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शुक्रवार, 2 मई 2014

अखबारो मे आम हुये है


अखबारो मे

अखबारो मे आम हुये है 
खास खास चरचे 
खास खास चरचे ।

दीवारो पर लिखे इबारत 
अबकी बारी इनकी हैं
ढोल मढ़ैया ,चौसर चंका 
सारी बाजी इनकी है 
हरकारो के दाम हुये है
सड़को पर पर्चे ।
खास खास चरचे ।

कीमत बढ़ी आसमानो सी 
सुलतानो के होश उड़े
दरबारी को नींद न आई 
रहे ऊँघते खड़े खड़े 
लोकतंत्र मे आई खराबी 
फिर जनता पर दोष मढ़े
द्वार द्वार बदनाम  हुये है 
दौलत और खर्चे ।
खास  खास चरचे ।

अखबारो मे आम हुये है
खास खास चरचे 
खास खास चरचे ।

कमलेश कुमार दीवान 
दिनाँक २७ । १०। १९९८