यह ब्लॉग खोजें
शनिवार, 28 दिसंबर 2013
सोमवार, 25 नवंबर 2013
मतदान दिवस
"लोकतंत्र मे जनता का मतदान करना महत्वपूर्ण है मेरा यह प्रेरणा गीत सादर समर्पित है "
मतदान दिवस
करो मतदान भाईयो
तजो अभिमान भाईयो
आज मतदान दिवस है
आज मतदान दिवस है ।
लोकतंत्र के इस उत्सब मे
हो सबकी भागीदारी
आजादी की यही मान्यता
हो सबकी पहरेदारी
आओ आज मनाये उत्सव
अधिकारो के शस्त्र का
रोजगार रोटी से लेकर
कोटि कोटि के वस्त्र का
लोकतंत्र के जन्मदिवस का
आज करे गुणगान साथियो
संविधान की मंशा के
अनुरूप करे मतदान साथियौ
करो मतदान भाईयो
तजो अभिमान भाईयो
आज मतदान दिवस है
आज मतदान दिवस है ।
कमलेश कुमार दीवान
25/11/2013
गुरुवार, 10 अक्टूबर 2013
। धीरे धीरे निजाम बदलेगा ।
दुनियां भर मे लोकतँत्र नेतृत्व के खराब प्रर्दशन के कारण
विश्वसनीयता की कसौटी पर है जनता बार बार सरकारे बदलती है पर
परिवर्तन नही हो पाता है .आशाओं को सृजित करना जरूरी है ,मेरी यह नज्म लोकतंत्र
के लिये सादर समर्पित है .....कमलेश कुमार दीवान
धीरे धीरे निजाम बदलेगा
धीरे धीरे निजाम बदलेगा
खास बदलेगा आम बदलेगा
होते होते तमाम बदलेगा ।
धीरे धीरे निजाम बदलेगा ।
जो कश्तियाँ फिर समुंदर की ओर आई है
जो करते रहते काफिलों की रहनुमाई है
बदल रही है फिजाएँ तो ढल रहे मौसम
उठाये रख्खो ये परचम मुकाम बदलेगा ।
धीरे धीरे पैगाम बदलेगा ।
धीरे धीरे निजाम बदलेगा ।
अभी हवाये न जाने क्या रुख ,अख्तियार करे
निकल पड़े तो कातिल उन्ही पे बार करे
खबर है दुश्मनो को बन रही है बारूदें
चलेगी गोलियाँ जो दोस्तो पे बार करे ।
बनाये रखोगे दम खम तो काम बदलेगा
धीरे धीरे निजाम बदलेगा ।
आज है कल वही नही रहता
जिन्दादिल जुल्म यूँ नही सहता
जो किया करते है बदनाम बस्तियो को सदा
जरा सा ठहरो उनका भी नाम बदलेगा ।
अमन की राह मे चलते रहो, चलते ही रहो
धीरे धीरे पयाम बदलेगा
गोया किस्सा तमाम बदलेगा ।
खास बदलेगा आम बदलेगा
होते होते तमाम बदलेगा ।
धीरे धीरे निजाम बदलेगा ।
कमलेश कुमार दीवान
विश्वसनीयता की कसौटी पर है जनता बार बार सरकारे बदलती है पर
परिवर्तन नही हो पाता है .आशाओं को सृजित करना जरूरी है ,मेरी यह नज्म लोकतंत्र
के लिये सादर समर्पित है .....कमलेश कुमार दीवान
धीरे धीरे निजाम बदलेगा
धीरे धीरे निजाम बदलेगा
खास बदलेगा आम बदलेगा
होते होते तमाम बदलेगा ।
धीरे धीरे निजाम बदलेगा ।
जो कश्तियाँ फिर समुंदर की ओर आई है
जो करते रहते काफिलों की रहनुमाई है
बदल रही है फिजाएँ तो ढल रहे मौसम
उठाये रख्खो ये परचम मुकाम बदलेगा ।
धीरे धीरे पैगाम बदलेगा ।
धीरे धीरे निजाम बदलेगा ।
अभी हवाये न जाने क्या रुख ,अख्तियार करे
निकल पड़े तो कातिल उन्ही पे बार करे
खबर है दुश्मनो को बन रही है बारूदें
चलेगी गोलियाँ जो दोस्तो पे बार करे ।
बनाये रखोगे दम खम तो काम बदलेगा
धीरे धीरे निजाम बदलेगा ।
आज है कल वही नही रहता
जिन्दादिल जुल्म यूँ नही सहता
जो किया करते है बदनाम बस्तियो को सदा
जरा सा ठहरो उनका भी नाम बदलेगा ।
अमन की राह मे चलते रहो, चलते ही रहो
धीरे धीरे पयाम बदलेगा
गोया किस्सा तमाम बदलेगा ।
खास बदलेगा आम बदलेगा
होते होते तमाम बदलेगा ।
धीरे धीरे निजाम बदलेगा ।
कमलेश कुमार दीवान
शनिवार, 24 अगस्त 2013
महासागर के आदेश...... सागर ने बादलो से कहा ( एक गीत)
महासागरो को स्वच्छ जल आपूर्ति पूर्व की तरह नही हो पाने के परिणामस्वरूप समुद्र
देवता शायद कुपित हो और बादलो को आदेश दे रहे है कि वहा वरसो जहा जल रूका रहता है
सूर्य देव भी अधिक ताप से उत्तरी गोलार्ध को जता रहे है अर्थात् आज समूचा जल थल और वायुमंडल
मौसम की उथलपुथल से प्रभावित हो रहा है अधिक बरसात अनेक देशो मे भयावह बाढ आ रही है तब कही अधिक तापमान से जनजीवन अस्तव्यस्त हो गया है ,निवेदन है कि महासागरो की और जाने वाले स्वच्छ जल की निश्चित आपूर्ति बनाये रखे ।मेरा लेख जनसत्ता मे दिनाँक23/4.1998 प्रकाशित हुआ था शीर्षक " समंदरो को भी चाहिये मीठा पानी "
इस संबंध मै यह एक गीत है .....
