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शुक्रवार, 27 सितंबर 2024

कैसे कौन कहे .... कमलेश कुमार दीवान

 * कैसे कौन कहे *

                     कमलेश कुमार दीवान 

बीते दिन की मीठी बातें 

कैसे कौन कहे ।

इस उस किस किससे मुलाकातें 

कैसे कौन कहे ।

दिन तपते हैं दुपहर भारी 

शाम सुनहरी रातें कारी 

उमस भरी सांसे लगती है

बादर और वर्षा बाजारी 

यहां अधिक जल और 

वहां कहीं पर बूंदाबांदी 

मन भाए ललचाए ऐसे 

एक बड़ी सौगात  लगती हैं 

दिन बीते रूठी सी रातें 

कौन बताए कैसे मौन सहे 

कैसे कौन कहे ।

मौसम की क्या बात कहें हम 

कुछ ठंडा कुछ ताप सहे हम 

पावस गई शरद आईं है 

किस ऋतु की क्या माप कहें हम 

बदला  समय बिताना मुश्किल 

कैसे कौन सहे।

कमलेश कुमार दीवान 

21/09/24

नर्मदा पुरम मध्यप्रदेश भारत वर्ष 

461001


गुरुवार, 5 सितंबर 2024

पाठशालाएं.... कमलेश कुमार दीवान शिक्षक दिवस पर विशेष नज़्म

 शिक्षक दिवस 2024 पर विशेष 

          *उनींदी पाठशालाएं * हिंदी नज़्म 

                 कमलेश कुमार दीवान 

बच्चों अपने आप को देखों निहारों पाठशालाएं 

तुम्हारी जिंदगी थी और हजारों स्वप्न शालाएं 

अपनी सी दर ओ दीवार काले पर सफेद चाक 

लिखे  सब किलम से और किए स्लेट में साफ़ 

सफेद झक कुर्ते धोती पहने गुरूदेव शाला में 

सजे है मेज़ और एक तस्वीर पर फूल मालाएं 

वीणा वादनी मां सरस्वती होती थी किताबों में 

नदी पर्वत की पावनता पढ़ते थे दो-आबो में 

उत्तर में पहरी हिमालय आज़ भी है ,बहुत ऊंचा 

पावन नदी गंगा जिसने सभ्यताओं को बहुत सींचा 

बच्चों अब भी वही तस्वीर तख्ता चाक डस्टर है 

बदलती जा रही है जिंदगी, लगाए जैसे अस्तर हैं 

घंटी हैं मगर चुपचाप से बच्चे हैं और  स्थूल शालाएं 

न वो बातें, न वो मंजर ,न वो फोटो ,न मालाएं

सभी के साथ भी तो है सभी को याद भी तो है

अपने आप को देखों निहारों उनींदी पाठशालाएं 

कमलेश कुमार दीवान 

1/9/24

नर्मदा पुरम मध्यप्रदेश भारत वर्ष 

461001


शनिवार, 24 अगस्त 2024

Daughters..... kamlesh Kumar Diwan

              "Daughters" 

                  Kamlesh Kumar Diwan 

Give me that vision with which I can see today's world

What I saw yesterday is past, now when I see it, I am afraid

Hold your fingers tightly and clench your fists again

Get up above everything, don't believe what I say

Now it has become difficult to tolerate even the last breath

The world is standing to cut off my courage, it is very narrow-minded

Look and understand the color of the well-formed skies

May these dreams and emotions be fulfilled, there is also a lot of desires

Where is that world where the dawn, the sun, the dew are pearls

The winds are slow and the chirping of birds is also there

The river moves forward humming something

The creeper grows on the earth, the vine clings to the branches and climbs the trees

Every branch is full of flowers and fruit-laden branches  You are bent down

I look at the fields as if the crops are singing songs

When I look at the houses, I feel that these generations will remain for centuries

