चुपके चुपके कहना था कुछ और सिमट कर सो जाना
सीली गीली यादे लेकर फिर एक मां सी रो जाना
कैसा है यह चांद यहां फिर अगहन की कुछ रातों काकुछ यादें कुछ बातें सपने और आंसू आंसू हो जाना
मोड़ बहुत थे गलियों में भी घर आंगन एक कोना था
बहुत अकेला मन रहता पर अपना वही खिलौना था
दूर बहुत थी राहें , राहों में उलझन थी बड़ी बड़ी
चलते चलते फिर मंजिल तक ढेर सी यादें बोना था
रफ्ता रफ्ता सहना था कुछ और लिपटकर खो जाना
तीली तीली यादे लेकर एक ही बाजू सो जाना
कमलेश कुमार दीवान
13/12/21