आधुनिक युग समय के प्रबँधन का युग है ।लोगो का आपसी मेल मिलाप कम है । परस्पर मिलने जुलने और व्यवहार निबाहने से समाज मे सुख दुख बटते चले जाते है जीवन आसान होता है परन्तू एक दूसरे से दूरियाँ बढ़ गई है ।मेरा यह गीत समय के साथ कदमताल करते हुये जीवन जीने से सबँधित है । कृपया पढ़े ...
"मिलते जुलते रहें समय से "...... एक गीत
मिलते जुलते रहें
समय से
सुख लगता है
ये दुनियाँ तो आसूँ वाली है
फिर भी उत्सव
और खुशहाली है
खिलते खुलते रहें
समय से
दुख भगता है ।
मिलते जुलते रहे
समय से
सुख लगता है ।
करते रहे जुगाड़
लिये फिर आड़
ये झुरमुट कैसे है
चंदन वन मे
चाँद सितारे कहाँ
वहाँ तो पैसे है
रूपया वालो का आसमान
बाकी सब ख्याली है
चादर सिलते रहे
किस तरह मलाली है
पलते पुसते रहे
समय से
जग सजता है
मिलते जुलते रहे
समय से
सुख लगता है
कमलेश कुमार दीवान
लेखक
12/04/ 2015
"मिलते जुलते रहें समय से "...... एक गीत
मिलते जुलते रहें
समय से
सुख लगता है
ये दुनियाँ तो आसूँ वाली है
फिर भी उत्सव
और खुशहाली है
खिलते खुलते रहें
समय से
दुख भगता है ।
मिलते जुलते रहे
समय से
सुख लगता है ।
करते रहे जुगाड़
लिये फिर आड़
ये झुरमुट कैसे है
चंदन वन मे
चाँद सितारे कहाँ
वहाँ तो पैसे है
रूपया वालो का आसमान
बाकी सब ख्याली है
चादर सिलते रहे
किस तरह मलाली है
पलते पुसते रहे
समय से
जग सजता है
मिलते जुलते रहे
समय से
सुख लगता है
कमलेश कुमार दीवान
लेखक
12/04/ 2015
बहुत सुंदर ॥
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना ... भावपूर्ण ...
जवाब देंहटाएंआभार
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