.नव वर्ष
सुख बिखर सिमटते रहे
तिमिर घन
घटते बढ़ते रहें
प्रण टूटे ,
मौन और विस्तृत
स्वीकारे उत्कर्ष ,
नये आये है,वर्ष ।
शुभ मँगलकामनाओ सहित सादर समर्पित है।
कमलेश कुमार दीवान
यह ब्लॉग खोजें
बुधवार, 30 दिसंबर 2009
सोमवार, 28 दिसंबर 2009
ॠतु गीत ..शीत सर्द हवाएँ
ॠतु गीत ..शीत
सर्द हवाएँ
अबकी बार,बहुत दिन बीते
लौटी सर्द हवाओं को ।
लौटी सर्द हवाओं को ।
काँप गई थी ,धूँप
चाँदनी कितनी शीतल थी
नदियाँ गाढी हुई
हवाएँ बेहद विचलित थी।
व्यर्थ हुये आलाव
आँच के धीमे होने से
फसलें ठिठुरी और फुगनियाँ
सहमी ..सहमी सी ।
अबकी बार बहुत दिन सहते
रहे विवाई पाँवों की।
अबकी बार बहुत दिन बीते
लौटी सर्द हवाओं को।
लौटी सर्द हवाओं को।
कमलेश कुमार दीवान
८ जनवरी ९५
सर्द हवाएँ
अबकी बार,बहुत दिन बीते
लौटी सर्द हवाओं को ।
लौटी सर्द हवाओं को ।
काँप गई थी ,धूँप
चाँदनी कितनी शीतल थी
नदियाँ गाढी हुई
हवाएँ बेहद विचलित थी।
व्यर्थ हुये आलाव
आँच के धीमे होने से
फसलें ठिठुरी और फुगनियाँ
सहमी ..सहमी सी ।
अबकी बार बहुत दिन सहते
रहे विवाई पाँवों की।
अबकी बार बहुत दिन बीते
लौटी सर्द हवाओं को।
लौटी सर्द हवाओं को।
कमलेश कुमार दीवान
८ जनवरी ९५
शनिवार, 19 दिसंबर 2009
राम चरण मे
राम चरण मे
लगा ले मन
राम चरण में प्रीत ।
सुख.. सम्पति सब
धरी रहत है
यही जगत की रीत।
लगा ले मन
राम चरण मे प्रीत ।
कमलेश कुमार दीवान
१६ मई २००८
लगा ले मन
राम चरण में प्रीत ।
सुख.. सम्पति सब
धरी रहत है
यही जगत की रीत।
लगा ले मन
राम चरण मे प्रीत ।
कमलेश कुमार दीवान
१६ मई २००८
गुरुवार, 17 दिसंबर 2009
रे मन
भजन....
रे मन
रे मन
काहे तू इतना डरे ।
पवन पुत्र तेरे
संग..साथ है
गणपति विध्न हरे ।।
रे मन..
काहे तू इतना डरे ।
कमलेश कुमार दीवान
25/10/09
रे मन
रे मन
काहे तू इतना डरे ।
पवन पुत्र तेरे
संग..साथ है
गणपति विध्न हरे ।।
रे मन..
काहे तू इतना डरे ।
कमलेश कुमार दीवान
25/10/09
रविवार, 8 नवंबर 2009
कैसी बीत रही है (एक गीत )
कैसी बीत रही है
मै अचछा हूँ
आप बताये
कैसी बीत रही है ।
घर आँगन
सूना सूना है
खाली खाली दिन और रात ,
अपने है सब
रूठे रूठे
कही न कोई ऐसी बात,
मै बचता हूँ
आप बताये
कैसे जीत रही ।
क्या तुमने
माँ बाबा के बीच
सुलह करबाई है
बहन भाई के बीच
हुई क्यों
मार पिटाई है ,
क्या कक्षा में
डाँट पड़ी या
फिर मौसम की मार
क्या बस्तो के बोझ तले
हो रही पढाई है ।
मै अच्छा हूँ
आप बताये
कैसे सीख रहीं है
कैसे बीत रही है ।
कमलेश कुमार दीवान
१३ अगस्त २००९
मै अचछा हूँ
आप बताये
कैसी बीत रही है ।
घर आँगन
सूना सूना है
खाली खाली दिन और रात ,
अपने है सब
रूठे रूठे
कही न कोई ऐसी बात,
मै बचता हूँ
आप बताये
कैसे जीत रही ।
क्या तुमने
माँ बाबा के बीच
सुलह करबाई है
बहन भाई के बीच
हुई क्यों
मार पिटाई है ,
क्या कक्षा में
डाँट पड़ी या
फिर मौसम की मार
क्या बस्तो के बोझ तले
हो रही पढाई है ।
मै अच्छा हूँ
आप बताये
कैसे सीख रहीं है
कैसे बीत रही है ।
कमलेश कुमार दीवान
१३ अगस्त २००९
मंगलवार, 27 अक्टूबर 2009
।।करें बँदना मैया तोरी ।।
।।करें बँदना मैया तोरी ।।
करें बँदना
मैया तोरी ।
रहे सब सुखी
हो समृध्दशाली,
बहू बेटियाँ
हों सौभाग्य वाली।
यही अर्चना
मैया मोरी ।
करे बँदना मैया तौरी।
करे कामना जो
माँ शेरों वाली
तेरे दर से कोई न
जा पाये खाली
यही प्रार्थना है
मैया मोरी ।
करे बँदना ,मैया तोरी ।
कमलेश कुमार दीवान
24/09/2009
करें बँदना
मैया तोरी ।
रहे सब सुखी
हो समृध्दशाली,
बहू बेटियाँ
हों सौभाग्य वाली।
यही अर्चना
मैया मोरी ।
करे बँदना मैया तौरी।
करे कामना जो
माँ शेरों वाली
तेरे दर से कोई न
जा पाये खाली
यही प्रार्थना है
मैया मोरी ।
करे बँदना ,मैया तोरी ।
कमलेश कुमार दीवान
24/09/2009
शुक्रवार, 23 अक्टूबर 2009
हमे कुछ करना चाहिये
हमे कुछ करना चाहिये
कमलेश कुमार दीवान
जब भी हम उदास होते हैं
अपने हालात पर लिखते हैं,कविताएँ
गाते गुनगुनाते है,कोई मनपसंद गीत
या फिर चलते चले जाते है उस ओर
जहाँ रास्तो मे मंजिले नही होती
नहीं होते है घर,शोर मचाते बच्चे
लोरियाँ सुनाती धाँय माँ,
कहानियाँ कहती दादी नानी
किस्से हाँकते बाबा और बचपन के दिन
सब पास और अधिक पास आ जाते हैं
तब लगता है ,हमे कुछ करना चाहिये ।
हम जो चाहते हैं वह यही है कि.....
नदियाँ तालाब पोखर या समुंदर के किनारे जाएँ
फेके उनमे पतली चिप्पियाँ और छपाक उछलती कूद गिनें
कुये के पाट पर जाये ,उनमे ढूँके,बोम मारे
फैक दे बड़ी सी ईट और सुने धमाक।
अमियाँ तोड़े या डाली
या पेड़ों पर चढकर झूले और कूद पड़े
बागों से चुने फूल या निहारे खूबसूरती
माली की प्रशंसा मे गीत लिखे या खाये गाली
सच तो यही है कि हम
करना चाहते बही सब कुछ जो करते रहे है पर
ओहदों की याद,शहर की आदतें और
उत्तर आधुनिक समय
हाँक रहा होता है हमें
तब लगता है
हमे कुछ और करना चाहिये
उनमे से कुछ होती है..
बड़े होते बच्चों पर झिड़कियाँ
नौकरी पर जाती औरतो पर फिकरे
खाँसते..खखारते पिता पर ताने और
बर्तन माँजती माँ..बीबी पर टिप्पणियाँ
भाई बहन के लिये उलाहनें
बचे हुये लोगो के लिये लानत ..मनालत
हम यही सब तो करते हैं
जो नहीं करना चाहिये ,फिर भी.
क्या हमे कुछ करना चाहिये ?
कमलेश कुमार दीवान
१७ अप्रेल २००५
कमलेश कुमार दीवान
जब भी हम उदास होते हैं
अपने हालात पर लिखते हैं,कविताएँ
गाते गुनगुनाते है,कोई मनपसंद गीत
या फिर चलते चले जाते है उस ओर
जहाँ रास्तो मे मंजिले नही होती
नहीं होते है घर,शोर मचाते बच्चे
लोरियाँ सुनाती धाँय माँ,
कहानियाँ कहती दादी नानी
किस्से हाँकते बाबा और बचपन के दिन
सब पास और अधिक पास आ जाते हैं
तब लगता है ,हमे कुछ करना चाहिये ।
हम जो चाहते हैं वह यही है कि.....
नदियाँ तालाब पोखर या समुंदर के किनारे जाएँ
फेके उनमे पतली चिप्पियाँ और छपाक उछलती कूद गिनें
कुये के पाट पर जाये ,उनमे ढूँके,बोम मारे
फैक दे बड़ी सी ईट और सुने धमाक।
अमियाँ तोड़े या डाली
या पेड़ों पर चढकर झूले और कूद पड़े
बागों से चुने फूल या निहारे खूबसूरती
माली की प्रशंसा मे गीत लिखे या खाये गाली
सच तो यही है कि हम
करना चाहते बही सब कुछ जो करते रहे है पर
ओहदों की याद,शहर की आदतें और
उत्तर आधुनिक समय
हाँक रहा होता है हमें
तब लगता है
हमे कुछ और करना चाहिये
उनमे से कुछ होती है..
बड़े होते बच्चों पर झिड़कियाँ
नौकरी पर जाती औरतो पर फिकरे
खाँसते..खखारते पिता पर ताने और
बर्तन माँजती माँ..बीबी पर टिप्पणियाँ
भाई बहन के लिये उलाहनें
बचे हुये लोगो के लिये लानत ..मनालत
हम यही सब तो करते हैं
जो नहीं करना चाहिये ,फिर भी.
क्या हमे कुछ करना चाहिये ?
कमलेश कुमार दीवान
१७ अप्रेल २००५
शनिवार, 17 अक्टूबर 2009
दीप पर्व शुभ हो
।।ॐ श्री गणेशाय नमः।।
दीप पर्व शुभ हो
आलोकित हो गये
तिमिर पथ
लघु विस्तृत,आकाश और वृत्
प्रमुदित प्राण अर्थ अर्पित है
और
दीपोत्सव के पर्व।
कमलेश कुमार दीवान
अध्यापक एवम् लेखक
होशंगाबाद म.प्र.
दीप पर्व शुभ हो
आलोकित हो गये
तिमिर पथ
लघु विस्तृत,आकाश और वृत्
प्रमुदित प्राण अर्थ अर्पित है
और
दीपोत्सव के पर्व।
कमलेश कुमार दीवान
अध्यापक एवम् लेखक
होशंगाबाद म.प्र.
