सबा न थी --गजल
कमलेश कुमार दीवान
हम जिस हवा के साथ थे वो तो सबा न थी
वो गुलिस्तां में थी मगर बाद ए सबा न थी
कैसे जले चिराग़ ये सब, तूफान आए तब
कोई मेहरबां न थी वो कोई हम नवा न थी
माजी से थक गया हूं अब मौसम भी नहीं है
चाहत थी गुल खिले वहां रूह ए रवा न थी
दरिया में था महताब तब दिल में अलाव सा
बागों में तितलियां तो थी आब ओ हवा न थी
किसने छुपाया कौन सा वो राज फिर 'दीवान '
चलता रहा वो रात भर कोह ए फिजा न थी
कमलेश कुमार दीवान
15/4/25
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