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रविवार, 24 मार्च 2024

फागुन गीत

 फागुन में कोई गीत नहीं....

                   " कमलेश कुमार दीवान"

फागुन में कोई गीत नहीं गाए जाते ओ मन

कुछ देर और ठहरों आंगन

विचलित सा है यह जन जीवन

बिफरा बिफरा सा है यह मन

अब 'वो' ही नहीं आते भाते

कोई प्रीति नहीं,न भरमाते

इस गुन के कोई मीत नहीं पाए जाते ओ मन।

फागुन में कोई गीत नहीं गाए जाते ओ मन ।

क्यों हैं रंगों से सराबोर

विस्मृत से कण कण है विभोर 

हम विस्मित हैं कैसी ये भोर

मन हो म्यूर नाचे, ले हिलोर 

कुछ गुन गुन में इस रून झुन में 

कुछ और देर पसरो पाहुन 

कोई रीत नहीं अपनाई है,आते जाते ओ मन ।

फागुन में कोई गीत नहीं गाए जाते ओ मन।।

वो=प्रियतम 

कमलेश कुमार दीवान

17/3/24

"

सोमवार, 26 फ़रवरी 2024

तुमको क्या मालुम ....गजल ---कमलेश कुमार दीवान

 तुमको क्या मालुम

‌‌               *कमलेश कुमार दीवान
मां ने कितने कष्ट सहे हैं तुमको क्या मालुम
हम सब हष्ट-पुष्ट रहे हैं, तुमको क्या मालुम
खूब सताते थे सब बच्चे और था पूरा परिवार
जाने कितने  सुनें ठोंसरे, तुमको क्या मालुम
सासू की भी सासू मां और पिताजी दादा जी के
कदम कदम पर पाए ताने तुमको क्या मालुम
सुबह शाम आरती बंदन ,मिन्नत में बीते सब वर्ष
जाने क्या क्या करी दुआएं, तुमको क्या मालुम
बगिया के हम फूल महक मां के जीवन से है
सींच सींच आंसू पल पल से, तुमको क्या मालुम
बुरी नज़र में झाड़ फूंक से पाला पोषा है 'दीवान'
रोज सुलाने लोरी गाई गीत सुनाएं, तुमको क्या मालुम
कमलेश कुमार दीवान
4/1/24
ठोंसरे=तंज़ कटाक्ष