एक गीत...उड़ना चाहता हूँ
मै परो को तौलकर
खूब फैलाकर ही
उड़ना चाहता हूँ ।
जानता हूँ यह
वही आकाश है
जिसने धरा को
जन्म देकर
फिर घुमाया है ,
हवाओं से मेघ ला
वृष्टि कर
हरित आकाश ओढ़ाया है
देखने ,सुनने, समझने
और सव आत्मसात् करने
मै घरों को छोड़कर
खूब चलना चाहता हूँ ।
मै परों को तौलकर
खुब फैलाकर ही
उड़ना चाहता हूँ ।
कमलेश कुमार दीवान
23/07/15
मै परो को तौलकर
खूब फैलाकर ही
उड़ना चाहता हूँ ।
जानता हूँ यह
वही आकाश है
जिसने धरा को
जन्म देकर
फिर घुमाया है ,
हवाओं से मेघ ला
वृष्टि कर
हरित आकाश ओढ़ाया है
देखने ,सुनने, समझने
और सव आत्मसात् करने
मै घरों को छोड़कर
खूब चलना चाहता हूँ ।
मै परों को तौलकर
खुब फैलाकर ही
उड़ना चाहता हूँ ।
कमलेश कुमार दीवान
23/07/15
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