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सोमवार, 8 दिसंबर 2025

ख्वाब की ताबीर में... ग़ज़ल

 ख्वाब की ताबीर में 

                        कमलेश कुमार दीवान 

अपने एक ख्बाव की ताबीर में ऐसा ही हुआ

चाहा था चांद को आफताब भी वैसा ही हुआ 

धूप और छांव का  कोई फ़र्क नहीं लगता है 

दिन कायनात में भी  चांदनी जैसा ही हुआ 

हवाएं थी कि हम उसको पकड़ के चलते रहे 

नदी में पांव रख्खे  उड़ने का अंदेशा ही हुआ 

फूल कांटों से चुभे  झाड़ पेड़ आसमान में थे 

खेत घर बार महकते थे ये सब कैसा ही हुआ 

हम भी क्या क्या सोचते रहते हैं यहां 'दीवान'

पानी जला आग महक उठी तमाशा ही हुआ 

कमलेश कुमार दीवान 

7/11/25

अपने ही हैं बाजार में... ग़ज़ल

 अपने ही हैं बाजार में 

                     कमलेश कुमार 'दीवान'

अपने ही है बाजार में खरीददार भी अपने 

बीमार भी अपने ही हैं तीमारदार भी अपने 

सब कुछ बिखर गया  कुछ भी तो नहीं रहा 

ग़म दे रहे हैं अपने ही  गमख्वार भी अपने 

अपने लिबास देखते या फिर उनके पैराहन 

तार तार भी अपने ही हैं गमगुसार भी अपने 

अब कौन कहां  किसके लिए जी रहे 'दीवान'

बेजार भी अपने हैं और जार जार भी अपने 

                          कमलेश कुमार दीवान 

                               5/12/25


1- गमख्वार  =दुख दर्द में साथ देने वाला , दुःख दर्द बांटने वाला, सहानुभूति रखने वाला, सहिष्णु, सहनशील 

1-तार तार =बिखर जाना, टुकड़े टुकड़े हो जाना, छवि का पूरी तरह धूमिल हो जाना 

3-गम गुसार =हमदर्द,दुख दर्द बांटने वाला, दिलासा देने वाला 

4-बेजार=ऊब जाना,तंग आ जाना, विमुख, नाखुश, अप्रसन्न,खिन्न 

5-जार जार=फूट फूटकर रोना, अत्य

धिक दुखी होना