भारत मे लोकतंत्र है सत्ता प्रतिष्ठानो पर काबिज होते ही लोग नये जुमले गढ़ते है
नवीन विचार फेकते है नये प्रभाव उत्पन्न करने की कोशिश करते है जद्दोजहद मे शायद उनके प्रभाव से उत्पन्न होने वाली परेशानियो के बारे मे विचार नहीं कर पाते है यह कविता एक समझाईश भर है कृपया पढ़े ...
नए लोग है
नए लोग हैं
नव विचार तो देगें ही
चाहे फिर जितने सबाल हो।
नए लोग है ।
देश काल का ध्यान न आये
ऐसा भी क्यों
बहकी हुई हवा भरमाये
ऐसा ही क्यों
नये बोध है
नये शोध है
नये लोभ है
नई पौध है
शिष्टाचार निबाहगें ही
चाहे फिर सबसे बँचित हो
नये लोग है ।
नव विचार तो देगें ही
चाहे फिर जितने सबाल हों।
कितना मुश्किल लोकतंत्र है
पाँच वरष ढेरो प्रपँच है
थोड़ा सहन करो तब देखो
सुख सुविधाये अनंत है
नये दौर है
नव करार तो होगे ही
चाहे फिर
जितने मलाल हो ।
नये लोग है
नव विचार तो देगें ही
चाहे फिर जितने सबाल हो ।
कमलेश कुमार दीवान
लेखक
दिनाँक..3मार्च 2015
mob.no.9425642458
email..kamleshkumardiwan@gmail.com
सही कहा कि ''नए लोग हैं, नए विचार तो देंगें ही।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर...
जवाब देंहटाएंपाँच बरस ढेरों प्रपंच हैं.... बहुत सुन्दर !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
हटाएंपाँच बरस ढेरों प्रपंच हैं.... बहुत सुन्दर !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
हटाएं