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शनिवार, 18 दिसंबर 2021

चुपके चुपके कहना था

 चुपके चुपके कहना था कुछ और सिमट कर सो जाना

सीली गीली यादे लेकर  फिर एक मां सी रो जाना

कैसा है यह चांद यहां फिर अगहन की कुछ रातों का
कुछ यादें कुछ बातें  सपने और आंसू आंसू हो जाना
मोड़ बहुत थे गलियों में भी  घर आंगन एक  कोना था
बहुत अकेला मन रहता पर अपना वही  खिलौना था
दूर बहुत थी राहें ,  राहों में उलझन थी बड़ी बड़ी
चलते चलते फिर मंजिल तक  ढेर सी यादें बोना था
रफ्ता रफ्ता सहना था कुछ और लिपटकर खो जाना
तीली तीली यादे लेकर   एक ही बाजू सो जाना
कमलेश कुमार दीवान
13/12/21