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गुरुवार, 19 अगस्त 2010

सावन झूले पड़े भाई परदेश मे,

सावन झूले पड़े

सावन झूले पड़े
भाई परदेश मे,
कैसे जश्न मनाएँ
जायें देश मे।

माँ ने सोचा
पिता आयेगें
पर वो गये नौकरी ,
भुआ आयेगी
राखी लेकर
पर हो गई डोकरी ।

बूढा बूढी
बच्चा बच्ची
युवा किशोरी
सव ही नये परिवेश में
छौड़ गये सब तैश मे ,
कैसे जश्न मनाये
जायें  देश मे ।

सावन झूले पड़े
भाई परदेश मे
कैसे जश्न मनाये
जाये देश मे ।

     कमलेश कुमार दीवान
        २अगस्त २००९

रविवार, 15 अगस्त 2010

tiranga ke liye geet

तिरंगा गीत

हरी भरी धरती हो नीला आसमान रहे
फहराता तिरंगा चाँद तारों के समान रहे।
त्याग शूरवीरता महानता का मन्त्र है
मेरा यह देश एक अभिनव गणतन्त्र है।
शान्ति अमन चैन रहे खुशहाली छाए
बच्चों को बूढों को सबको हर्षाए
सबके चेहरों पर फैली मुसकान रहे।
लहराता तिरंगा चाँद तारों के समान रहे.
   
कमलेश कुमार दीवान
होशंगाबाद म.प्र.

गुरुवार, 10 जून 2010

मेघ गीत मेघ बरसो रे

मेघ गीत    मेघ बरसो रे

मेघ बरसो रे
प्यासे  देश,
बहां सब रीत गये ।
ताल तलैया ,नदियाँ सूखी
रीता हिया का नेह 
मेघ बरसो रे पिया के देश ...
बहाँ सब बीत गये ।

कुम्लाऍ है
कमल   कुमुदनी
घास पात  और देह
उड़ उड़ टेर लगाये  पपीहा
होते गये विदेह ।
मेघ हर्षो रे
प्यासे देश
यहाँ सब रीत गये ।
मेघ बरसो रे
पिया के देश
बहाँ सब रीत गये ।

    कमलेश कुमार दीवान
 दिनाँक २३अगस्त २००९

गुरुवार, 3 जून 2010

कल क्या हो ?

पृथ्वी दिवस केअवसर पर गीत

       कल क्या हो ?

कोई मुझसे पूछे ,
कल क्या हो ?
मैं कहता ,यह संसार रहे ।

हम रहें ,न रहें
फिर भी तो
घूमेगी दुनियाँ इसी तरह।
चमकेगा आसमान सारा
नदियाँ उमड़ेगी उसी तरह।

ये सात समुंदर, बचे रहें
कोई व्दीप न डूबें
सागर में,
सब कुछ बिगड़े
पर थोड़ा सा
जल बचा रहे
इस गागर मे।

सब कुछ तो
खत्म नहीं होता
जो बचा आपसी प्यार रहे
कोई मुझसे पूछे
कल क्या हो
मे कहता हूँ ,संसार रहे ।

      कमलेश कुमार दीवान
नोटःःप्राकृतिक पर्यावरण के केन्द्र मे मानव है।जलवायु परिवर्तनशील तत्वो का
      समुच्य है।परिवर्तन होते रहें हैं और होंगें,परन्तु हमे आशाओं का सृजन
          करना चाहिये।संसार की आबादियो को यह गीत सादर समर्पित है।  

गुरुवार, 22 अप्रैल 2010

कुछ देर सही .... गीत

 कुछ देर सही   गीत

आओ कुछ देर सही
दूर तक चले हम
जीवन मे रास्तो के
फाँसले करे कम ।
आओ कुछ देर ...

हौसले बहुत है अब
आगे ही बढ़ना है
ऊँचे पर मुकाम
पाँव पाँव चढ़ना है

अपने जब दे शिकस्त
गिरकर सभँलना है
सपने हो ढेर सही
पूर्ण कर चले हम ।

आओ कुछ देर सही
दूर तक चले हम। 

कमलेश कुमार दीवान
होशंगाबाद म.प्र.
31/12/09

रविवार, 11 अप्रैल 2010

लो आई गर्मियाँ ....... विछ गये हैं फूल,सेमल के

लो आई गर्मियाँ

विछ गये हैं फूल,
सेमल के
लो आई गर्मियाँ ।
लो आई गर्मियाँ ।
सुर्ख ,कोमल,लाल पखुरियाँ
लिए रहती,
अनेकों तान छत वाली
बहुत ऊँची,
गगन छूती डालियाँ
खिल उठी हैं
हो के मतवाली।

छा गई मैदान पर,
रक्तिम छटाएँ
चलो नंगे पाँव तो,
वे गुदगुदाएँ
खदबदाती सी खड़ी
वेपीर लगती है,
खुशी के पल भरा पूरा
 नीड़ लगती हैं।

ग्रीष्म भर उड़ती रहेगीं रेशे ..रेशे
जो कभी विचलित,
कभी प्रतिकूल लगती है।

विछ गयें हैं शूल,
तन...मन के
लो आई गर्मियाँ ।

विछ गये हैं फूल,
सेमल के
लो आई गर्मियाँ ।
  कमलेश कुमार दीवान
     १० मार्च २००८
नोटःः यह गीत ग्रीष्म ऋतु मे सेमल के पेड़ के फूलने फलने
       और बीजों को लेकर उड़ते सफेद कोमल रेशों के द्श्य
          परिस्थितियों पर लिखा गया है ।    

शुक्रवार, 19 मार्च 2010

स्वरचित भजन
चलते चलो

चलते चलो,चलते चलो ,चलते चलो  रे.....
मैया रानी का
दरबार आयेगा ।
बढ़ते चलो ,चढ़ते चलो ,चलते चलों रे
मैया रानी का
घर द्वार आयेगा ।

मैया के भुवन मे
दस दरवाजे (दस दिशाओं मे )
काम..क्रोध ,लोभ मद मोह
समा जावेगा ।
मैया रानी का दरबार ।

चलते चलो, चलते चलो, चलते चलो रे...... ।

कमलेश कुमार दीवान
18/09/o9

सोमवार, 15 मार्च 2010

नव संवत् शुभ..फलदायक हों

॥ ॐ श्री गणेशाय नमः ॥

भारतवर्ष के नव संवत् विक्रम संवत् २०६७
गुड़ी पड़वा चैत्र शुक्ल प्रथम के पावन पर्व पर
शुभमंगलकामनाएँ है। देशवाशियों को यह गीत
सादर समर्पित है......

नव संवत् शुभ..फलदायक हों

नव संवत् शुभ..फलदायक हों।
ग्रह नक्षत्र
काल गणनाएँ
मानवता को सफल बनाएँ
नव मत..सम्मति वरदायक हो।
नव संवत् शुभ...फलदायक हो।

जीवन के संघर्ष
सरल हों
आपस के संबंध
सहज हों
नया भोर यह,नया दौर है
विपत्ति निबारक सुखदायक हो।

नव संवत् शुभ...फलदायक हो ।
नव संवत् शुभ...फलदायक हो ।

कमलेश कुमार दीवान
चैत्र शुक्ल एकम् संवत् २०६६

गुरुवार, 18 फ़रवरी 2010

ऐसे फागुन आऍ ।

होली शुभ हो

ओ भाई ,ऐसे फागुन आऍ ।
जो न गाऍ गीत,गऐ हो रीत
खूब बतियाऍ
ओ भाई ,ऐसे फागुन आऍ।
दरक गई है प्रीत परस्पर
ढूढै मिले न मन के मीत
हारे हुये ,समय के संग संग
कहां मिली है सबको जीत।
दुख सुख साथ साथ चलते हैं
हम सबको ललचाऍ
ओ भाई ,ऐसे फागुन आऍ।

नये सृजन हों, नव आशाऍ
नये रंग हों नव आभाऍ
ओ भाई ,ऐसे फागुन आऍ।

कमलेश कुमार दीवान
१० मार्च ०९

बुधवार, 10 फ़रवरी 2010

मुझे खत लिखना

मुझे खत लिखना

भूल जाओ अगर कोई बात
मुझे खत लिखना ।
याद रखना हो मुलाकात
मुझे खत लिखना ।

एक दिन आयेगा सैलाव
या संमुदर से ऊफान
खाली रह जायेगी कश्ती
और किनारे से मुकाम

तुम उठाओ अगर कोई पात
मुझे खत लिखना ।

भूल जाओ अगर कोई बात
मुझे खत लिखना ।

कमलेश कुमार दीवान
१७ मार्च २००९

बुधवार, 20 जनवरी 2010

ॠतु गीत ....बसंत

ॠतु गीत ....बसंत

मुझसे बसंत के गीत नहीं
गाए जाते ओ मन ।
मुझसे बसंत के गीत नहीं
गाए जाते ओ वन ।।

कुछ देर डालियों पर ठहरो
पाती पर नाम लिखूँगा
अजनवी हवाओ,सखा साथियों
के तन मन पैठूँगा

धूँ धूँ जल रहे पहाड़ और
भाए भरमाये मन।
मुझसे इस अंत के गीत नहीं
गाए जाते ओ वन।
मुझसे बसंत के गीत नहीं
गाए जाते ओ मन ।।
कमलेश कुमार दीवान
०८ मार्च १९९५

शुक्रवार, 1 जनवरी 2010

आओ नव वर्ष गीत २०१०

आओ नव वर्ष गीत २०१०

आओ नव वर्ष
हम करे बँदन।
खुश हो सब
सुखी रहें
हो अभिनंदन ।।
आओ नव वर्ष....

काल की कृपा होगी
सारे सुख पायेगें
पीकर हम हालाहल
अमृत बरसायेगें ।
धरती गुड़..धानी दे
पर्वतों पर पेड़ रहें
रेलो मे सड़को पर
हम सबकी खेर रहें।
माँग मे सिंदूर रहे
भाल पर तिलक चंदन
आओ नव वर्ष
हम करे बँदन ।

नूतन वर्ष मंगलमय हो ।शुभकामनाओ सहित..

कमलेश कुमार दीवान
होशंगाबाद म.प्र.

बुधवार, 30 दिसंबर 2009

नव वर्ष 2010

.नव वर्ष

सुख बिखर सिमटते रहे
तिमिर घन
घटते बढ़ते रहें
प्रण टूटे ,
मौन और विस्तृत
स्वीकारे उत्कर्ष ,
नये आये है,वर्ष ।

शुभ मँगलकामनाओ सहित सादर समर्पित है।
कमलेश कुमार दीवान

सोमवार, 28 दिसंबर 2009

ॠतु गीत ..शीत सर्द हवाएँ

ॠतु गीत ..शीत

सर्द हवाएँ

अबकी बार,बहुत दिन बीते
लौटी सर्द हवाओं को ।
लौटी सर्द हवाओं को ।

काँप गई थी ,धूँप
चाँदनी कितनी शीतल थी
नदियाँ गाढी हुई
हवाएँ बेहद विचलित थी।

व्यर्थ हुये आलाव
आँच के धीमे होने से
फसलें ठिठुरी और फुगनियाँ
सहमी ..सहमी सी ।

अबकी बार बहुत दिन सहते
रहे विवाई पाँवों की।

अबकी बार बहुत दिन बीते
लौटी सर्द हवाओं को।
लौटी सर्द हवाओं को।
कमलेश कुमार दीवान
८ जनवरी ९५

शनिवार, 19 दिसंबर 2009

राम चरण मे

राम चरण मे

लगा ले मन
राम चरण में प्रीत ।

सुख.. सम्पति सब
धरी रहत है
यही जगत की रीत।
लगा ले मन
राम चरण मे प्रीत ।
कमलेश कुमार दीवान
१६ मई २००८

गुरुवार, 17 दिसंबर 2009

रे मन

भजन....

रे मन

रे मन
काहे तू इतना डरे ।
पवन पुत्र तेरे
संग..साथ है
गणपति विध्न हरे ।।
रे मन..
काहे तू इतना डरे ।

कमलेश कुमार दीवान
25/10/09

रविवार, 8 नवंबर 2009

कैसी बीत रही है (एक गीत )

कैसी बीत रही है

मै अचछा हूँ
आप बताये
कैसी बीत रही है ।

घर आँगन
सूना सूना है
खाली खाली दिन और रात ,
अपने है सब
रूठे रूठे
कही न कोई ऐसी बात,
मै बचता हूँ
आप बताये
कैसे जीत रही ।

क्या तुमने
माँ बाबा के बीच
सुलह करबाई है
बहन भाई के बीच
हुई क्यों
मार पिटाई है ,
क्या कक्षा में
डाँट पड़ी या
फिर मौसम की मार
क्या बस्तो के बोझ तले
हो रही पढाई है ।

मै अच्छा हूँ
आप बताये
कैसे सीख रहीं है
कैसे बीत रही है ।
कमलेश कुमार दीवान
१३ अगस्त २००९

मंगलवार, 27 अक्टूबर 2009

।।करें बँदना मैया तोरी ।।

।।करें बँदना मैया तोरी ।।

करें बँदना
मैया तोरी ।

रहे सब सुखी
हो समृध्दशाली,
बहू बेटियाँ
हों सौभाग्य वाली।
यही अर्चना
मैया मोरी ।
करे बँदना मैया तौरी।

करे कामना जो
माँ शेरों वाली
तेरे दर से कोई न
जा पाये खाली

यही प्रार्थना है
मैया मोरी ।

करे बँदना ,मैया तोरी ।

कमलेश कुमार दीवान
24/09/2009

शुक्रवार, 23 अक्टूबर 2009

हमे कुछ करना चाहिये

हमे कुछ करना चाहिये
कमलेश कुमार दीवान
जब भी हम उदास होते हैं
अपने हालात पर लिखते हैं,कविताएँ
गाते गुनगुनाते है,कोई मनपसंद गीत
या फिर चलते चले जाते है उस ओर
जहाँ रास्तो मे मंजिले नही होती
नहीं होते है घर,शोर मचाते बच्चे
लोरियाँ सुनाती धाँय माँ,
कहानियाँ कहती दादी नानी
किस्से हाँकते बाबा और बचपन के दिन
सब पास और अधिक पास आ जाते हैं
तब लगता है ,हमे कुछ करना चाहिये ।
हम जो चाहते हैं वह यही है कि.....
नदियाँ तालाब पोखर या समुंदर के किनारे जाएँ
फेके उनमे पतली चिप्पियाँ और छपाक उछलती कूद गिनें
कुये के पाट पर जाये ,उनमे ढूँके,बोम मारे
फैक दे बड़ी सी ईट और सुने धमाक।
अमियाँ तोड़े या डाली
या पेड़ों पर चढकर झूले और कूद पड़े
बागों से चुने फूल या निहारे खूबसूरती
माली की प्रशंसा मे गीत लिखे या खाये गाली
सच तो यही है कि हम
करना चाहते बही सब कुछ जो करते रहे है पर
ओहदों की याद,शहर की आदतें और
उत्तर आधुनिक समय
हाँक रहा होता है हमें
तब लगता है
हमे कुछ और करना चाहिये
उनमे से कुछ होती है..
बड़े होते बच्चों पर झिड़कियाँ
नौकरी पर जाती औरतो पर फिकरे
खाँसते..खखारते पिता पर ताने और
बर्तन माँजती माँ..बीबी पर टिप्पणियाँ
भाई बहन के लिये उलाहनें
बचे हुये लोगो के लिये लानत ..मनालत
हम यही सब तो करते हैं
जो नहीं करना चाहिये ,फिर भी.
क्या हमे कुछ करना चाहिये ?

कमलेश कुमार दीवान
१७ अप्रेल २००५

शनिवार, 17 अक्टूबर 2009

दीप पर्व शुभ हो

।।ॐ श्री गणेशाय नमः।।


दीप पर्व शुभ हो

आलोकित हो गये

तिमिर पथ

लघु विस्तृत,आकाश और वृत्

प्रमुदित प्राण अर्थ अर्पित है

और

दीपोत्सव के पर्व।


कमलेश कुमार दीवान
अध्यापक एवम् लेखक
होशंगाबाद म.प्र.