There are people dancing and celebrating the beats of drums

Today this business has turned the world into a market

Here every man lives, and lives more by dying

Kamlesh Kumar Diwan

19/8/24

My poem hindi "Betiyan" translate by Google 


बेटियों..... एक नज़्म कमलेश कुमार दीवान

                    " बेटियों "....... नज़्म 

          ‌‌                  कमलेश कुमार दीवान 

मुझे वो दृष्टि दो जिससे निहारूं आज़ की दुनिया 

जो कल देखा वो गुजरा है,अब देखा तो एक डर सा है 

कसकर उंगलियां थामो भींचकर फिर मुट्ठियों तानो 

उठो सब बातों से उपर जो कहता हूं वह न मानो 

भरती सांस भी बर्दाश्त करना अब हुआ मुश्किल 

हौंसले  पर कतरने को खड़ी दुनियां बहुत तंगदिल 

निहारों और रंग समझो  बने- ठने आसमानों का 

पूरे हों जज़्बात ये सपने ढेर भी तो है अरमानों का 

वो सृष्टि है कहां  जहां की भोर सूरज ओस मोती हों 

हवाएं मंद और चहचहाहट पंछियों की भी होती हों 

नदी कल कल करें कुछ गुनगुनाती आगे बढ़ती हो 

धरती पर उगी लता बेले लिपट शाखें पेड़ चढ़ती हों 

खिले हों फूल हर डाली फल लदी डालें झुकी सी हो 

निहारूं खेत फिर वैसे कि जैसे गीत गातीं हों फसलें 

घरों को देखूं तो लगे कि सदी तक रहेंगी  यही नस्लें 

ढोल थापों पे थिरकते नाचते खुशियां मनाते लोग भी तो हैं

आज़ इस व्यापार ने दुनिया को बाजार में तब्दील किया है 

यहां हर आदमी जीता है,और ज्यादा मर मर के जिया है 

कमलेश कुमार दीवान 

19/8/24


रविवार, 24 मार्च 2024

फागुन गीत

 फागुन में कोई गीत नहीं....

                   " कमलेश कुमार दीवान"

फागुन में कोई गीत नहीं गाए जाते ओ मन

कुछ देर और ठहरों आंगन

विचलित सा है यह जन जीवन

बिफरा बिफरा सा है यह मन

अब 'वो' ही नहीं आते भाते

कोई प्रीति नहीं,न भरमाते

इस गुन के कोई मीत नहीं पाए जाते ओ मन।

फागुन में कोई गीत नहीं गाए जाते ओ मन ।

क्यों हैं रंगों से सराबोर

विस्मृत से कण कण है विभोर 

हम विस्मित हैं कैसी ये भोर

मन हो म्यूर नाचे, ले हिलोर 

कुछ गुन गुन में इस रून झुन में 

कुछ और देर पसरो पाहुन 

कोई रीत नहीं अपनाई है,आते जाते ओ मन ।

फागुन में कोई गीत नहीं गाए जाते ओ मन।।

वो=प्रियतम 

कमलेश कुमार दीवान

17/3/24

"

सोमवार, 26 फ़रवरी 2024

तुमको क्या मालुम ....गजल ---कमलेश कुमार दीवान

 तुमको क्या मालुम

‌‌               *कमलेश कुमार दीवान
मां ने कितने कष्ट सहे हैं तुमको क्या मालुम
हम सब हष्ट-पुष्ट रहे हैं, तुमको क्या मालुम
खूब सताते थे सब बच्चे और था पूरा परिवार
जाने कितने  सुनें ठोंसरे, तुमको क्या मालुम
सासू की भी सासू मां और पिताजी दादा जी के
कदम कदम पर पाए ताने तुमको क्या मालुम
सुबह शाम आरती बंदन ,मिन्नत में बीते सब वर्ष
जाने क्या क्या करी दुआएं, तुमको क्या मालुम
बगिया के हम फूल महक मां के जीवन से है
सींच सींच आंसू पल पल से, तुमको क्या मालुम
बुरी नज़र में झाड़ फूंक से पाला पोषा है 'दीवान'
रोज सुलाने लोरी गाई गीत सुनाएं, तुमको क्या मालुम
कमलेश कुमार दीवान
4/1/24
ठोंसरे=तंज़ कटाक्ष