थे आज सरकारी एवम्  निजी बैंक और उनके एजेंट है लोग समझते है कि भारत
१९४७ मे आजाद हो गया है पर हमारी आखौ के सामने वही मंजर है वही गिड़गिड़ाहट है ,फसले खराब होने
पर अन्नदाता किसान राजनीति के कदमो मे गिर रहा है अर्थात् हमने आजादी से क्या पाया है बड़े बड़ै बाजारो का तिलिस्म
समपन्नता के सपने हमे जीने नही देते है ।मेरा यह गीत एक बिचार है जो परिवर्तन की दरकार लिये है .....

दादा जी संक्षेप मे

सारी जिनगी
बीत गई है
दादा जी आक्षेप मे
और सुनाओ
बड़ी कहानी
दादा जी संक्षेप मे ।

सच बतलाओ
उसे कहाँ पर
दफनाया था
पतिता रोती रही
न उसका
पति आया था
दूर देखती रही
उसांसे भर भर कर
कैसे जीती रही
आज तक
मर मर कर
पिता आयेंगें
बिटियाँ तेरे
बाबाजी के वेष मे
दादा जी संक्षेप मे ।

जब रमुआ के बैल
हाँक ले गये महाजन
गिर गिर गई पैर पर
सुखिया बाई अभागन
छुड़ा रही थी हाथ
और वह खींच रहा था
तेरा साथी कल्लू कैसा
चीख रहा था
लाज लुटी घरबार रहन
हो गये एक आदेश मे
और सुनाओ बड़ी कहानी
दादा जी संक्षेप मे ।

कमलेश कुमार दीवान
१८ जून १९८२