💐शाँति और युद्ध "
                                 *कमलेश कुमार दीवान
अभी तक शाँत थी दुनिया 
लाखों लोगों के भूख से मर जाने पर 
वह अशांत नहीं हुई जब भी तब लोग 
गरीबी और जहालत से मर रहे थे 
बच्चे ,बूढ़े, जवान नए जोड़े  सबके सब
 विछुड़े ,लुढ़के, काल -कलवित हुए हैं
वायरस की दी मौत से पर 
यह दुनिया चुप ही रही 
यह नीरवता, न बोलने ,मौन साध लेने और
ऊँगलियाँ उठाने से बचने मे पैदा हुआ गहन सन्नाटा
क्रंदन, चीत्कारों को शोर मे दबाएं जाने से 
शाँति महसूस होती है 
परन्तु यह सुलगती धधक कर बुझ सी गई आग 
सूत्रपात होती है क्रांति का आगाज 
दुनिया के सपनों को मार देने 
छीनकर उनकी आजादी बेड़ियाँ पहना देने 
सजाए मौत ,शूली पर चढ़ा देने से
आदमी मरता नहीं है 
वह अपने समय के साथ 
समा जाता है आवाम के दिलो मे
जीता है उनके विचारों , आदतो , संस्कारों में
फिर हम युद्ध क्यों कर रहे हैं?
क्यों बरसा रहे हैं बारूद आसमान से 
ये बारूद अस्र शस्त्र, आयुधों के भंडार 
तुम्हारे मित्र नहीं हैं 
जो आज हो रहा है वह कल भी होगा 
ये सूरज ,घूमती धरती वहती हवाएँ
महासागर की लहरें ,नदियां झरने तालाब 
पर्वत पठार मैदान सब होंगे पर
सृष्टि में वह नहीं जो तुम हो जाना चाहते हो युद्ध 
हमें शाँति चाहिए शाँति शाँति ।
           कमलेश कुमार दीवान 
          12/3/22