💐 इसलिए तो ....।।अब हमें चलना ही होगा 💐
*कमलेश कुमार दीवान
अब हमें चलना ही होगा ,कलम लेकर कैमरों के सामने
थामकर हर हाथों में अखबार अपने
बरना ये दुनियाँ हमें जीने नहीं देगी
अब हमें चलना ही होगा कलम लेकर कैमरों के सामने।
हम चले तो चल पड़ेगीं ,कश्तियाँ कागज की भी
हम उठे तो जाग उठेंगीं ,बस्तियाँ जो सो गई थी कभी
अब हमें ढलना ही होगा स्याही कागज पेन मे
सब उतरना चाहेंगे भी ,इस गंगो-जमुन के चैन में
अब ये सपने चुभ रहें हैं आस्तीनों में
आदमी तो हैं हमें झौका मशीनों मे
अब निकलना है हमीं को अमन के वास्ते
अपने ही सर ,सरजमीं और चमन के वास्ते
शांति होगी तभी होंगें सहमति के रास्ते
अब हमें चलना ही होगा कलम लेकर कैमरों के सामने
थामकर हाथों में अखबार अपने ...अब हमें ।
क्या तुम्हारी कलम भी गिरफ्तार हो सकती?
क्या ये आयत बंदिशे हर बार हो सकती?
क्या तुम्हें लगता नहीं कि ये भी पहरे खत्म हों?
क्या अमन के वास्ते ये सख्त चेहरे नरम हो ?
सोचना होगा हमी को हम-वतन के वास्ते
हम कलम के साथ हो ले हर चमन के वास्ते
हाथों में थामों कलम के साथ भी आना जरूरी है
अन्यथा सर ही कलम होंगें कलम के वास्ते
दफन होगें सभी सपने ,न रहेंगे हम ,न होंगे आपके अपने
इसलिए भी …..अब हमें चलना ही होगा
कलम लेकर कैमरों के सामने
हाथों में थामे हुए अखबार अपने ।
वतन केवल सरहदों से ही नहीं बनता वतन केवल ओहदों से भी नहीं चलता
वतन केवल शाँति से महफूज रहता है वतन केवल 'वतन' रहने से नहीं चलता
हम वतन हैं एक प्याले हम निवाले हैं वतन केवल यही कहने से नहीं चलता
वतन पर्वत पेड़ नदियां और न ही सरहद वतन दिल से ही दिलो को जोड़ने का बल
वतन ताकत ही नहीं है प्रेम भी तो है वतन दुःख सुख मे कुशल क्षेम भी तो है
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वतन हम सबका हम ही तो वतन हैं वतन मे अमनो अमन यही तो जतन है
वतन एक जीवित सदी ,गहरा समुंदर ही वतन ही गुरूद्वार गिरजा, मस्जिद मंदिर है
वतन के ही लिए तो तहजीब के शानी वतन के हर रास्ते, तजबीज के मानी
वतन कागज भर नहीं है आशियाँ है वतन ही तो हम सभी की शिराएँ है
वतन की अपनी कहानी है वतन की अपनी रवानी है
वतन केवल ढाई आखर है वतन के भी बड़े मानी है
वतन एक आकाश सपनों का वतन एक आभास अपनो का
वतन सांसे हैं जवानी है वतन के हर लफ्ज वाणी है
वतन होगा तो हमारे हम और अपने हैं वतन से साकार होंगें सपन सबके है
इसलिए तो …. अब हमें चलना ही होगा कलम लेकर कैमरों के सामने
हाथों में थामे हुए अखबार अपने तभी पूरे हो सकेंगे सबके सपने
वरन् हम होगें कलम सर भी हमारे ही वेवतन उजड़े वतन मे, घर हमारे ही
अब हमें चलना ही होगा ,अब हमें चलना ही होगा अब हमें चलना ही होगा।
( कमलेश कुमार दीवान)
23/2/2021
लोकतंत्र ,नागरिकों ,स्वतंत्र लेखक, अखबार और संचार सूचना माध्यमों मे
कार्यरत सभी भाई बहनों को मेरी यह रचना सादर समर्पित है ।धन्यवाद
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