लो आई गर्मियाँ
विछ गये हैं फूल,
सेमल के
लो आई गर्मियाँ ।
लो आई गर्मियाँ ।
सुर्ख ,कोमल,लाल पखुरियाँ
लिए रहती,
अनेकों तान छत वाली
बहुत ऊँची,
गगन छूती डालियाँ
खिल उठी हैं
हो के मतवाली।
छा गई मैदान पर,
रक्तिम छटाएँ
चलो नंगे पाँव तो,
वे गुदगुदाएँ
खदबदाती सी खड़ी
वेपीर लगती है,
खुशी के पल भरा पूरा
नीड़ लगती हैं।
ग्रीष्म भर उड़ती रहेगीं रेशे ..रेशे
जो कभी विचलित,
कभी प्रतिकूल लगती है।
विछ गयें हैं शूल,
तन...मन के
लो आई गर्मियाँ ।
विछ गये हैं फूल,
सेमल के
लो आई गर्मियाँ ।
कमलेश कुमार दीवान
१० मार्च २००८
नोटःः यह गीत ग्रीष्म ऋतु मे सेमल के पेड़ के फूलने फलने
और बीजों को लेकर उड़ते सफेद कोमल रेशों के द्श्य
परिस्थितियों पर लिखा गया है ।
अनुभूति मे नवगीत की पाठशाला मे प्रकाशित
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जवाब देंहटाएंप्रकृति की क्षत को बाखूबी उतारा है पंक्तियों में ...
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