ॠतु गीत ..शीत
सर्द हवाएँ
अबकी बार,बहुत दिन बीते
लौटी सर्द हवाओं को ।
लौटी सर्द हवाओं को ।
काँप गई थी ,धूँप
चाँदनी कितनी शीतल थी
नदियाँ गाढी हुई
हवाएँ बेहद विचलित थी।
व्यर्थ हुये आलाव
आँच के धीमे होने से
फसलें ठिठुरी और फुगनियाँ
सहमी ..सहमी सी ।
अबकी बार बहुत दिन सहते
रहे विवाई पाँवों की।
अबकी बार बहुत दिन बीते
लौटी सर्द हवाओं को।
लौटी सर्द हवाओं को।
कमलेश कुमार दीवान
८ जनवरी ९५
अबकी बार,बहुत दिन बीते
जवाब देंहटाएंलौटी सर्द हवाओं को ।
लौटी सर्द हवाओं को ।
आपकी यह सर्द हवाएँ वाली रचना बहुत बढ़िया लगी..कमलेश जी बहुत बहुत धन्यवाद इस प्रस्तुतिकरण के लिए!!
बहुत बढ़िया लगी यह रचना!!
जवाब देंहटाएंयह अत्यंत हर्ष का विषय है कि आप हिंदी में सार्थक लेखन कर रहे हैं।
हिन्दी के प्रसार एवं प्रचार में आपका योगदान सराहनीय है.
मेरी शुभकामनाएँ आपके साथ हैं.
निवेदन है कि नए लोगों को जोड़ें एवं पुरानों को प्रोत्साहित करें - यही हिंदी की सच्ची सेवा है।
एक नया हिंदी चिट्ठा किसी नए व्यक्ति से भी शुरू करवाएँ और हिंदी चिट्ठों की संख्या बढ़ाने और विविधता प्रदान करने में योगदान करें।
आपका साधुवाद!!
शुभकामनाएँ!
समीर लाल
उड़न तश्तरी