बुधवार, 14 अक्टूबर 2009
दो कदम साथ हो ले
दो कदम साथ हो ले
ये तन्हाईयाँ भी
डराने लगी हैं
मेरे हमसफर ,दो कदम साथ हो ले ।
बहुत पास थे ,रास्ते
मुड़ के देखा
कदम दो मिलाते
तो मँजिल ही होती
कई खौफ थे जिनसे
डरते रहे हम
नकाबों,लिबासों में
मरते रहे हम
बड़े सपने आँखों मे
बसते गये थे
बही आज फिर भय
सजाने लगी हैं
ये तन्हाईयाँ भी
डराने लगी हैं
मेरे हमसफर दो कदम साथ हो लें ।
कमलेश कुमार दीवान
ये तन्हाईयाँ भी
डराने लगी हैं
मेरे हमसफर ,दो कदम साथ हो ले ।
बहुत पास थे ,रास्ते
मुड़ के देखा
कदम दो मिलाते
तो मँजिल ही होती
कई खौफ थे जिनसे
डरते रहे हम
नकाबों,लिबासों में
मरते रहे हम
बड़े सपने आँखों मे
बसते गये थे
बही आज फिर भय
सजाने लगी हैं
ये तन्हाईयाँ भी
डराने लगी हैं
मेरे हमसफर दो कदम साथ हो लें ।
कमलेश कुमार दीवान
रात चाँद बच्चे और सूरज
रात चाँद बच्चे और सूरज
(कमलेश कुमार दीवान)
चाँद से राते नहीं नापी जा सकती
रातो के माप नींद और सपने भी नहीं हैं
उसनींदे मरते लोगो की रातें लम्बी दोपहर तक खिचतीं है
इसलिये पैमाइश सूरज का प्रकाश भी नहीं हो सकता हैं
दूर टिमटिमाते तारे और ज्यादा तेज चमककर जताते तो है कि
रातें अब समाप्त होने वाली है ,पर
भोर के आकाशदीप भी अब
राते समाप्त नहीं कर सकते हैं
रातें अब
मुर्गे की बाँग और चिड़ियों के कलरव से भी नहीं सिमट रही हैं
बूढ़ों के खाँसते खकारते रहने,नही सोने,जागते रहने
बच्चों के रोते रहने और बाकी सबके खर्राटे लेने से भी
नहीं खुटती है रातें
आधुनिक गुफाओं जैसे घर में
छोटे छोटे सूरज टाँगकर आदमी सोता ही कहाँ है
इन सबके बाबजूद सूरज ही तय करता है दिन
कोई तो है जो बादलों की तरह अनियमित नहीं है
बसों ,रेलगाड़ियों,हवाई जहाजों की तरह लेट लतीफ भी नहीं हैं
बिजली की तरह आता जाता और मशीनो की तरह घनघनाता नहीं हैं
उसका अपना समय है और उस काल के साथ वह है
यदि ऐसा नहीं हो तब चिल्लाते रहें मुर्गे,बूढ़े खाँसते खँकारते सिधार जायें
बच्चे कितने ही रिरियायें,रोते बिलखते रहें
चिड़ियों के झुँड के झुँड कलरव करें
औरतें दहशत से सिहर जायें
आदमी मुँह ढाँपकर मर जाएँ
कुछ नहीं होगा तब राते ही रातें होगीं
हजारो हजार घोड़ों के रथ पर सवार सूरज
तुम यदि दिशाएँ याद रखना भूल जाओं तो
मेरी बच्ची का दिशा सूचक यंत्र ले जाना
प्रश्नो का व्यापार करते विश्व मे
उत्तर का बोध सबसे जरुरी है
बच्चों की,हवाओं और पानी बाले बादलों की दिशाएँ
उसी से तय हो रहीं हैं
बच्चो के सर के ऊपर उत्तर और पेरो के नीचे दक्षिण है
बच्चो के दाहिने बाएँ बदलती रहती है दिशाएँ
यहाँ कुछ तो रातें तय करती है
कुछ चाँद तारे और सूरज
बाँकी सब बच्चों के हिस्से मे हैं
आधी रात तक जागते और देर तक सोते लोगों के पास
शायद कुछ नहीं है
रातो ने तय कर दिया है सबकी सुबह दोपहर तक होगी ।
कमलेश कुमार दीवान
नोट.. यह कविता समकालीन भारतीय साहित्य नई दिल्ली के
अंक 84 जुलाई अगस्त 1999 मे प्रकाशित हुई है।
(कमलेश कुमार दीवान)
चाँद से राते नहीं नापी जा सकती
रातो के माप नींद और सपने भी नहीं हैं
उसनींदे मरते लोगो की रातें लम्बी दोपहर तक खिचतीं है
इसलिये पैमाइश सूरज का प्रकाश भी नहीं हो सकता हैं
दूर टिमटिमाते तारे और ज्यादा तेज चमककर जताते तो है कि
रातें अब समाप्त होने वाली है ,पर
भोर के आकाशदीप भी अब
राते समाप्त नहीं कर सकते हैं
रातें अब
मुर्गे की बाँग और चिड़ियों के कलरव से भी नहीं सिमट रही हैं
बूढ़ों के खाँसते खकारते रहने,नही सोने,जागते रहने
बच्चों के रोते रहने और बाकी सबके खर्राटे लेने से भी
नहीं खुटती है रातें
आधुनिक गुफाओं जैसे घर में
छोटे छोटे सूरज टाँगकर आदमी सोता ही कहाँ है
इन सबके बाबजूद सूरज ही तय करता है दिन
कोई तो है जो बादलों की तरह अनियमित नहीं है
बसों ,रेलगाड़ियों,हवाई जहाजों की तरह लेट लतीफ भी नहीं हैं
बिजली की तरह आता जाता और मशीनो की तरह घनघनाता नहीं हैं
उसका अपना समय है और उस काल के साथ वह है
यदि ऐसा नहीं हो तब चिल्लाते रहें मुर्गे,बूढ़े खाँसते खँकारते सिधार जायें
बच्चे कितने ही रिरियायें,रोते बिलखते रहें
चिड़ियों के झुँड के झुँड कलरव करें
औरतें दहशत से सिहर जायें
आदमी मुँह ढाँपकर मर जाएँ
कुछ नहीं होगा तब राते ही रातें होगीं
हजारो हजार घोड़ों के रथ पर सवार सूरज
तुम यदि दिशाएँ याद रखना भूल जाओं तो
मेरी बच्ची का दिशा सूचक यंत्र ले जाना
प्रश्नो का व्यापार करते विश्व मे
उत्तर का बोध सबसे जरुरी है
बच्चों की,हवाओं और पानी बाले बादलों की दिशाएँ
उसी से तय हो रहीं हैं
बच्चो के सर के ऊपर उत्तर और पेरो के नीचे दक्षिण है
बच्चो के दाहिने बाएँ बदलती रहती है दिशाएँ
यहाँ कुछ तो रातें तय करती है
कुछ चाँद तारे और सूरज
बाँकी सब बच्चों के हिस्से मे हैं
आधी रात तक जागते और देर तक सोते लोगों के पास
शायद कुछ नहीं है
रातो ने तय कर दिया है सबकी सुबह दोपहर तक होगी ।
कमलेश कुमार दीवान
नोट.. यह कविता समकालीन भारतीय साहित्य नई दिल्ली के
अंक 84 जुलाई अगस्त 1999 मे प्रकाशित हुई है।
गुरुवार, 8 अक्टूबर 2009
मै तन्हा तन्हा तेरे
मैं तन्हा..तन्हा,तेरे रास्तों से गुजरा हूँ
मुकाम मेरे ,रहबरों ने ही तलाश किये ।
लम्हें खुशी के भी आए,दुःखों के ठहरे शहर
तमाम मेरे मुखबिरो ने ही खलाश किये ।
नए नए से असर फितरतों से पलते गये
शमाएँ रोशनी में आठों पहर जलते गये
निशाँ जमीं पे बने,बिगड़े डगमगाए कदम
सदाएँ मौसमी सहते गये सिहरते गये।
मैं जहाँ जहाँ भी तेरे रास्ते से गुजरा हूँ
मुकाम मेरे सिरफिरों ने ही तलाश किये।
गलत सही के हिसाबो..किताब कौन रखें
चला चलूँ तो,मालों.आसबाब कौन रखे।
एक अदद दिल पे ही काबूँ नहीं रखा जाता
उतार फेंकूँ तो फिर ये लिबास कौन रखें।
मेरी तासीर मँजिलों को ढूँढना तो नहीं
एक मकसद कि सारा जहाँन मौन रहे
मै कहाँ कहाँ से तेरे वास्ते से गुजरा हूँ
मुकाम मेरे दिलजलों ने ही तलाश किये।
मै तन्हाँ तन्हाँ तेरे रास्तों से गुजरा हूँ
मुकाम मेरे रहबरों ने ही तलाश किये।
कमलेश कुमार दीवान
८ जून १९९४
मुकाम मेरे ,रहबरों ने ही तलाश किये ।
लम्हें खुशी के भी आए,दुःखों के ठहरे शहर
तमाम मेरे मुखबिरो ने ही खलाश किये ।
नए नए से असर फितरतों से पलते गये
शमाएँ रोशनी में आठों पहर जलते गये
निशाँ जमीं पे बने,बिगड़े डगमगाए कदम
सदाएँ मौसमी सहते गये सिहरते गये।
मैं जहाँ जहाँ भी तेरे रास्ते से गुजरा हूँ
मुकाम मेरे सिरफिरों ने ही तलाश किये।
गलत सही के हिसाबो..किताब कौन रखें
चला चलूँ तो,मालों.आसबाब कौन रखे।
एक अदद दिल पे ही काबूँ नहीं रखा जाता
उतार फेंकूँ तो फिर ये लिबास कौन रखें।
मेरी तासीर मँजिलों को ढूँढना तो नहीं
एक मकसद कि सारा जहाँन मौन रहे
मै कहाँ कहाँ से तेरे वास्ते से गुजरा हूँ
मुकाम मेरे दिलजलों ने ही तलाश किये।
मै तन्हाँ तन्हाँ तेरे रास्तों से गुजरा हूँ
मुकाम मेरे रहबरों ने ही तलाश किये।
कमलेश कुमार दीवान
८ जून १९९४
शनिवार, 26 सितंबर 2009
।।करें बँदना मैया तोरी ।।
।।करें बँदना मैया तोरी ।।
करें बँदना
मैया तोरी ।
रहे सब सुखी
हो समृध्दशाली,
तेरे दर से कोई
न जाये खाली ।
यही कामना है
माँ शेरावाली
यही प्रार्थना है
मैया मोरी ।
करे बँदना ,मैया तोरी ।
कमलेश कुमार दीवान
24/09/2009
करें बँदना
मैया तोरी ।
रहे सब सुखी
हो समृध्दशाली,
तेरे दर से कोई
न जाये खाली ।
यही कामना है
माँ शेरावाली
यही प्रार्थना है
मैया मोरी ।
करे बँदना ,मैया तोरी ।
कमलेश कुमार दीवान
24/09/2009
सोमवार, 21 सितंबर 2009
श्याम मोरे (प्रार्थना भजन)
श्याम मोरे (प्रार्थना भजन)
श्याम मोरे ,श्याम मोरे ,श्याम मोरे
फिर तुझे आना पड़ेगा
फिर तुझे आना पड़ेगा ।
आज फिर मीरा को
विष देकर ,सुधारा जा रहा है
द्रोपदी के चीर से ,
पर्वत बनाया जा रहा है ।
सूर,उद्वव,नँद-जसुमति
देवकी बसुदेव सब है
पर बहुत है कंस,
फिर कारां बनायाँ जा रहा है ।
रूख्मणि -राधा अकेली
गोपियों की बँद बोली
ओ कन्हैया कालिया वध
के लिये आना पड़ेगा ।
श्याम मोरे,श्याम मोरे,श्याम मोरे
फिर तुझे आना पड़ेगा
फिर तुझे आना पड़ेगा।
कमलेश कुमार दीवान
21/09/1998
श्याम मोरे ,श्याम मोरे ,श्याम मोरे
फिर तुझे आना पड़ेगा
फिर तुझे आना पड़ेगा ।
आज फिर मीरा को
विष देकर ,सुधारा जा रहा है
द्रोपदी के चीर से ,
पर्वत बनाया जा रहा है ।
सूर,उद्वव,नँद-जसुमति
देवकी बसुदेव सब है
पर बहुत है कंस,
फिर कारां बनायाँ जा रहा है ।
रूख्मणि -राधा अकेली
गोपियों की बँद बोली
ओ कन्हैया कालिया वध
के लिये आना पड़ेगा ।
श्याम मोरे,श्याम मोरे,श्याम मोरे
फिर तुझे आना पड़ेगा
फिर तुझे आना पड़ेगा।
कमलेश कुमार दीवान
21/09/1998
शुक्रवार, 18 सितंबर 2009
नर्मदा मैया
नर्मदा मैया
नर्मदा मैया ,
ऐसी बहे रे........
