अखबारो मे
अखबारो मे आम हुये है
खास खास चरचे
खास खास चरचे ।
दीवारो पर लिखे इबारत
अबकी बारी इनकी हैं
ढोल मढ़ैया ,चौसर चंका
सारी बाजी इनकी है
हरकारो के दाम हुये है
सड़को पर पर्चे ।
खास खास चरचे ।
कीमत बढ़ी आसमानो सी
सुलतानो के होश उड़े
दरबारी को नींद न आई
रहे ऊँघते खड़े खड़े
लोकतंत्र मे आई खराबी
फिर जनता पर दोष मढ़े
द्वार द्वार बदनाम हुये है
दौलत और खर्चे ।
खास खास चरचे ।
अखबारो मे आम हुये है
खास खास चरचे
खास खास चरचे ।
कमलेश कुमार दीवान
दिनाँक २७ । १०। १९९८
बहुत खूब ... अच्छा व्यंग ...
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
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