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मंगलवार, 14 फ़रवरी 2023

💐प्रेम में पगे रहना ....💐

 


💐प्रेम मे पगे रहना 💐
                                 *कमलेश कुमार दीवान *
जब हम हमेशा ही प्रेम मे पगे रहते हैं तब
बिसार जाते हैं प्रेम को ही
प्रेम एक आभा है आलोक है
आभास भी तो है हमारे प्रेममय होने का
प्रेम मानवीय शाश्वत मूल्यों का आलोढ़न है
प्रेम अंकुरण है ,सृष्टिमय समष्टि का
प्रेम जीवन है और जीव के चुक जाने तक भी है
प्रेम प्रेम ही है पर प्रेम मे ही पगे रहना तो नहीं है प्रेम
जीवन भी तो नहीं है यह
फिर क्यों हम पगे रहते हैं प्रेम मे ही
और रह जाते हैं घृणाँओ के स्पर्श से अछूते
जैविक अजैविक सृष्टि मे
तैरकर ,रेंगकर,चलकर,उड़कर और
स्थिरता के साथ आसमान में पर्ण  फैलाएँ
जमीन में जड़े धसाएँ  और उनसें ही लिपटकर
पोषण पाती लताएँ बेले भी प्रेममय हैं
अर्थात सृष्टि के सभी मनोभावों को
महसूस करते रहना भी प्रेम ही है
प्रेम मे पगे रहना ही तो प्रेम नहीं है।

 कमलेश कुमार दीवान   
  16/3/22