अमरकंटक से खम्बात हो ।
नर्मदा मैया है रे ..।
घाटन घाट
पुजावे शँकर ,
घाट घाट पे राम ।
जिनने भी परिक्रमा
कर लई
कर लये चारो धाम ।
नर्मदा मैया
ऐसी बहे रे ....।.
कमलेश कुमार दीवान
18/09/2009
नर्मदा मैया ,
ऐसी बहे रे........
अमरकंटक से खम्बात हो ।
नर्मदा मैया है रे ..।
घाटन घाट
पुजावे शँकर ,
घाट घाट पे राम ।
जिनने भी परिक्रमा
कर लई
कर लये चारो धाम ।
नर्मदा मैया
ऐसी बहे रे ....।.
कमलेश कुमार दीवान
18/09/2009
नर्मदा मैया
नर्मदा मैया
नर्मदा मैया ,
ऐसी बहे रे........
अमरकंटक से खम्बात हो ।
नर्मदा मैया है रे ..।
घाटन घाट
पुजावे शँकर ,
घाट घाट पे राम ।
जिनने भी परिक्रमा
कर लई
कर लये चारो धाम ।
नर्मदा मैया
ऐसी बहे रे ....।.
कमलेश कुमार दीवान
18/09/2009
नर्मदा मैया ,
ऐसी बहे रे........
अमरकंटक से खम्बात हो ।
नर्मदा मैया है रे ..।
घाटन घाट
पुजावे शँकर ,
घाट घाट पे राम ।
जिनने भी परिक्रमा
कर लई
कर लये चारो धाम ।
नर्मदा मैया
ऐसी बहे रे ....।.
कमलेश कुमार दीवान
18/09/2009
बुधवार, 2 सितंबर 2009
॥ॐ श्री गणेशाय नमः॥ स्तुति बँदना
॥ॐ श्री गणेशाय नमः॥
स्तुति बँदना
गजानन रखियो सबकी लाज।
हे गणपति हे विध्न विनाशक
होवे सुफल सब काज
गजानन रखियो सबकी लाज ।
कोई माँगे रिध्दि सिध्दि
कोई चाहे शुभ लाभ
देना सबको विद्या बुध्दि
और सुमति के साज
गजानन रखियो सबकी लाज ।
कमलेश कुमार दीवान
२३ अगस्त २००९ गणेश चतुर्थी
स्तुति बँदना
गजानन रखियो सबकी लाज।
हे गणपति हे विध्न विनाशक
होवे सुफल सब काज
गजानन रखियो सबकी लाज ।
कोई माँगे रिध्दि सिध्दि
कोई चाहे शुभ लाभ
देना सबको विद्या बुध्दि
और सुमति के साज
गजानन रखियो सबकी लाज ।
कमलेश कुमार दीवान
२३ अगस्त २००९ गणेश चतुर्थी
सोमवार, 31 अगस्त 2009
मेघ गीत मेघ बरसो रे
मेघ गीत मेघ बरसो रे
मेघ बरसो रे
प्यासे देश,
बहां सब रीत गये ।
ताल तलैया ,नदियाँ सूखी
रीता हिया का नेह
मेघ बरसो रे पिया के देश ...
बहाँ सब बीत गये ।
कुम्लाऍ है
कमल कुमुदनी
घास पात और देह
उड़ उड़ टेर लगाये पपीहा
होते गये विदेह ।
मेघ हर्षो रे
प्यासे देश
यहाँ सब रीत गये ।
मेघ बरसो रे
पिया के देश
बहाँ सब रीत गये ।
कमलेश कुमार दीवान
दिनाँक २३अगस्त २००९
मेघ बरसो रे
प्यासे देश,
बहां सब रीत गये ।
ताल तलैया ,नदियाँ सूखी
रीता हिया का नेह
मेघ बरसो रे पिया के देश ...
बहाँ सब बीत गये ।
कुम्लाऍ है
कमल कुमुदनी
घास पात और देह
उड़ उड़ टेर लगाये पपीहा
होते गये विदेह ।
मेघ हर्षो रे
प्यासे देश
यहाँ सब रीत गये ।
मेघ बरसो रे
पिया के देश
बहाँ सब रीत गये ।
कमलेश कुमार दीवान
दिनाँक २३अगस्त २००९
रविवार, 23 अगस्त 2009
भजन ःः मेरो मन न अंत को पावे
॥श्री गणेशाय नमः॥
भजन ःः मेरो मन न अंत को पावे
मेरो मन न
अंत को पावे ।
मेरो मन न अंत को पावे।
जहाँ कोटि
ब्रम्हाण्ड बने हैं
जगा....जोत सम लागे।
मेरो मन न अंत को पावे ।
लोग कहत
उजियार जगत् में
जित देखा तम है,
एक सूरज से
क्या होता है
कई करोड़ कम हैं ।
टिम टिमाते
तारे.... तारे से
बार बार भरमावे ।
मेरा मन न, अंत को पावे।
जो दीखें न
अँधकार है
तब प्रकाश भ्रम है
भरम मिटे न
इस दुनियाँ का
आदि ... अनादि क्रम है।
तृण.... तृण
अनंत हो जावे ।
मेरो मन न, अंत को पावे ।
कमलेश कुमार दीवान
गणेश चतुर्थी रविवार
दिनाँक २३ अगस्त २००९
भजन ःः मेरो मन न अंत को पावे
मेरो मन न
अंत को पावे ।
मेरो मन न अंत को पावे।
जहाँ कोटि
ब्रम्हाण्ड बने हैं
जगा....जोत सम लागे।
मेरो मन न अंत को पावे ।
लोग कहत
उजियार जगत् में
जित देखा तम है,
एक सूरज से
क्या होता है
कई करोड़ कम हैं ।
टिम टिमाते
तारे.... तारे से
बार बार भरमावे ।
मेरा मन न, अंत को पावे।
जो दीखें न
अँधकार है
तब प्रकाश भ्रम है
भरम मिटे न
इस दुनियाँ का
आदि ... अनादि क्रम है।
तृण.... तृण
अनंत हो जावे ।
मेरो मन न, अंत को पावे ।
कमलेश कुमार दीवान
गणेश चतुर्थी रविवार
दिनाँक २३ अगस्त २००९
शुक्रवार, 21 अगस्त 2009
चिड़ियाँ रानी
चिड़ियाँ रानी
चिड़िया रानी आना
धूल मत नहाना
छोटी सी कटोरी मे
दाना रखा है ।
छोटे छोटे पँख तेरे
सारा है आकाश
दूर दूर जाती उड़ के
आती पास पास
मेरी छप्पर छानी मे
घौंसला बनाना
चिड़ियाँ रानी आना
चिड़िया रानी आना
कमलेश कुमार दीवान
चिड़िया रानी आना
धूल मत नहाना
छोटी सी कटोरी मे
दाना रखा है ।
छोटे छोटे पँख तेरे
सारा है आकाश
दूर दूर जाती उड़ के
आती पास पास
मेरी छप्पर छानी मे
घौंसला बनाना
चिड़ियाँ रानी आना
चिड़िया रानी आना
कमलेश कुमार दीवान
शनिवार, 8 अगस्त 2009
याद आये नानी
याद आये नानी
आओ सब मिल सोचे रे भैया
क्यों इतनी खींचातानी
बार..बार याद आए नानी ।
आओ सब मिल .............।
ताम झाम तो बढे
पुटरिया ज्यों की त्यों है
टाबर ऊँचे हुये
झोपड़ियाँ ऐसी क्यों है
फक्कड़ ही रह गये आज
बस्ती बस्ती के लोग
कुछ बन गये अमीर
कुछेक मे बनने के सँजोग
आओ सब मिल सोचे रे भैया
क्यों इतनी है ,मनमानी
बार बार याद आए नानी ।
घर आँगन जगमग करते पर
मन मे हुये अँधेरे
दुनिया कहती जाये सुन रे
ये माया के फेरे
बनते गये समुद्र
नदी भी न रह पाई छुद्र
सबके सब है धुत्त
रमैया फिर भी रहता क्रुध
मनाएँ आजादी के जश्न
ढुकरिया रूठीं क्यों है
आओ सब मिल सोचे रे भैया
क्यों इतनी है बेईमानी
बार बार याद आए नानी ।
कमलेश कुमार दीवान
१४ अक्तूबर १९९७
आओ सब मिल सोचे रे भैया
क्यों इतनी खींचातानी
बार..बार याद आए नानी ।
आओ सब मिल .............।
ताम झाम तो बढे
पुटरिया ज्यों की त्यों है
टाबर ऊँचे हुये
झोपड़ियाँ ऐसी क्यों है
फक्कड़ ही रह गये आज
बस्ती बस्ती के लोग
कुछ बन गये अमीर
कुछेक मे बनने के सँजोग
आओ सब मिल सोचे रे भैया
क्यों इतनी है ,मनमानी
बार बार याद आए नानी ।
घर आँगन जगमग करते पर
मन मे हुये अँधेरे
दुनिया कहती जाये सुन रे
ये माया के फेरे
बनते गये समुद्र
नदी भी न रह पाई छुद्र
सबके सब है धुत्त
रमैया फिर भी रहता क्रुध
मनाएँ आजादी के जश्न
ढुकरिया रूठीं क्यों है
आओ सब मिल सोचे रे भैया
क्यों इतनी है बेईमानी
बार बार याद आए नानी ।
कमलेश कुमार दीवान
१४ अक्तूबर १९९७
गुरुवार, 6 अगस्त 2009
प्रार्थनाओ के युगों में..मीत मेरे
प्रार्थनाओ के युगों में..मीत मेरे
प्रार्थनाओं के युगो मे
मीत मेरे,
तुम हमारे साथ मिलकर
गुनगुनाओ ,गीत गाओ ।
बीज वोये थे सृजन के
आज अँकुराने लगे हैं
कारवाँ को रोककर
ये रास्ते जाने लगे हैं
मँजिले है दूर उनके
सिलसिले भर रह गये हैं
अर्हताओं के युगो में
मीत मेरे
तुम हवा के साथ मिलकर
खुद ही खुद ही गाना सीख जाओ ।
प्रार्थनाओं के युगों मे
मीत मेरे
तुम हमारे साथ मिलकर
गुनगुनाओ,गीत गाओ ।
प्रार्थनाएँ की अहिल्या ने
युगों से ठुकराई वही नारी बनी थी
प्रार्थना से भिल्लनी..शबरी
भक्ति पथ की सही अधिकारी बनी थी
प्रार्थनाएँ दुःखों के संहार की थी
प्रार्थनाएँ एक नये अवतार की थी
प्रार्थनाओं से हम बनाते राम
वही फिर दुःख भोगता,अभिषाप ढोता है
वर्जनाओ के युगो मे
मीत मेरे
तुम हमारे साथ मिलकर बीत जाओ।
प्रार्थनाओ के युगो मे
तुम हमारे साथ मिलकर
गुनगुनाओ, गीत गाओ ।
कमलेश कुमार दीवान
०२ अप्रेल ०६
प्रार्थनाओं के युगो मे
मीत मेरे,
तुम हमारे साथ मिलकर
गुनगुनाओ ,गीत गाओ ।
बीज वोये थे सृजन के
आज अँकुराने लगे हैं
कारवाँ को रोककर
ये रास्ते जाने लगे हैं
मँजिले है दूर उनके
सिलसिले भर रह गये हैं
अर्हताओं के युगो में
मीत मेरे
तुम हवा के साथ मिलकर
खुद ही खुद ही गाना सीख जाओ ।
प्रार्थनाओं के युगों मे
