अधबुने जाले
मकड़ियों के
लग रहे हैं
अधबुने जाले
पर यहाँ की
लकड़ियाँ सुलगी हुई क्यों है?
जंगलों की आग ने
फूँके वनो के वन
दाग है चहुँ ओर देखो
अपने अपने मन ।
हम वतन के वास्ते
क्या क्या करे
क्या कुछ न हो
आज के इस तंत्र मे
ऐसा कहाँ है
भर गया है
सभी कूछ के साथ
सामान सारा
देखिये अपना कहाँ है
आसमान प्यारा
खिड़कियो से
लग रहे हैं
महल दुशाले .
मकड़ियों के
लग रहे है
अध बुने जाले ।
कमलेश कुमार दीवान
लेखक
14/04/2015
सुन्दर
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