" जरा संभल के चलो "
कमलेश कुमार दीवान
बहुत खामोश हैं लम्हे उदास सुबह और शाम
क्या होगी रात भी ऐसी ,जरा संभल के चलो
हुई हैं बंदिशे आयत खुले दरीचे भी कहां होगें
किसी से बात हो कैसे ,जरा संभल के चलो
अब हवाये बहुत धीमे से चल रही है यहां
उसी के साथ है तूफांं , जरा संभल के चलो
हम भी पेड़ो से गिरे सूखे पत्तो की तरह
हमारे पास ही आतिश, जरा संभल के चलो
अपने जेहन मे भी इतनी जगह रखो 'दीवान'
किसी से घात भी हो तो, जरा संभल के चलो
कमलेश कुमार दीवान
26/4/2021
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 29 -04-2021 को चर्चा – 4,051 में दिया गया है।
जवाब देंहटाएंआपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी।
धन्यवाद सहित
दिलबागसिंह विर्क
धन्यवाद आभार
हटाएंBahut sundar rachna 🙏
जवाब देंहटाएंसुंदर भाव अभिव्यक्ति कमलेश भाई.... बधाइयां
जवाब देंहटाएंबहुत खूब!
जवाब देंहटाएंवाह, क्या बात है। बहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंउम्दा अभिव्यक्ति ।
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