मीत मेरे
तुम हमारे साथ मिलकर
गुनगुनाओ,गीत गाओ ।
प्रार्थनाएँ की अहिल्या ने
युगों से ठुकराई वही नारी बनी थी
प्रार्थना से भिल्लनी..शबरी
भक्ति पथ की सही अधिकारी बनी थी
प्रार्थनाएँ दुःखों के संहार की थी
प्रार्थनाएँ एक नये अवतार की थी
प्रार्थनाओं से हम बनाते राम
वही फिर दुःख भोगता,अभिषाप ढोता है
वर्जनाओ के युगो मे
मीत मेरे
तुम हमारे साथ मिलकर बीत जाओ।
प्रार्थनाओ के युगो मे
तुम हमारे साथ मिलकर
गुनगुनाओ, गीत गाओ ।
कमलेश कुमार दीवान
०२ अप्रेल ०६
छोटे छोटे हाशियाँ
छोटे छोटे हाशियाँ
छोटे छोटे हाशियाँ है
कितनी बड़ी जमात,
जात पाँत के खाने बढते
घटती गई समात।
कागज पत्तर दौड़ रहे हैं
बड़े बड़े गिनतारे ले
घूमे राम रहीमा चाचा
बड़े चढे गुणतारे ले
सड़के और मदरसे होंगे
गाँव गाँव की दूरी पर
नहीं रखेगा कोई किसी को
फोकटिया मजदूरी पर
साहूकार नही हाँकेगा
रेबड़ अपने ढोरों की
यह सरकार बनी है अपनी
नही चलेगी औरों की
समझाये पर कौन क्या हुआ
सब अग्रेजी भाषा मे
लुटते रहे पतंगों जैसे
आसमान की आशा मे
बड़े बड़े सपने है भैया
छोटी छोटी मात ।
जाति पाँति के खाने बढते
घटती गई समात।
कमलेश कुमार दीवान
९ मार्च १९९४
छोटे छोटे हाशियाँ है
कितनी बड़ी जमात,
जात पाँत के खाने बढते
घटती गई समात।
कागज पत्तर दौड़ रहे हैं
बड़े बड़े गिनतारे ले
घूमे राम रहीमा चाचा
बड़े चढे गुणतारे ले
सड़के और मदरसे होंगे
गाँव गाँव की दूरी पर
नहीं रखेगा कोई किसी को
फोकटिया मजदूरी पर
साहूकार नही हाँकेगा
रेबड़ अपने ढोरों की
यह सरकार बनी है अपनी
नही चलेगी औरों की
समझाये पर कौन क्या हुआ
सब अग्रेजी भाषा मे
लुटते रहे पतंगों जैसे
आसमान की आशा मे
बड़े बड़े सपने है भैया
छोटी छोटी मात ।
जाति पाँति के खाने बढते
घटती गई समात।
कमलेश कुमार दीवान
९ मार्च १९९४
रविवार, 26 जुलाई 2009
गगन मै
गगन मै
गगन मै
उड़ते बिहग अनेक।
गगन मे
उड़ते ,बिहग अनेक ।
कोई अकेला
कोई सखा सँग
कोई..कोई विशेष ।
गगन में,
उड़ते बिहग अनेक ।
कमलेश कुमार दीवान
गगन मै
उड़ते बिहग अनेक।
गगन मे
उड़ते ,बिहग अनेक ।
कोई अकेला
कोई सखा सँग
कोई..कोई विशेष ।
गगन में,
उड़ते बिहग अनेक ।
कमलेश कुमार दीवान
मंगलवार, 7 जुलाई 2009
चिड़ियों की चिंताओं मे
चिड़ियों की चिंताओं मे
ओ चिड़ियो , ओ चिड़ियो
पंख फड़फड़ाओ मत
उड़ के तुम दूर कहीं जाओ मत
गाओ गुनगुनाओं मत
खिलखिला के हँसना सब दूर मना
ये पर्वत ,नदियाँ ,झील, सागर के साथ साथ
नीला आकाश खूब बना ठना है
आसपास एक छोटा पिंजरा बना है
ओ चिड़ियो ओ चिड़ियो ओ चिड़ियो
फंख फड़फड़ाओ मत
गाओ गुनगुनाओ मत
खिलखिला के हँसना सब दूर मना है।
अब कितना मुश्किल है
खोखले से बरगद पर घौसला बनाना
खतरनाक हो गया है
दूर हरे खेतों से चुग्गा ले आना
दुनका दाना पानी सब यहीं बुलाने दो
उड़ना पर तौलना सब दूर मना है।
ओ चिड़ियो ओ चिड़ियो ओ चिड़ियो
फंख फड़फड़ाओ मत
उनको फुरफुराने दो
गाओ मत गीत कोई
उनको ही गाने दो
आस पास आओ मत
उनको मँडराने दो
नीला आकाश खूब बना ठना है।
ओ चिड़ियो ओ चिड़ियो ओ चिड़ियो
आस पास एक छोटा पिंजरा बना है।
कमलेश कुमार दीवान
०८ मार्च १९९५
ओ चिड़ियो , ओ चिड़ियो
पंख फड़फड़ाओ मत
उड़ के तुम दूर कहीं जाओ मत
गाओ गुनगुनाओं मत
खिलखिला के हँसना सब दूर मना
ये पर्वत ,नदियाँ ,झील, सागर के साथ साथ
नीला आकाश खूब बना ठना है
आसपास एक छोटा पिंजरा बना है
ओ चिड़ियो ओ चिड़ियो ओ चिड़ियो
फंख फड़फड़ाओ मत
गाओ गुनगुनाओ मत
खिलखिला के हँसना सब दूर मना है।
अब कितना मुश्किल है
खोखले से बरगद पर घौसला बनाना
खतरनाक हो गया है
दूर हरे खेतों से चुग्गा ले आना
दुनका दाना पानी सब यहीं बुलाने दो
उड़ना पर तौलना सब दूर मना है।
ओ चिड़ियो ओ चिड़ियो ओ चिड़ियो
फंख फड़फड़ाओ मत
उनको फुरफुराने दो
गाओ मत गीत कोई
उनको ही गाने दो
आस पास आओ मत
उनको मँडराने दो
नीला आकाश खूब बना ठना है।
ओ चिड़ियो ओ चिड़ियो ओ चिड़ियो
आस पास एक छोटा पिंजरा बना है।
कमलेश कुमार दीवान
०८ मार्च १९९५
रविवार, 7 जून 2009
क्या करूँ मेरे मना....... गीत
suniye
क्या करूँ मेरे मना....... गीत
क्या करूँ , मै क्या करूँ मेरे मना
दिल नहीं लगता है,रहता अनमना।
ऐसा लगता,भागते रहने से
सब कुछ खो रहा है
जिंदगी के गीत गाये साथ साथ
अब खुशी के साथ भी कुछ हो रहा है।
दिल नहीं लगता है ,रहता अनमना
क्या करूँ मै क्या करूँ मेरे मना ।
ठहरना ,चलना,ठिठकना, याद रखना भूलना
शुष्क ॠतुओं मे उपजना,लहलहाना
और फलना फूलना
आए मौसम जब बहारों का
मुस्कराने ,मचलने और श्रृगारों का
भूलकर होती नहीँ है कल्पना ।
क्या करूँ मै क्या करूँ मेरे मना
दिल नहीं लगता है रहता अनमना ।
क्या अधेंरी रात का आकाश या तारा बनूँ
बादलों बरसात की एक बूँद ,जल सारा बनूँ
या कि सागर झील का मोती रहूँ
सीप में पलते हुए संसार का कारा बनूँ
पीर हरने का सहारा जन्मना.
दिल नहीं लगता है रहता अनमना ।
क्या करूँ मै क्या करूँ मेरे मना
दिल नहीं लगता है रहता अनमना ।
कमलेश कुमार दीवान
०१ मई २००६
क्या करूँ मेरे मना....... गीत
क्या करूँ , मै क्या करूँ मेरे मना
दिल नहीं लगता है,रहता अनमना।
ऐसा लगता,भागते रहने से
सब कुछ खो रहा है
जिंदगी के गीत गाये साथ साथ
अब खुशी के साथ भी कुछ हो रहा है।
दिल नहीं लगता है ,रहता अनमना
क्या करूँ मै क्या करूँ मेरे मना ।
ठहरना ,चलना,ठिठकना, याद रखना भूलना
शुष्क ॠतुओं मे उपजना,लहलहाना
और फलना फूलना
आए मौसम जब बहारों का
मुस्कराने ,मचलने और श्रृगारों का
भूलकर होती नहीँ है कल्पना ।
क्या करूँ मै क्या करूँ मेरे मना
दिल नहीं लगता है रहता अनमना ।
क्या अधेंरी रात का आकाश या तारा बनूँ
बादलों बरसात की एक बूँद ,जल सारा बनूँ
या कि सागर झील का मोती रहूँ
सीप में पलते हुए संसार का कारा बनूँ
पीर हरने का सहारा जन्मना.
दिल नहीं लगता है रहता अनमना ।
क्या करूँ मै क्या करूँ मेरे मना
दिल नहीं लगता है रहता अनमना ।
कमलेश कुमार दीवान
०१ मई २००६
बुधवार, 20 मई 2009
दरबारों मे खास हुए हैं
दरबारों मे खास हुए हैं
दरबारो मे
खास हुए हैं
आम लोग सारे ,
आम लोग सारे ।
गलियारो मे
पहरे...पहरे
जनता दरवाजो पर ठहरे ,
मुट्ठी भर जनत्तंत्र यहाँ पर
अधिनायक सारे ,।
दरबारो मे खास हुए हैं
आम लोग सारे ,।
आम लोग सारे ।
राज निरंकुश
काज निरंकुश
इनके सारे बाज निरंकुश
लोक नही
मनतंत्र यहाँ पर
गणनायक हारे ।
दरबारो मे खास हुए हैं
आम लोग सारे ।
आम लोग सारे।
ठहर गए
कानून नियम सब
खाली सब आदेश
मुफलिस की
आँखों मे आँसू
हरकारे दरवेश,
ऊँच..नीच के भेद वही हैं
काले वही ,सफेद वही है
स्वेच्छाचारी और अनिवारक
मणिबाहक सारे।
दरबारो मे खास हुए है्
आम लोग सारे ।
आम लोग सारे ।
कमलेश कुमार दीवान
मई १९९३
दरबारो मे
खास हुए हैं
आम लोग सारे ,
आम लोग सारे ।
गलियारो मे
पहरे...पहरे
जनता दरवाजो पर ठहरे ,
मुट्ठी भर जनत्तंत्र यहाँ पर
अधिनायक सारे ,।
दरबारो मे खास हुए हैं
आम लोग सारे ,।
आम लोग सारे ।
राज निरंकुश
काज निरंकुश
इनके सारे बाज निरंकुश
लोक नही
मनतंत्र यहाँ पर
गणनायक हारे ।
दरबारो मे खास हुए हैं
आम लोग सारे ।
आम लोग सारे।
ठहर गए
कानून नियम सब
खाली सब आदेश
मुफलिस की
आँखों मे आँसू
हरकारे दरवेश,
ऊँच..नीच के भेद वही हैं
काले वही ,सफेद वही है
स्वेच्छाचारी और अनिवारक
मणिबाहक सारे।
दरबारो मे खास हुए है्
आम लोग सारे ।
आम लोग सारे ।
कमलेश कुमार दीवान
मई १९९३
मंगलवार, 5 मई 2009
आज गाने,गुनगुनाने का,नहीं मौसम...
suniye
नहीं मौसम...
