फल
साख ने छोड़ा है अपने आप तो नहीं टूटा
हम कहाँ चाहते थे,आसमाँ से जमीं पर गिरना
आँधियों मे रहा साथ,थपेड़ों को सहा मैने भी
कलीं ने फूलों को हर वक्त धकेला कितना
सरक चला था कच्चा था अधपका सा मै
जमीं के पास फिर किसी ने छोड़ा भी
किसी ने छील दिया और कोई निचोड़ता हैं
किसी ने बचा रखा और कई ने फोड़ा भी
शुरू कहाँ से हुआ था फिर ऊगना मेरा
वहां रहा होगा पानी हवा जमीन का डेरा
आज फिर बीज मे तब्दील किया है मुझको
मै आऊंगा ऊगकर फिर मिलूंगा तुझको
जहां से छूटा था मेरी नाव से तेरा दरिया
कैसे आ जाता है उगने का मेरा जरिया
एक छोटे बीज से पौधा बना फिर पेड़ हुआ
फल बना पका फिर से साख ने धकियाया बहुत
मै कहाँ जाता मिट्टी थी आसमाँ था ऊगाया उसने
फिर खिला फूल बना फल और पकाया उसने
साख ने छोड़ा या आँधी के थपेड़ों से गिरा
कितना चाहा था उसी साख से हिलगा रहना
पर नहीं चाहती थी साख पत्ता पत्ता भी
वहां होना और उसी डाली को जकड़े रहना
अब तो हर वक्त तोड़ा झिंझोड़ा जाता हूँ
साख से फिर भी छोड़ा जाता हूँ
कोई फोड़ा करें निचौड़ा करें
फल हूँ अपने साथ ही एक पेड़ ले के आता हूँ।
कमलेश कुमार दीवान
8/12/2020
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें