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बुधवार, 14 अक्टूबर 2009

दो कदम साथ हो ले

दो कदम साथ हो ले

ये तन्हाईयाँ भी
डराने लगी हैं
मेरे हमसफर ,दो कदम साथ हो ले ।

बहुत पास थे ,रास्ते
मुड़ के देखा
कदम दो मिलाते
तो मँजिल ही होती

कई खौफ थे जिनसे
डरते रहे हम
नकाबों,लिबासों में
मरते रहे हम
बड़े सपने आँखों मे
बसते गये थे
बही आज फिर भय
सजाने लगी हैं
ये तन्हाईयाँ भी
डराने लगी हैं
मेरे हमसफर दो कदम साथ हो लें ।
कमलेश कुमार दीवान

रात चाँद बच्चे और सूरज

रात चाँद बच्चे और सूरज

(कमलेश कुमार दीवान)

चाँद से राते नहीं नापी जा सकती
रातो के माप नींद और सपने भी नहीं हैं
उसनींदे मरते लोगो की रातें लम्बी दोपहर तक खिचतीं है
इसलिये पैमाइश सूरज का प्रकाश भी नहीं हो सकता हैं
दूर टिमटिमाते तारे और ज्यादा तेज चमककर जताते तो है कि
रातें अब समाप्त होने वाली है ,पर
भोर के आकाशदीप भी अब
राते समाप्त नहीं कर सकते हैं
रातें अब
मुर्गे की बाँग और चिड़ियों के कलरव से भी नहीं सिमट रही हैं
बूढ़ों के खाँसते खकारते रहने,नही सोने,जागते रहने
बच्चों के रोते रहने और बाकी सबके खर्राटे लेने से भी
नहीं खुटती है रातें
आधुनिक गुफाओं जैसे घर में
छोटे छोटे सूरज टाँगकर आदमी सोता ही कहाँ है
इन सबके बाबजूद सूरज ही तय करता है दिन
कोई तो है जो बादलों की तरह अनियमित नहीं है
बसों ,रेलगाड़ियों,हवाई जहाजों की तरह लेट लतीफ भी नहीं हैं
बिजली की तरह आता जाता और मशीनो की तरह घनघनाता नहीं हैं
उसका अपना समय है और उस काल के साथ वह है
यदि ऐसा नहीं हो तब चिल्लाते रहें मुर्गे,बूढ़े खाँसते खँकारते सिधार जायें
बच्चे कितने ही रिरियायें,रोते बिलखते रहें
चिड़ियों के झुँड के झुँड कलरव करें
औरतें दहशत से सिहर जायें
आदमी मुँह ढाँपकर मर जाएँ
कुछ नहीं होगा तब राते ही रातें होगीं
हजारो हजार घोड़ों के रथ पर सवार सूरज
तुम यदि दिशाएँ याद रखना भूल जाओं तो
मेरी बच्ची का दिशा सूचक यंत्र ले जाना
प्रश्नो का व्यापार करते विश्व मे
उत्तर का बोध सबसे जरुरी है
बच्चों की,हवाओं और पानी बाले बादलों की दिशाएँ
उसी से तय हो रहीं हैं
बच्चो के सर के ऊपर उत्तर और पेरो के नीचे दक्षिण है
बच्चो के दाहिने बाएँ बदलती रहती है दिशाएँ
यहाँ कुछ तो रातें तय करती है
कुछ चाँद तारे और सूरज
बाँकी सब बच्चों के हिस्से मे हैं
आधी रात तक जागते और देर तक सोते लोगों के पास
शायद कुछ नहीं है
रातो ने तय कर दिया है सबकी सुबह दोपहर तक होगी ।

कमलेश कुमार दीवान
नोट.. यह कविता समकालीन भारतीय साहित्य नई दिल्ली के
अंक 84 जुलाई अगस्त 1999 मे प्रकाशित हुई है।

गुरुवार, 8 अक्टूबर 2009

मै तन्हा तन्हा तेरे

मैं तन्हा..तन्हा,तेरे रास्तों से गुजरा हूँ
मुकाम मेरे ,रहबरों ने ही तलाश किये ।
लम्हें खुशी के भी आए,दुःखों के ठहरे शहर
तमाम मेरे मुखबिरो ने ही खलाश किये ।

नए नए से असर फितरतों से पलते गये
शमाएँ रोशनी में आठों पहर जलते गये
निशाँ जमीं पे बने,बिगड़े डगमगाए कदम
सदाएँ मौसमी सहते गये सिहरते गये।

मैं जहाँ जहाँ भी तेरे रास्ते से गुजरा हूँ
मुकाम मेरे सिरफिरों ने ही तलाश किये।

गलत सही के हिसाबो..किताब कौन रखें
चला चलूँ तो,मालों.आसबाब कौन रखे।
एक अदद दिल पे ही काबूँ नहीं रखा जाता
उतार फेंकूँ तो फिर ये लिबास कौन रखें।

मेरी तासीर मँजिलों को ढूँढना तो नहीं
एक मकसद कि सारा जहाँन मौन रहे
मै कहाँ कहाँ से तेरे वास्ते से गुजरा हूँ
मुकाम मेरे दिलजलों ने ही तलाश किये।

मै तन्हाँ तन्हाँ तेरे रास्तों से गुजरा हूँ
मुकाम मेरे रहबरों ने ही तलाश किये।
कमलेश कुमार दीवान
८ जून १९९४

शनिवार, 26 सितंबर 2009

।।करें बँदना मैया तोरी ।।

।।करें बँदना मैया तोरी ।।

करें बँदना
मैया तोरी ।

रहे सब सुखी
हो समृध्दशाली,
तेरे दर से कोई
न जाये खाली ।

यही कामना है
माँ शेरावाली

यही प्रार्थना है
मैया मोरी ।

करे बँदना ,मैया तोरी ।

कमलेश कुमार दीवान
24/09/2009

सोमवार, 21 सितंबर 2009

श्याम मोरे (प्रार्थना भजन)

श्याम मोरे (प्रार्थना भजन)

श्याम मोरे ,श्याम मोरे ,श्याम मोरे
फिर तुझे आना पड़ेगा
फिर तुझे आना पड़ेगा ।

आज फिर मीरा को
विष देकर ,सुधारा जा रहा है
द्रोपदी के चीर से ,
पर्वत बनाया जा रहा है ।

सूर,उद्वव,नँद-जसुमति
देवकी बसुदेव सब है
पर बहुत है कंस,
फिर कारां बनायाँ जा रहा है ।

रूख्मणि -राधा अकेली
गोपियों की बँद बोली
ओ कन्हैया कालिया वध
के लिये आना पड़ेगा ।

श्याम मोरे,श्याम मोरे,श्याम मोरे
फिर तुझे आना पड़ेगा
फिर तुझे आना पड़ेगा।

कमलेश कुमार दीवान
21/09/1998

शुक्रवार, 18 सितंबर 2009

नर्मदा मैया

नर्मदा मैया

नर्मदा मैया ,
ऐसी बहे रे........
अमरकंटक से खम्बात हो
नर्मदा मैया है रे ..

घाटन घाट
पुजावे शँकर ,
घाट घाट पे राम
जिनने भी परिक्रमा
कर लई
कर लये चारो धाम
नर्मदा मैया
ऐसी बहे रे .....

कमलेश कुमार दीवान
18/09/2009

नर्मदा मैया

नर्मदा मैया

नर्मदा मैया ,
ऐसी बहे रे........
अमरकंटक से खम्बात हो ।
नर्मदा मैया है रे ..।

घाटन घाट
पुजावे शँकर ,
घाट घाट पे राम ।
जिनने भी परिक्रमा
कर लई
कर लये चारो धाम ।
नर्मदा मैया
ऐसी बहे रे ....।.

कमलेश कुमार दीवान
18/09/2009

बुधवार, 2 सितंबर 2009

॥ॐ श्री गणेशाय नमः॥ स्तुति बँदना

॥ॐ श्री गणेशाय नमः॥
स्तुति बँदना
गजानन रखियो सबकी लाज।
हे गणपति हे विध्न विनाशक
होवे सुफल सब काज
गजानन रखियो सबकी लाज ।
कोई माँगे रिध्दि सिध्दि
कोई चाहे शुभ लाभ
देना सबको विद्या बुध्दि
और सुमति के साज
गजानन रखियो सबकी लाज ।
कमलेश कुमार दीवान
२३ अगस्त २००९ गणेश चतुर्थी

सोमवार, 31 अगस्त 2009

मेघ गीत मेघ बरसो रे

मेघ गीत मेघ बरसो रे
मेघ बरसो रे
प्यासे देश,
बहां सब रीत गये ।
ताल तलैया ,नदियाँ सूखी
रीता हिया का नेह
मेघ बरसो रे पिया के देश ...
बहाँ सब बीत गये ।
कुम्लाऍ है
कमल कुमुदनी
घास पात और देह
उड़ उड़ टेर लगाये पपीहा
होते गये विदेह ।
मेघ हर्षो रे
प्यासे देश
यहाँ सब रीत गये ।
मेघ बरसो रे
पिया के देश
बहाँ सब रीत गये ।
कमलेश कुमार दीवान
दिनाँक २३अगस्त २००९

रविवार, 23 अगस्त 2009

भजन ःः मेरो मन न अंत को पावे

॥श्री गणेशाय नमः॥
भजन ःः मेरो मन न अंत को पावे
मेरो मन न
अंत को पावे ।
मेरो मन न अंत को पावे।
जहाँ कोटि
ब्रम्हाण्ड बने हैं
जगा....जोत सम लागे।
मेरो मन न अंत को पावे ।
लोग कहत
उजियार जगत् में
जित देखा तम है,
एक सूरज से
क्या होता है
कई करोड़ कम हैं ।
टिम टिमाते
तारे.... तारे से
बार बार भरमावे ।
मेरा मन न, अंत को पावे।
जो दीखें न
अँधकार है
तब प्रकाश भ्रम है
भरम मिटे न
इस दुनियाँ का
आदि ... अनादि क्रम है।
तृण.... तृण
अनंत हो जावे ।
मेरो मन न, अंत को पावे ।
कमलेश कुमार दीवान
गणेश चतुर्थी रविवार
दिनाँक २३ अगस्त २००९

शुक्रवार, 21 अगस्त 2009

चिड़ियाँ रानी

चिड़ियाँ रानी
चिड़िया रानी आना
धूल मत नहाना
छोटी सी कटोरी मे
दाना रखा है ।
छोटे छोटे पँख तेरे
सारा है आकाश
दूर दूर जाती उड़ के
आती पास पास
मेरी छप्पर छानी मे
घौंसला बनाना
चिड़ियाँ रानी आना
चिड़िया रानी आना
कमलेश कुमार दीवान

शनिवार, 8 अगस्त 2009

याद आये नानी

याद आये नानी
आओ सब मिल सोचे रे भैया
क्यों इतनी खींचातानी
बार..बार याद आए नानी ।
आओ सब मिल .............।
ताम झाम तो बढे
पुटरिया ज्यों की त्यों है
टाबर ऊँचे हुये
झोपड़ियाँ ऐसी क्यों है
फक्कड़ ही रह गये आज
बस्ती बस्ती के लोग
कुछ बन गये अमीर
कुछेक मे बनने के सँजोग
आओ सब मिल सोचे रे भैया
क्यों इतनी है ,मनमानी
बार बार याद आए नानी ।
घर आँगन जगमग करते पर
मन मे हुये अँधेरे
दुनिया कहती जाये सुन रे
ये माया के फेरे
बनते गये समुद्र
नदी भी न रह पाई छुद्र
सबके सब है धुत्त
रमैया फिर भी रहता क्रुध
मनाएँ आजादी के जश्न
ढुकरिया रूठीं क्यों है
आओ सब मिल सोचे रे भैया
क्यों इतनी है बेईमानी
बार बार याद आए नानी ।
कमलेश कुमार दीवान
१४ अक्तूबर १९९७

गुरुवार, 6 अगस्त 2009

प्रार्थनाओ के युगों में..मीत मेरे

प्रार्थनाओ के युगों में..मीत मेरे
प्रार्थनाओं के युगो मे
मीत मेरे,
तुम हमारे साथ मिलकर
गुनगुनाओ ,गीत गाओ ।
बीज वोये थे सृजन के
आज अँकुराने लगे हैं
कारवाँ को रोककर
ये रास्ते जाने लगे हैं
मँजिले है दूर उनके
सिलसिले भर रह गये हैं
अर्हताओं के युगो में
मीत मेरे
तुम हवा के साथ मिलकर
खुद ही खुद ही गाना सीख जाओ ।
प्रार्थनाओं के युगों मे
मीत मेरे
तुम हमारे साथ मिलकर
गुनगुनाओ,गीत गाओ ।
प्रार्थनाएँ की अहिल्या ने
युगों से ठुकराई वही नारी बनी थी
प्रार्थना से भिल्लनी..शबरी
भक्ति पथ की सही अधिकारी बनी थी
प्रार्थनाएँ दुःखों के संहार की थी
प्रार्थनाएँ एक नये अवतार की थी
प्रार्थनाओं से हम बनाते राम
वही फिर दुःख भोगता,अभिषाप ढोता है
वर्जनाओ के युगो मे
मीत मेरे
तुम हमारे साथ मिलकर बीत जाओ।
प्रार्थनाओ के युगो मे
तुम हमारे साथ मिलकर
गुनगुनाओ, गीत गाओ ।
कमलेश कुमार दीवान
०२ अप्रेल ०६

छोटे छोटे हाशियाँ

छोटे छोटे हाशियाँ
छोटे छोटे हाशियाँ है
कितनी बड़ी जमात,
जात पाँत के खाने बढते
घटती गई समात।
कागज पत्तर दौड़ रहे हैं
बड़े बड़े गिनतारे ले
घूमे राम रहीमा चाचा
बड़े चढे गुणतारे ले
सड़के और मदरसे होंगे
गाँव गाँव की दूरी पर
नहीं रखेगा कोई किसी को
फोकटिया मजदूरी पर
साहूकार नही हाँकेगा
रेबड़ अपने ढोरों की
यह सरकार बनी है अपनी
नही चलेगी औरों की
समझाये पर कौन क्या हुआ
सब अग्रेजी भाषा मे
लुटते रहे पतंगों जैसे
आसमान की आशा मे
बड़े बड़े सपने है भैया
छोटी छोटी मात ।
जाति पाँति के खाने बढते
घटती गई समात।
कमलेश कुमार दीवान
९ मार्च १९९४

रविवार, 26 जुलाई 2009

गगन मै

गगन मै
गगन मै
उड़ते बिहग अनेक।
गगन मे
उड़ते ,बिहग अनेक ।
कोई अकेला
कोई सखा सँग
कोई..कोई विशेष ।
गगन में,
उड़ते बिहग अनेक ।
कमलेश कुमार दीवान

मंगलवार, 7 जुलाई 2009

चिड़ियों की चिंताओं मे

चिड़ियों की चिंताओं मे

ओ चिड़ियो , ओ चिड़ियो
पंख फड़फड़ाओ मत
उड़ के तुम दूर कहीं जाओ मत
गाओ गुनगुनाओं मत
खिलखिला के हँसना सब दूर मना
ये पर्वत ,नदियाँ ,झील, सागर के साथ साथ
नीला आकाश खूब बना ठना है
आसपास एक छोटा पिंजरा बना है
ओ चिड़ियो ओ चिड़ियो ओ चिड़ियो
फंख फड़फड़ाओ मत
गाओ गुनगुनाओ मत
खिलखिला के हँसना सब दूर मना है।
अब कितना मुश्किल है
खोखले से बरगद पर घौसला बनाना
खतरनाक हो गया है
दूर हरे खेतों से चुग्गा ले आना
दुनका दाना पानी सब यहीं बुलाने दो
उड़ना पर तौलना सब दूर मना है।
ओ चिड़ियो ओ चिड़ियो ओ चिड़ियो
फंख फड़फड़ाओ मत
उनको फुरफुराने दो
गाओ मत गीत कोई
उनको ही गाने दो
आस पास आओ मत
उनको मँडराने दो
नीला आकाश खूब बना ठना है।
ओ चिड़ियो ओ चिड़ियो ओ चिड़ियो
आस पास एक छोटा पिंजरा बना है।
कमलेश कुमार दीवान
०८ मार्च १९९५

रविवार, 7 जून 2009

क्या करूँ मेरे मना....... गीत

suniye
क्या करूँ मेरे मना....... गीत

क्या करूँ , मै क्या करूँ मेरे मना
दिल नहीं लगता है,रहता अनमना।

ऐसा लगता,भागते रहने से
सब कुछ खो रहा है
जिंदगी के गीत गाये साथ साथ
अब खुशी के साथ भी कुछ हो रहा है।
दिल नहीं लगता है ,रहता अनमना
क्या करूँ मै क्या करूँ मेरे मना ।

ठहरना ,चलना,ठिठकना, याद रखना भूलना
शुष्क ॠतुओं मे उपजना,लहलहाना
और फलना फूलना
आए मौसम जब बहारों का
मुस्कराने ,मचलने और श्रृगारों का
भूलकर होती नहीँ है कल्पना ।
क्या करूँ मै क्या करूँ मेरे मना
दिल नहीं लगता है रहता अनमना ।

क्या अधेंरी रात का आकाश या तारा बनूँ
बादलों बरसात की एक बूँद ,जल सारा बनूँ
या कि सागर झील का मोती रहूँ
सीप में पलते हुए संसार का कारा बनूँ
पीर हरने का सहारा जन्मना.
दिल नहीं लगता है रहता अनमना ।

क्या करूँ मै क्या करूँ मेरे मना
दिल नहीं लगता है रहता अनमना ।

कमलेश कुमार दीवान
०१ मई २००६

बुधवार, 20 मई 2009

दरबारों मे खास हुए हैं

दरबारों मे खास हुए हैं
दरबारो मे
खास हुए हैं
आम लोग सारे ,
आम लोग सारे ।
गलियारो मे
पहरे...पहरे
जनता दरवाजो पर ठहरे ,
मुट्ठी भर जनत्तंत्र यहाँ पर
अधिनायक सारे ,।
दरबारो मे खास हुए हैं
आम लोग सारे ,।
आम लोग सारे ।
राज निरंकुश
काज निरंकुश
इनके सारे बाज निरंकुश
लोक नही
मनतंत्र यहाँ पर
गणनायक हारे ।
दरबारो मे खास हुए हैं
आम लोग सारे ।
आम लोग सारे।
ठहर गए
कानून नियम सब
खाली सब आदेश
मुफलिस की
आँखों मे आँसू
हरकारे दरवेश,
ऊँच..नीच के भेद वही हैं
काले वही ,सफेद वही है
स्वेच्छाचारी और अनिवारक
मणिबाहक सारे।
दरबारो मे खास हुए है्
आम लोग सारे ।
आम लोग सारे ।
कमलेश कुमार दीवान
मई १९९३

मंगलवार, 5 मई 2009

आज गाने,गुनगुनाने का,नहीं मौसम...

suniye
नहीं मौसम...
आज गाने,गुनगुनाने का,
नहीं मौसम
नाते रिश्ते आजमाने का ,
नहीं मौसम
घर बनाने और बसाने का,
समय है
उनको ढेलो से ढहानें का,
नहीं मौसम
आज गाने गुनगुनाने का
नही मौसम ।
मेरे तेरे,इसके उसके
फेर मे हम सब पड़े है
कुछ लकीरे खींचकर एक
चौखटे मे सब जड़े हैं
कायदा है समय से
सब कुछ भुनाने का
आज अपने दिल जलाने का
नहीं मौसम ।
आज गाने गुनगुनाने का
नहीं मौसम ।
एक मकसद,एकमँजिल,
एक ही राहें हमारी
क्रातियाँ ,जेहाद्द से दूने हुये दुःख
फिर कटी बाहें हमारी
जलजलों ,बीमारियों का कहर
बरपा है,
गुम हुई हैं बेटियाँ जब शहर
तड़फा है
यातनायें,मौत पर दो चार आँसू
और फिर मातम,मनाने का
नहीं मौसम ।
आज गाने गुनगुनाने का
नहीं मौसम ।
दूर हो जाये गरीबी जब
जलजलों के कहर
सालेंगें नहीं
गोलियाँ ,बारूद बम और एटम का
क्या करेगें युध्द
पालेंगे नहीं
दरकते,और टूटते रिश्तों के पुल
बनानें का समय है
सरहदों को खून की
नदियाँ बनाने का
नहीं मौसम ।
आज गाने गुनगुनाने का
नहीं मौसम ।
कमलेश कुमार दीवान
८ जून १९९४

सोमवार, 4 मई 2009

आशाओं के सृजन का गीत ...." ओ सूरज "

suniye
आशाओं के सृजन का गीत
ओ सूरज
ओ सूरज तुम हटो ,मुझे भी
आसमान मे आना है
पँख लगा उड़ जाना है ।
पँख लगा उड़ जाना है ।
चाहे अँधियारे घिर आएँ
सिर फोड़े तूफान
मेरी राह नहीं आयेगें
नदियों के उँचे ऊफान
ओ चँदा तुम किरन बिखेरों
तारों मे छिप जाना है ।
पँख लगा उड़ जाना है।
ओ सूरज तुम हटो, मुझे भी
आसमान मे आना है
पँख लगा उड़ जाना है ।
कमलेश कुमार दीवान