आज गाने,गुनगुनाने का,
नहीं मौसम
नाते रिश्ते आजमाने का ,
नहीं मौसम
घर बनाने और बसाने का,
समय है
उनको ढेलो से ढहानें का,
नहीं मौसम
आज गाने गुनगुनाने का
नही मौसम ।
मेरे तेरे,इसके उसके
फेर मे हम सब पड़े है
कुछ लकीरे खींचकर एक
चौखटे मे सब जड़े हैं
कायदा है समय से
सब कुछ भुनाने का
आज अपने दिल जलाने का
नहीं मौसम ।
आज गाने गुनगुनाने का
नहीं मौसम ।
एक मकसद,एकमँजिल,
एक ही राहें हमारी
क्रातियाँ ,जेहाद्द से दूने हुये दुःख
फिर कटी बाहें हमारी
जलजलों ,बीमारियों का कहर
बरपा है,
गुम हुई हैं बेटियाँ जब शहर
तड़फा है
यातनायें,मौत पर दो चार आँसू
और फिर मातम,मनाने का
नहीं मौसम ।
आज गाने गुनगुनाने का
नहीं मौसम ।
दूर हो जाये गरीबी जब
जलजलों के कहर
सालेंगें नहीं
गोलियाँ ,बारूद बम और एटम का
क्या करेगें युध्द
पालेंगे नहीं
दरकते,और टूटते रिश्तों के पुल
बनानें का समय है
सरहदों को खून की
नदियाँ बनाने का
नहीं मौसम ।
आज गाने गुनगुनाने का
नहीं मौसम ।
कमलेश कुमार दीवान
८ जून १९९४
नहीं मौसम...
आज गाने,गुनगुनाने का,
नहीं मौसम
नाते रिश्ते आजमाने का ,
नहीं मौसम
घर बनाने और बसाने का,
समय है
उनको ढेलो से ढहानें का,
नहीं मौसम
आज गाने गुनगुनाने का
नही मौसम ।
मेरे तेरे,इसके उसके
फेर मे हम सब पड़े है
कुछ लकीरे खींचकर एक
चौखटे मे सब जड़े हैं
कायदा है समय से
सब कुछ भुनाने का
आज अपने दिल जलाने का
नहीं मौसम ।
आज गाने गुनगुनाने का
नहीं मौसम ।
एक मकसद,एकमँजिल,
एक ही राहें हमारी
क्रातियाँ ,जेहाद्द से दूने हुये दुःख
फिर कटी बाहें हमारी
जलजलों ,बीमारियों का कहर
बरपा है,
गुम हुई हैं बेटियाँ जब शहर
तड़फा है
यातनायें,मौत पर दो चार आँसू
और फिर मातम,मनाने का
नहीं मौसम ।
आज गाने गुनगुनाने का
नहीं मौसम ।
दूर हो जाये गरीबी जब
जलजलों के कहर
सालेंगें नहीं
गोलियाँ ,बारूद बम और एटम का
क्या करेगें युध्द
पालेंगे नहीं
दरकते,और टूटते रिश्तों के पुल
बनानें का समय है
सरहदों को खून की
नदियाँ बनाने का
नहीं मौसम ।
आज गाने गुनगुनाने का
नहीं मौसम ।
कमलेश कुमार दीवान
८ जून १९९४
सोमवार, 4 मई 2009
आशाओं के सृजन का गीत ...." ओ सूरज "
suniye
आशाओं के सृजन का गीत
ओ सूरज
ओ सूरज तुम हटो ,मुझे भी
आसमान मे आना है
पँख लगा उड़ जाना है ।
पँख लगा उड़ जाना है ।
चाहे अँधियारे घिर आएँ
सिर फोड़े तूफान
मेरी राह नहीं आयेगें
नदियों के उँचे ऊफान
ओ चँदा तुम किरन बिखेरों
तारों मे छिप जाना है ।
पँख लगा उड़ जाना है।
ओ सूरज तुम हटो, मुझे भी
आसमान मे आना है
पँख लगा उड़ जाना है ।
कमलेश कुमार दीवान
आशाओं के सृजन का गीत
ओ सूरज
ओ सूरज तुम हटो ,मुझे भी
आसमान मे आना है
पँख लगा उड़ जाना है ।
पँख लगा उड़ जाना है ।
चाहे अँधियारे घिर आएँ
सिर फोड़े तूफान
मेरी राह नहीं आयेगें
नदियों के उँचे ऊफान
ओ चँदा तुम किरन बिखेरों
तारों मे छिप जाना है ।
पँख लगा उड़ जाना है।
ओ सूरज तुम हटो, मुझे भी
आसमान मे आना है
पँख लगा उड़ जाना है ।
कमलेश कुमार दीवान
शनिवार, 2 मई 2009
छूने को आकाश बहुत
छूने को आकाश बहुत
छूने को आकाश,
बहुत मन करता है
जाने कब ये हाथ और उँचे होंगें।
घुटनो चलते तारों को पाने मे रोया
चाँद पकड़ पाने की ,जिद करते..करते सोया
आज लगा यह सूरज ,
देखो सब कुछ हाँक रहा
अँधियारे को इस दुनिया से
कैसे ढाक रहा
सब कुछ खत्म हो पर दुनिया मे
बची रहें आशाएँ
जाने कब विश्वास और दूने होगें।
छूने को आकाश बहुत
मन करता है
जाने कब ये हाथ और उँचे होगें।
कमलेश कुमार दीवान
छूने को आकाश,
बहुत मन करता है
जाने कब ये हाथ और उँचे होंगें।
घुटनो चलते तारों को पाने मे रोया
चाँद पकड़ पाने की ,जिद करते..करते सोया
आज लगा यह सूरज ,
देखो सब कुछ हाँक रहा
अँधियारे को इस दुनिया से
कैसे ढाक रहा
सब कुछ खत्म हो पर दुनिया मे
बची रहें आशाएँ
जाने कब विश्वास और दूने होगें।
छूने को आकाश बहुत
मन करता है
जाने कब ये हाथ और उँचे होगें।
कमलेश कुमार दीवान
गुरुवार, 23 अप्रैल 2009
कल क्या हो ?
suniye
पृथ्वी दिवस केअवसर पर गीत
कल क्या हो ?
कोई मुझसे पूछे ,
कल क्या हो ?
मैं कहता ,यह संसार रहे ।
हम रहें ,न रहें
फिर भी तो
घूमेगी दुनियाँ इसी तरह।
चमकेगा आसमान सारा
नदियाँ उमड़ेगी उसी तरह।
ये सात समुंदर, बचे रहें
को व्दीप न डूबें
सागर में,
सब कुछ बिगड़े
पर थोड़ा सा
जल बचा रहे
इस घाघर मे।
सब कुछ तो
खत्म नहीं होता
जो बचा आपसी प्यार रहे
कोई मुझसे पूछे
कल क्या हो
मे कहता हूँ ,संसार रहे ।
कमलेश कुमार दीवान
नोटःःप्राकृतिक पर्यावरण के केन्द्र मे मानव है।जलवायु परिवर्तनशील तत्वो का
समुच्य है।परिवर्तन होते रहें हैं और होंगें,परन्तु हमे आशाओं का सृजन
करना चाहिये।संसार की आबादियो को यह गीत सादर समर्पित है।
पृथ्वी दिवस केअवसर पर गीत
कल क्या हो ?
कोई मुझसे पूछे ,
कल क्या हो ?
मैं कहता ,यह संसार रहे ।
हम रहें ,न रहें
फिर भी तो
घूमेगी दुनियाँ इसी तरह।
चमकेगा आसमान सारा
नदियाँ उमड़ेगी उसी तरह।
ये सात समुंदर, बचे रहें
को व्दीप न डूबें
सागर में,
सब कुछ बिगड़े
पर थोड़ा सा
जल बचा रहे
इस घाघर मे।
सब कुछ तो
खत्म नहीं होता
जो बचा आपसी प्यार रहे
कोई मुझसे पूछे
कल क्या हो
मे कहता हूँ ,संसार रहे ।
कमलेश कुमार दीवान
नोटःःप्राकृतिक पर्यावरण के केन्द्र मे मानव है।जलवायु परिवर्तनशील तत्वो का
समुच्य है।परिवर्तन होते रहें हैं और होंगें,परन्तु हमे आशाओं का सृजन
करना चाहिये।संसार की आबादियो को यह गीत सादर समर्पित है।
मंगलवार, 21 अप्रैल 2009
गगन मै
गगन मै
गगन मै
उड़ते बिहग अनेक।
गगन मे उड़ते ,बिहग अनेक ।
कोई अकेला
कोई सखा सँग
कोई..कोई विशेष ।
गगन में,उड़ते बिहग अनेक ।
कमलेश कुमार दीवान
गगन मै
उड़ते बिहग अनेक।
गगन मे उड़ते ,बिहग अनेक ।
कोई अकेला
कोई सखा सँग
कोई..कोई विशेष ।
गगन में,उड़ते बिहग अनेक ।
कमलेश कुमार दीवान
सोमवार, 20 अप्रैल 2009
ओ पंछी उड़ जा रे
suniye
ओ पंछी उड़ जा रे
ओ पंछी उड़ जा रे
साँझ हो रही है
डेरों के पास आयेगा न बहेलियाँ ।
छुई मुई से पँख तेरे
सारा आकाश
दूर ऊँचे पर्वत और बादलों के पास
आज घनें पैड़ नहीं
न छप्पर...छानी
पानी के खप्पर मे
न होती दानी
घोंसलें के तिनकों की,तान खो गयी है
डेरों के पास आयेगा न बहेलियाँ ।
बरगद की खोहो मे
प्राण नहीं हैं
बूढे रखवारे मे
जान नहीं हैं
रात के बसेरों पर
बिजली के सूरज हैं
दाना..पानी मे ईमान नही है
चारे चुन चुनकर
घोंसले बनाये जो
आज वही ,कमरों की शान हो गई हैं
ओ पँछी उड़ जा रे
साँझ हो गई है
डेरों के पास आयेगा न बहेलियाँ ।
कमलेश कुमार दीवान
ओ पंछी उड़ जा रे
ओ पंछी उड़ जा रे
साँझ हो रही है
डेरों के पास आयेगा न बहेलियाँ ।
छुई मुई से पँख तेरे
सारा आकाश
दूर ऊँचे पर्वत और बादलों के पास
आज घनें पैड़ नहीं
न छप्पर...छानी
पानी के खप्पर मे
न होती दानी
घोंसलें के तिनकों की,तान खो गयी है
डेरों के पास आयेगा न बहेलियाँ ।
बरगद की खोहो मे
प्राण नहीं हैं
बूढे रखवारे मे
जान नहीं हैं
रात के बसेरों पर
बिजली के सूरज हैं
दाना..पानी मे ईमान नही है
चारे चुन चुनकर
घोंसले बनाये जो
आज वही ,कमरों की शान हो गई हैं
ओ पँछी उड़ जा रे
साँझ हो गई है
डेरों के पास आयेगा न बहेलियाँ ।
कमलेश कुमार दीवान
मंगलवार, 14 अप्रैल 2009
अकेले मन का गीत
suniye
अकेले मन का गीत
ओ अकेले मन ,
तुझे चलना पड़ेगा
कारबाँ मे ,कारबाँ मे,कारबाँ मे ।
बहुत झगड़े हैं ,झमेले हैं
ठहरकर आबाद रहने मे
सब तरफ से उगलियाँ उठती
भीड़ मे अपबाद रहने से
बात को बर्दाश्त करने का
समय अब चुक गया है
श्वाँस की उष्माएँ सहने का भी
मौसम रुक गया है
पर रुका न सिलसिला ,दुनियावी मेलो का
ओ अकेले तन
तुझे चलना पड़ेगा
कारबाँ मे, कारबाँ ,मे कारबाँ मे ।
मान्यतायें अनगिनत
अपनी जमातों मे
बाँटकर देखा
शहर और गाँव ,जातों मे
सोचते षड़यंत्र करते
दें किसी को मात
मेल इतना सा और
अनबन ढेर नातों मे
हाथ मे झँडें हैं खँजर हैं
पर न बदला रूप भी,मिट्टी के ढेलों का
ओ अकेले कण तुझे
मिलना पड़ेगा
कारबाँ मे,कारबाँ मे,कारबाँ मे।
ओ अकेले मन
तुझे चलना पड़ेगा
कारबाँ मे, कारबाँ मे, कारबाँ मे ।
कमलेश कुमार दीवान
अकेले मन का गीत
ओ अकेले मन ,
तुझे चलना पड़ेगा
कारबाँ मे ,कारबाँ मे,कारबाँ मे ।
बहुत झगड़े हैं ,झमेले हैं
ठहरकर आबाद रहने मे
सब तरफ से उगलियाँ उठती
भीड़ मे अपबाद रहने से
बात को बर्दाश्त करने का
समय अब चुक गया है
श्वाँस की उष्माएँ सहने का भी
मौसम रुक गया है
पर रुका न सिलसिला ,दुनियावी मेलो का
ओ अकेले तन
तुझे चलना पड़ेगा
कारबाँ मे, कारबाँ ,मे कारबाँ मे ।
मान्यतायें अनगिनत
अपनी जमातों मे
बाँटकर देखा
शहर और गाँव ,जातों मे
सोचते षड़यंत्र करते
दें किसी को मात
मेल इतना सा और
अनबन ढेर नातों मे
हाथ मे झँडें हैं खँजर हैं
पर न बदला रूप भी,मिट्टी के ढेलों का
ओ अकेले कण तुझे
मिलना पड़ेगा
कारबाँ मे,कारबाँ मे,कारबाँ मे।
ओ अकेले मन
तुझे चलना पड़ेगा
कारबाँ मे, कारबाँ मे, कारबाँ मे ।
कमलेश कुमार दीवान
मंगलवार, 7 अप्रैल 2009
आजादी की याद मे एक गीत
आजादी की याद मे एक गीत
उन सपनो को ,कौन गिनाएँ
जो बारी से छूठ गये
ऐसा लगता कोई देवता
इन अपनो से रूठ गये।
होना दूर गरीबी को था
पर विलासता बढती क्यो
परिवर्तन की चाह मे निकली
राह सियासी लगती क्यों?
पसरा रहता घोर अँधेरा
इन बिजली के तारों से
जान न पाए पीढाओं को
बाते चाँद सितारों से।
उन अपनों को कौन मनाएँ
जो यारी से छूठ गये
ऐसा लगता कोई देवता
इन अपनो से रूठ गये ।
हमलो के बढते खतरों में
लोग अकेले रहते हैं
बीहड में डाकू, राहों पर
कई लुटेरें रहतें हैं
गजब हुए हैं दिल्ली बाले
गबई गाँव सब छूट गये।
ऐसा लगता कोई देवता
इन अपनो से रूठ गये।
कमलेश कुमार दीवान
११ जनवरी १९९८
उन सपनो को ,कौन गिनाएँ
जो बारी से छूठ गये
ऐसा लगता कोई देवता
इन अपनो से रूठ गये।
होना दूर गरीबी को था
पर विलासता बढती क्यो
परिवर्तन की चाह मे निकली
राह सियासी लगती क्यों?
पसरा रहता घोर अँधेरा
इन बिजली के तारों से
जान न पाए पीढाओं को
बाते चाँद सितारों से।
उन अपनों को कौन मनाएँ
जो यारी से छूठ गये
ऐसा लगता कोई देवता
इन अपनो से रूठ गये ।
हमलो के बढते खतरों में
लोग अकेले रहते हैं
बीहड में डाकू, राहों पर
कई लुटेरें रहतें हैं
गजब हुए हैं दिल्ली बाले
गबई गाँव सब छूट गये।
ऐसा लगता कोई देवता
इन अपनो से रूठ गये।
कमलेश कुमार दीवान
११ जनवरी १९९८
अब अंधकार भी जाने कितने
suniye
अब अंधकार भी जाने कितने
अब अंधकार भी
जाने कितने स्हाय घने होंगे,
पथ धूल धूसरित और दिशाएँ
हुई नयन से ओझल ।
हम ढूँढ रहे हैं क्यों
अनंत के छोर
दुख के प्रहार अब
द्रवित नहीं करते हैँ ।
नित नई वेदनाओं
के प्रवाह मे लोग
सूखे अँतस से
क्रमिक नहीं झरते हैं ।
दिल के सुराख भी
जाने कितनें और बड़े होंगें ।
पथ धूल धूसरित और दिशाएँ
हुई नयन से ओझल
अब अँधकार भी जाने कितने
स्हाय घने होंगें ।
टुकड़ों टुकड़ों मे बटे हुये
कैसे एक देश बनाएँगें
सूखीं बगियाँ ,मरते माली
कैसे एक फूल उगायेंगें
धन लुटा,अस्मिता नग्न हुई
नोंचे जाते पथ पर सुहाग
बसते संसार भी
जानै कितनें उजड़ गये होगें
अब अँधकार भी जाने कितने
स्हाय घने होंगें
पथ धूल धूसरित और दिशाएँ
हुई नयन से ओझल ।
कमलेश कुमार दीवान
अब अंधकार भी जाने कितने
अब अंधकार भी
जाने कितने स्हाय घने होंगे,
पथ धूल धूसरित और दिशाएँ
हुई नयन से ओझल ।
हम ढूँढ रहे हैं क्यों
अनंत के छोर
दुख के प्रहार अब
द्रवित नहीं करते हैँ ।
नित नई वेदनाओं
के प्रवाह मे लोग
सूखे अँतस से
क्रमिक नहीं झरते हैं ।
दिल के सुराख भी
जाने कितनें और बड़े होंगें ।
पथ धूल धूसरित और दिशाएँ
हुई नयन से ओझल
अब अँधकार भी जाने कितने
स्हाय घने होंगें ।
टुकड़ों टुकड़ों मे बटे हुये
कैसे एक देश बनाएँगें
सूखीं बगियाँ ,मरते माली
कैसे एक फूल उगायेंगें
धन लुटा,अस्मिता नग्न हुई
नोंचे जाते पथ पर सुहाग
बसते संसार भी
जानै कितनें उजड़ गये होगें
अब अँधकार भी जाने कितने
स्हाय घने होंगें
पथ धूल धूसरित और दिशाएँ
हुई नयन से ओझल ।
कमलेश कुमार दीवान
सोमवार, 30 मार्च 2009
कविताओं के संदर्भ मे एक कविता
कविताओं के संदर्भ मे एक कविता
कविताएँ ज्यादा कहती है्
वे अर्थ और जीवन के बीच
नदी सी बहती है्।
कविताएँ ज्यादा कहती है।
वे राग रँग
सच और प्रसंग की धार बनाती है
आनंद और उत्सर्ग सहित
जन जन से आती है
वे पीड़ाओं की एक
सदी सी सहती हैं ।
कविताएँ ज्यादा कहती हैं।
कमलेश कुमार दीवान
२५ मार्च १९०६
कविताएँ ज्यादा कहती है्
वे अर्थ और जीवन के बीच
नदी सी बहती है्।
कविताएँ ज्यादा कहती है।
वे राग रँग
सच और प्रसंग की धार बनाती है
आनंद और उत्सर्ग सहित
जन जन से आती है
वे पीड़ाओं की एक
सदी सी सहती हैं ।
कविताएँ ज्यादा कहती हैं।
कमलेश कुमार दीवान
२५ मार्च १९०६
शुक्रवार, 27 मार्च 2009
नव संवत् शुभ..फलदायक हों
॥ ॐ श्री गणेशाय नमः ॥
भारतवर्ष के नव संवत् विक्रम संवत् २०६६
गुड़ी पड़वा चैत्र शुक्ल प्रथम के पावन पर्व पर
शुभमंगलकामनाएँ है। देशवाशियों को यह गीत
सादर समर्पित है......
नव संवत् शुभ..फलदायक हों
नव संवत् शुभ..फलदायक हों।
ग्रह नछत्र
काल गणनाएँ
मानवता को सफल बनाएँ
नव मत..सम्मति बरदायक हो।
नव संवत् शुभ...फलदायक हो।
जीवन के संघर्ष
सरल हों
आपस के संबंध
सहज हों
नया भोर यह,नया दौर है
विपत्ति निबारक सुखदायक हो।
नव संवत् शुभ...फलदायक हो ।
नव संवत् शुभ...फलदायक हो ।
कमलेश कुमार दीवान
चैत्र शुक्ल एकम् संवत् २०६६
भारतवर्ष के नव संवत् विक्रम संवत् २०६६
गुड़ी पड़वा चैत्र शुक्ल प्रथम के पावन पर्व पर
शुभमंगलकामनाएँ है। देशवाशियों को यह गीत
सादर समर्पित है......
नव संवत् शुभ..फलदायक हों
नव संवत् शुभ..फलदायक हों।
ग्रह नछत्र
काल गणनाएँ
मानवता को सफल बनाएँ
नव मत..सम्मति बरदायक हो।
नव संवत् शुभ...फलदायक हो।
जीवन के संघर्ष
सरल हों
आपस के संबंध
सहज हों
नया भोर यह,नया दौर है
विपत्ति निबारक सुखदायक हो।
नव संवत् शुभ...फलदायक हो ।
नव संवत् शुभ...फलदायक हो ।
कमलेश कुमार दीवान
चैत्र शुक्ल एकम् संवत् २०६६
गुरुवार, 26 मार्च 2009
भारतीय नव वर्ष पर शुभकामनाएँ
भारतीय नव वर्ष पर शुभकामनाएँ
विक्रम संवत २०६६
नया वर्ष शुभ हो ।
नया वर्ष हो, नये हर्ष हों
हो नई खुशी, नवोत्कर्ष हों ।
नया वर्ष शुभ हो ।
नई सुबह हो,नयी शाम हो
नई मजिंलें,नए मुकाम हो
नए लक्छय हों ,नए हौसले
हो नई दिशा, नए काफिले
नए चाँद तारे ..ओ आफताव
नई दृष्टियाँ ,नयी हो किताब
नये मिजाज हो, नये ख्वाब हों
नई हो नदी... नयी नाव हो
नये वास्ते नए हैं सफर
नये अर्थ जिनकी तलाश हो
नई भोर की सौगात हो .
नया वर्ष शुभ हो ।
कमलेश कुमार दीवान
विक्रम संवत २०६६
नया वर्ष शुभ हो ।
नया वर्ष हो, नये हर्ष हों
हो नई खुशी, नवोत्कर्ष हों ।
नया वर्ष शुभ हो ।
नई सुबह हो,नयी शाम हो
नई मजिंलें,नए मुकाम हो
नए लक्छय हों ,नए हौसले
हो नई दिशा, नए काफिले
नए चाँद तारे ..ओ आफताव
नई दृष्टियाँ ,नयी हो किताब
नये मिजाज हो, नये ख्वाब हों
नई हो नदी... नयी नाव हो
नये वास्ते नए हैं सफर
नये अर्थ जिनकी तलाश हो
नई भोर की सौगात हो .
नया वर्ष शुभ हो ।
कमलेश कुमार दीवान
मंगलवार, 24 मार्च 2009
यह सब संसार विकल है .....भजन गीत
सुनिये
http://in.geocities.com/kamleshkumardiwan/yahsavsansarbhajhan.wav
यह सब संसार विकल है .....भजन गीत
यह सब संसार विकल है।
गिरते आँसू कोइ देख न ले
वह छिपा रहा केवल है।
कोई सुख मे डूबा जाता है
कोई दुख मे तैर नही् पाता
कोई पानी पानी नदियों सा
कोई हिम सा ठहरा रह जाता
कोई शांत और अविचल है।
यह सब संसार विकल है।
कमलेश कुमार दीवान
मन कछु सुमरत नाहीं ....भजन गीत
suniye
मन कछु सुमरत नाहीं ....भजन गीत
हे हरि,मन कछु सुमरत नाहीं।
हे हरि ,मन कछु सुमरत नाहीं।
का करिहें जग जपत बुढ़ाया
मोह माया का फेर बढ़ाया
जे असार संसार भँवर है
कहीं किनारा नाहीं।
हे हरि ,मन कछु सुमरत नाहीं।
पी॔त पाण पण पेम पराए
राग देव्श अपनों से
बहुरि भेद नहिं मिते रे मनुज के
साँच कहुँ सपने से
करनीं के फल किते मिलत है
पावो जुगत भिडाई
हे हरि, मन कछु सुमरअत नाहीं ।
कमलेश कुमार दीवान
नोटः यह भजन गीत ईश्वर की आराघना मे लिखा है, उन्हे सादर समर्पित है।
मन कछु सुमरत नाहीं ....भजन गीत
हे हरि,मन कछु सुमरत नाहीं।
हे हरि ,मन कछु सुमरत नाहीं।
का करिहें जग जपत बुढ़ाया
मोह माया का फेर बढ़ाया
जे असार संसार भँवर है
कहीं किनारा नाहीं।
हे हरि ,मन कछु सुमरत नाहीं।
पी॔त पाण पण पेम पराए
राग देव्श अपनों से
बहुरि भेद नहिं मिते रे मनुज के
साँच कहुँ सपने से
करनीं के फल किते मिलत है
पावो जुगत भिडाई
हे हरि, मन कछु सुमरअत नाहीं ।
कमलेश कुमार दीवान
नोटः यह भजन गीत ईश्वर की आराघना मे लिखा है, उन्हे सादर समर्पित है।
शुक्रवार, 20 मार्च 2009
उगलियाँ ही उगलियौं मे गढ़ रही हैं
उगलियाँ ही उगलियौं मे गढ़ रही हैं
ऐसा क्यों?
जो लताएँ आज तक
चढ़ती थी ऊचे पेड पर
हर हरा कर टूटते
गहरे कुएँ में गिर रहीं हैं
ऐसा क्यों?
मान्यताएँ फिर हुई बूढ़ी
अन्ध विश्वासों ने बनाएँ घर
अब न मौसम बन बरसतें हैं
स्याह बादल से भयावह डर
एड़ियों पर चोटियों से जो टपकती थी कभी
बूँद श्रम की नम नयन से झर रही है
ऐसा क्यों ?
लोग कहते हैं विवशता से
दोष सारे हैं व्वस्था के
नहीं बदला रूख हवाओं ने
गर्म मौसम की अवस्था से
फिर न दोहराओ सवालो को
आग हो जाते हैं रखवारे
पीढ़ियाँ ही पीढ़ियों से चिड रही हैं
ऐसा क्यों ?
विग्य बनते हैं बहुत सारे
व्यापते हैं जब भी अंधियारे
इस लड़ाई का नहीं मकसद
हो गये हैं आज सब न्यारे
कौम, वर्ग, विकल्प और विभीषकाएँ क्या
हर नये सिध्दांत की बाते वही है
खोखली दिक् चेतना से हर शिराएँ थक गई है
ऐसा क्यों ?
कमलेश कुमार दीवान
६ जनवरी १९८८
ऐसा क्यों?
जो लताएँ आज तक
चढ़ती थी ऊचे पेड पर
हर हरा कर टूटते
गहरे कुएँ में गिर रहीं हैं
ऐसा क्यों?
मान्यताएँ फिर हुई बूढ़ी
अन्ध विश्वासों ने बनाएँ घर
अब न मौसम बन बरसतें हैं
स्याह बादल से भयावह डर
एड़ियों पर चोटियों से जो टपकती थी कभी
बूँद श्रम की नम नयन से झर रही है
ऐसा क्यों ?
लोग कहते हैं विवशता से
दोष सारे हैं व्वस्था के
नहीं बदला रूख हवाओं ने
गर्म मौसम की अवस्था से
फिर न दोहराओ सवालो को
आग हो जाते हैं रखवारे
पीढ़ियाँ ही पीढ़ियों से चिड रही हैं
ऐसा क्यों ?
विग्य बनते हैं बहुत सारे
व्यापते हैं जब भी अंधियारे
इस लड़ाई का नहीं मकसद
हो गये हैं आज सब न्यारे
कौम, वर्ग, विकल्प और विभीषकाएँ क्या
हर नये सिध्दांत की बाते वही है
खोखली दिक् चेतना से हर शिराएँ थक गई है
ऐसा क्यों ?
कमलेश कुमार दीवान
६ जनवरी १९८८
साथ चलो, पर दोडो मत
पाश्चात्य संगीत के लिये एक गीत
suniye
साथ चलो, पर दोडो मत
साथ चलो, पर दोडो मत
गिर जाओगे ।,
हाथ से हाथ,छोडो मत
गिर जाओगे।
रेत घरों के ढ़हने से
आसूँ तो बहते हैं
सुख..दुःख ,हँसी ..खुशी दो पहलू
एक साथ सब सहते हैं।
लोग कहानी उनकी कहते
जो उनको भी भाते हैं
दूर रहा न जाये उनसे
जो सपनों में आते हैं।
चलती हुई हवाओं के तुम
साथ बहो पर मोडो मत।
साथ चलो ,पर दोडो मत
गिर जाओगे,
हाथ से हाथ,छोडो मत
गिर जाओगे।
कमलेश कुमार दीवान
१०अक्तुबर १९९६
नोटः यह गीत युवाओं के लिये लिखा है ,एक समूची पीढ़ी को आदर के साथ समर्पित है।
suniye
साथ चलो, पर दोडो मत
साथ चलो, पर दोडो मत
गिर जाओगे ।,
हाथ से हाथ,छोडो मत
गिर जाओगे।
रेत घरों के ढ़हने से
आसूँ तो बहते हैं
सुख..दुःख ,हँसी ..खुशी दो पहलू
एक साथ सब सहते हैं।
लोग कहानी उनकी कहते
जो उनको भी भाते हैं
दूर रहा न जाये उनसे
जो सपनों में आते हैं।
चलती हुई हवाओं के तुम
साथ बहो पर मोडो मत।
साथ चलो ,पर दोडो मत
गिर जाओगे,
हाथ से हाथ,छोडो मत
गिर जाओगे।
कमलेश कुमार दीवान
१०अक्तुबर १९९६
नोटः यह गीत युवाओं के लिये लिखा है ,एक समूची पीढ़ी को आदर के साथ समर्पित है।
आजादी की याद मे एक गीत
आजादी की याद मे एक गीत
उन सपनो को ,कौन गिनाएँ
जो बारी से छूठ गये
ऐसा लगता कोई देवता
इन अपनो से रूठ गये।
होना दूर गरीबी को था
पर विलासता बढती क्यो
परिवर्तन की चाह मे निकली
राह सियासी लगती क्यों?
पसरा रहता घोर अँधेरा
इन बिजली के तारों से
जान न पाए पीढाओं को
बाते चाँद सितारों से।
उन अपनों को कौन मनाएँ
जो यारी से छूठ गये
ऐसा लगता कोई देवता
इन अपनो से रूठ गये ।
हमलो के बढते खतरों में
लोग अकेले रहते हैं
बीहड में डाकू, राहों पर
कई लुटेरें रहतें हैं
गजब हुए हैं दिल्ली बाले
गबई गाँव सब छूट गये।
ऐसा लगता कोई देवता
इन अपनो से रूठ गये।
कमलेश कुमार दीवान
११ जनवरी १९९८
उन सपनो को ,कौन गिनाएँ
जो बारी से छूठ गये
ऐसा लगता कोई देवता
इन अपनो से रूठ गये।
होना दूर गरीबी को था
पर विलासता बढती क्यो
परिवर्तन की चाह मे निकली
राह सियासी लगती क्यों?
पसरा रहता घोर अँधेरा
इन बिजली के तारों से
जान न पाए पीढाओं को
बाते चाँद सितारों से।
उन अपनों को कौन मनाएँ
जो यारी से छूठ गये
ऐसा लगता कोई देवता
इन अपनो से रूठ गये ।
हमलो के बढते खतरों में
लोग अकेले रहते हैं
बीहड में डाकू, राहों पर
कई लुटेरें रहतें हैं
गजब हुए हैं दिल्ली बाले
गबई गाँव सब छूट गये।
ऐसा लगता कोई देवता
इन अपनो से रूठ गये।
कमलेश कुमार दीवान
११ जनवरी १९९८
दूर कहीं नींद उड़ी जाये रे
suniye
दूर कहीं नींद उड़ी जाये रे
आओ खत लिख दें
थम गई हवाओं को
रोके कुछ देर और
श्याम सी घटाओं को
दूर कहीं नींद उड़ी जाये रे ..।
दूर कहीं नींद उड़ी जाये रे...।
मन के है पंख ,पर बहुत छोटे
आकाशी सपनो के सामने
कद कितना बौना है, तन के र्मग छौने का
पलकों का बोझ चले नापने
आओं छत ओढ लें ,भागते समय की
दूर कहीं नींद उड़ी जाये रे...।
दूर कहीँ नींद उड़ी जाये रे...।
स्वप्नो के ढेर ,सच कहाँ होंगें
भूल चले शक संवत इतिहास को
पेरौं के नीचे जमीन कहाँ
दौड़ पड़े छूने इस ऊँचें आकाश को
तानते रहें चादर ,अनसिले कमीज की
दूर कहीं नीद उड़ी जाये रे...।
दूर कहीं नींद उड़ी जाये रे....।
आओ खत लिख दें
थम गई हवाओं को
रोके कुछ देर और
श्याम सी घटाओं को
दूर कहीं नीद उड़ी जाये रे...।
दूर कहीं नींद उड़ी जाये रे...।
कमलेश कुमार दीवान
दूर कहीं नींद उड़ी जाये रे
आओ खत लिख दें
थम गई हवाओं को
रोके कुछ देर और
श्याम सी घटाओं को
दूर कहीं नींद उड़ी जाये रे ..।
दूर कहीं नींद उड़ी जाये रे...।
मन के है पंख ,पर बहुत छोटे
आकाशी सपनो के सामने
कद कितना बौना है, तन के र्मग छौने का
पलकों का बोझ चले नापने
आओं छत ओढ लें ,भागते समय की
दूर कहीं नींद उड़ी जाये रे...।
दूर कहीँ नींद उड़ी जाये रे...।
स्वप्नो के ढेर ,सच कहाँ होंगें
भूल चले शक संवत इतिहास को
पेरौं के नीचे जमीन कहाँ
दौड़ पड़े छूने इस ऊँचें आकाश को
तानते रहें चादर ,अनसिले कमीज की
दूर कहीं नीद उड़ी जाये रे...।
दूर कहीं नींद उड़ी जाये रे....।
आओ खत लिख दें
थम गई हवाओं को
रोके कुछ देर और
श्याम सी घटाओं को
दूर कहीं नीद उड़ी जाये रे...।
दूर कहीं नींद उड़ी जाये रे...।
कमलेश कुमार दीवान
गुरुवार, 5 मार्च 2009
बुधवार, 4 मार्च 2009
LOKTANTRA OIR HAM ( geet hindi)
Nit-nai naare ,nai udghosh ,nav aakanchayen
Ho nahi saktee kabhi pooree
Ye tumse kiya chipayen.
Desh kaa itanaa bada-Kanoon hai
bhookh par jiska asar -hota nahi
mulya badale daldalo ne bhi
kranti jaise - jaljalo ka
aab asar-hoga nahi
oir nukshe aajmaye
tumse kiya chipayen.
Aargani khali -tabele bujh rahen hain
chaatiyon mai uaig aaye svapn
janglo se jal rahe hai
taankar bhee -muthiyon ko kiya karenge
Dhyaj -Pataaka yen uthane mai maregne
Taaliya bhi Iss hatheli se -nahi bajati
Dhol kaise -bajayen
Tmse kiya chipayen
posted by- kamlesh kumar diwan(savrachit geet)
Ho nahi saktee kabhi pooree
Ye tumse kiya chipayen.
Desh kaa itanaa bada-Kanoon hai
bhookh par jiska asar -hota nahi
mulya badale daldalo ne bhi
kranti jaise - jaljalo ka
aab asar-hoga nahi
oir nukshe aajmaye
tumse kiya chipayen.
Aargani khali -tabele bujh rahen hain
chaatiyon mai uaig aaye svapn
janglo se jal rahe hai
taankar bhee -muthiyon ko kiya karenge
Dhyaj -Pataaka yen uthane mai maregne
Taaliya bhi Iss hatheli se -nahi bajati
Dhol kaise -bajayen
Tmse kiya chipayen
posted by- kamlesh kumar diwan(savrachit geet)
रविवार, 22 फ़रवरी 2009
Basant Bugdht or Ham(HINDI KAVITA)vichar
mai janta hoin,Basant,
tum jaroor aaoge
har baar ke tarah
Lagbhag har taraf bich jaati hai
peeli padkar girti -udti pattiyan,
Lagbhag har taraf uthta hai dhuoan or
baado se chankar feilte hai ek gandh
jo nathuno mai samati huye dahaka jaati hai
andar tak pal rahe beehad ujaad vano ko.
Oh! basant
tum fir-fir sulgaoge,
har bar jalaoge
Lagbhag har or se bujhate huye man ko
apni aabhayen bikherte dahakte ,akele khade rahate palash
jangal mai hote huye bhi
hamare dil mai hai
jo prakiratik bugdth ke saath
foolte -falte,jharte -khirate jaate hai
dekhoin
basant aane se uadher van sahamte hai
bugdth aane se idaer man thartharaate hai
samajh nahi aata ki akhir kiyon doono
saath saath aate hai -jaate hai
mai janata huin tum doono jaroor aaoge
un sapno ko rondhne
jo usneede uavaoin kai undher mahak rahe hai.
ye mahuye kai fool,tenduye patte,
aavle,aachar or vano ki vahar
sab ki sab bugdth ho gai hai
jo katotiya lati hai nirjeev majai pitbati hai
kisi bachhe ki peeth thokane kai avsar
jaane kab kai hira gaye hai
ye NASMITE Bugdth orDHUAINLIYE Basant
fir fir aa jaate hai
note-NASMITE or DHUANLIYE bharat kai grameen anchlo mai maa ki meethi jhidkiya hai
kamlesh kumar diwan (hoshangabad M.P.)savrachit
tum jaroor aaoge
har baar ke tarah
Lagbhag har taraf bich jaati hai
peeli padkar girti -udti pattiyan,
Lagbhag har taraf uthta hai dhuoan or
baado se chankar feilte hai ek gandh
jo nathuno mai samati huye dahaka jaati hai
andar tak pal rahe beehad ujaad vano ko.
Oh! basant
tum fir-fir sulgaoge,
har bar jalaoge
Lagbhag har or se bujhate huye man ko
apni aabhayen bikherte dahakte ,akele khade rahate palash
jangal mai hote huye bhi
hamare dil mai hai
jo prakiratik bugdth ke saath
foolte -falte,jharte -khirate jaate hai
dekhoin
basant aane se uadher van sahamte hai
bugdth aane se idaer man thartharaate hai
samajh nahi aata ki akhir kiyon doono
saath saath aate hai -jaate hai
mai janata huin tum doono jaroor aaoge
un sapno ko rondhne
jo usneede uavaoin kai undher mahak rahe hai.
ye mahuye kai fool,tenduye patte,
aavle,aachar or vano ki vahar
sab ki sab bugdth ho gai hai
jo katotiya lati hai nirjeev majai pitbati hai
kisi bachhe ki peeth thokane kai avsar
jaane kab kai hira gaye hai
ye NASMITE Bugdth orDHUAINLIYE Basant
fir fir aa jaate hai
note-NASMITE or DHUANLIYE bharat kai grameen anchlo mai maa ki meethi jhidkiya hai
kamlesh kumar diwan (hoshangabad M.P.)savrachit
रविवार, 15 फ़रवरी 2009
TIRANGA GEET(svrachit)
Hari bhari dharti ho
neela aasman rahe
fahrata TIRANGA
chand taro kai saman rahe.
Tyag, soorveerta,mahanta ka mantra hai
Mera yah desh ek abhinav GANTANTRA hai
shanti-aman chain rahe khushhali chaye
bachoo ko boodo ko savko harsaye
sabke chaiharo par faili muskan rahe
laharata TIRANGA-------
kamleshkumardiwan
neela aasman rahe
fahrata TIRANGA
chand taro kai saman rahe.
Tyag, soorveerta,mahanta ka mantra hai
Mera yah desh ek abhinav GANTANTRA hai
shanti-aman chain rahe khushhali chaye
bachoo ko boodo ko savko harsaye
sabke chaiharo par faili muskan rahe
laharata TIRANGA-------
kamleshkumardiwan
शुक्रवार, 13 फ़रवरी 2009
TIRANGA GEET (savrachit)HINDI
Hari bhari dharti ho
Neela aasman rahe
Lahrata tiranga chand taro kai saman rahe.
Tyag, soorveerta,mahanta ka mantra hai
maira yah desh ek abhinav gantanra hai
shanti,aman-chain, khushhali chaye
bachoo ko boodon ko, sabko harsaye
sabke cheharo par, failee muskan rahe
Lahrata tiranga chand taroo kai saman rahe.
Neela aasman rahe
Lahrata tiranga chand taro kai saman rahe.
Tyag, soorveerta,mahanta ka mantra hai
maira yah desh ek abhinav gantanra hai
shanti,aman-chain, khushhali chaye
bachoo ko boodon ko, sabko harsaye
sabke cheharo par, failee muskan rahe
Lahrata tiranga chand taroo kai saman rahe.
सोमवार, 9 फ़रवरी 2009
koi mujhse pooche(EARTH ke liye geet)HINDI
Koi mujhse pooche kal kiya ho
mai kahata yah Sansar rahe.
Ham rahe na rahe
Fir bhi too
ghoomaigee dunia esi tarah
chamkaiga aasmaan sara
nadiyan umdaigee esi tarah.
Yai Saat Samunder vache rahe
koi deep na doobe sagar mai
sab kuch bigde par thora sa
Jal bacha rahai is gagar mai
sav kuch to khatm nahi hota
jo bachai aapse payar rahai
koi mujhse pooche kal kiya ho
mai kahata hoon SANSAR rahe
Self made geet
kamleshkumardiwan
mai kahata yah Sansar rahe.
Ham rahe na rahe
Fir bhi too
ghoomaigee dunia esi tarah
chamkaiga aasmaan sara
nadiyan umdaigee esi tarah.
Yai Saat Samunder vache rahe
koi deep na doobe sagar mai
sab kuch bigde par thora sa
Jal bacha rahai is gagar mai
sav kuch to khatm nahi hota
jo bachai aapse payar rahai
koi mujhse pooche kal kiya ho
mai kahata hoon SANSAR rahe
Self made geet
kamleshkumardiwan
गुरुवार, 5 फ़रवरी 2009
kuch nahi to (GEET )HINDI
Phardo tootkar bikhro
Patho par,rahgeero or ratho par
Shabd artho par
Shilayen vaikhabar hai.
Phardo tootkar bikhro---
vikhndit ho gaye hai-drisya,
Or samprikat sai aaghat
Totai-gire hai cshan
Laguta dho rahai pran-paat,
Katuta nai bujhyai hai
Rakhai jo deep kadho par
pukaro door tak bikhro
Dishain
Patho par,rahgeero or ratho par
Shabd artho par
Shilayen vaikhabar hai.
Phardo tootkar bikhro---
vikhndit ho gaye hai-drisya,
Or samprikat sai aaghat
Totai-gire hai cshan
Laguta dho rahai pran-paat,
Katuta nai bujhyai hai
Rakhai jo deep kadho par
pukaro door tak bikhro
Dishain
मंगलवार, 3 फ़रवरी 2009
Bhartiya Nav Varsh kai liye shubhkamna Geet(Hindi)
Naye varsh ho ,naye harsh ho
Ho nayi khushi,nav-utkarash ho.
Nayi subah ho,nayi shaam ho
Nayi manjile, naye mukam ho
Naye lakshya ho,naye hauslein
Nayi ho disha,naye kafile
Naye Chand,Tare-Aftaab
Nayi drashtiyan,nayi ho Kitaab
Nayi ho nadi, nayi navein ho
Naye vaste ,naye ho safar
Naye arth jinki talash ho
Naye khuaab,naye mizaaz ho
Naye bhor kee saugaat ho---KAMLESHKUMARDIWAN(savrachit)
Ho nayi khushi,nav-utkarash ho.
Nayi subah ho,nayi shaam ho
Nayi manjile, naye mukam ho
Naye lakshya ho,naye hauslein
Nayi ho disha,naye kafile
Naye Chand,Tare-Aftaab
Nayi drashtiyan,nayi ho Kitaab
Nayi ho nadi, nayi navein ho
Naye vaste ,naye ho safar
Naye arth jinki talash ho
Naye khuaab,naye mizaaz ho
Naye bhor kee saugaat ho---KAMLESHKUMARDIWAN(savrachit)
रविवार, 1 फ़रवरी 2009
Vasant Geet
Mujhse vasant ke geet
nahi gaaye jaate oo.. mann .
mujhse vasant ke geet
nahi gaaye jaate oo..vann
kuch der daaliyon par thehro
paati par naam likhunga
aur saathiyon ke tann mann paithunga
dhu-dhun jal rahe pahadon aur bhaye bharmaye mann
mujhe is annt ke geet nahi gaaye jaate oo.. vann
KAMLESHKUMARDIWAN(srachit)
nahi gaaye jaate oo.. mann .
mujhse vasant ke geet
nahi gaaye jaate oo..vann
kuch der daaliyon par thehro
paati par naam likhunga
aur saathiyon ke tann mann paithunga
dhu-dhun jal rahe pahadon aur bhaye bharmaye mann
mujhe is annt ke geet nahi gaaye jaate oo.. vann
KAMLESHKUMARDIWAN(srachit)
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