महासागर के आदेश
सागर ने बादलो से कहा
जाओ धरा पर
बरसा हुआ पानी जहाँ
ठहरा हुआ मिले ।
सब तार तार हो रहा है
मेरा आशियाँ
बहती हुई नदी से
नही पा रहा हूँ जल
सूरज की शिकायत है
कि उठती नही है भाप
कैसे बनाऊँ बादलो को
सोचता हर पल ।
मे तरसता रहा
एक नदी के लिये
सव ने पानी चुराया
आदमी के लिये
इसलिये चाहता जाके
बरसो वहाँ
जहाँ वर्षा हुआ पानी
ठहरा मिले ।
सागरो ने कहा
बादलों से यही
जाओ वरसो जहाँ
पानी ठहरा मिला ।
देवता शायद कुपित हो और बादलो को आदेश दे रहे है कि वहा वरसो जहा जल रूका रहता है
सूर्य देव भी अधिक ताप से उत्तरी गोलार्ध को जता रहे है अर्थात् आज समूचा जल थल और वायुमंडल
मौसम की उथलपुथल से प्रभावित हो रहा है अधिक बरसात अनेक देशो मे भयावह बाढ आ रही है तब कही अधिक तापमान से जनजीवन अस्तव्यस्त हो गया है ,निवेदन है कि महासागरो की और जाने वाले स्वच्छ जल की निश्चित आपूर्ति बनाये रखे ।मेरा लेख जनसत्ता मे दिनाँक23/4.1998 प्रकाशित हुआ था शीर्षक " समंदरो को भी चाहिये मीठा पानी "
इस संबंध मै यह एक गीत है .....
महासागर के आदेश
सागर ने बादलो से कहा
जाओ धरा पर
बरसा हुआ पानी जहाँ
ठहरा हुआ मिले ।
सब तार तार हो रहा है
मेरा आशियाँ
बहती हुई नदी से
नही पा रहा हूँ जल
सूरज की शिकायत है
कि उठती नही है भाप
कैसे बनाऊँ बादलो को
सोचता हर पल ।
मे तरसता रहा
एक नदी के लिये
सव ने पानी चुराया
आदमी के लिये
इसलिये चाहता जाके
बरसो वहाँ
जहाँ वर्षा हुआ पानी
ठहरा मिले ।
सागरो ने कहा
बादलों से यही
जाओ वरसो जहाँ
पानी ठहरा मिला ।
बुधवार, 7 अगस्त 2013
सावन गीत ... सोन चिरई आई है
सावन गीत ... अरजी है मेरी
सोन चिरई आई है
अमुआ की डार पर
सावन के झूले
कहीं और डारना ।
सोन चिरई आई है...
माई जा आँगन मे
याद तुम्हारे संग की
भैया की काका की
दादी कै जीवन की
आँऊ मे बार बार
बाते सुन ले मन की
घर की दिवारो मे
यादें है जन जन की
न हो तार तार
होले होले बुहारना
अरजी है मेरी यही
सावन के झूले
द्वार द्वार डालना
कमलेश कुमार दीवान
3/8/13
सोन चिरई आई है
अमुआ की डार पर
सावन के झूले
कहीं और डारना ।
सोन चिरई आई है...
माई जा आँगन मे
याद तुम्हारे संग की
भैया की काका की
दादी कै जीवन की
आँऊ मे बार बार
बाते सुन ले मन की
घर की दिवारो मे
यादें है जन जन की
न हो तार तार
होले होले बुहारना
अरजी है मेरी यही
सावन के झूले
द्वार द्वार डालना
कमलेश कुमार दीवान
3/8/13
रविवार, 9 जून 2013
लो आई गर्मियाँ
विछ गये हैं फूल,
सेमल के
लो आई गर्मियाँ ।
लो आई गर्मियाँ ।
सुर्ख ,कोमल,लाल पखुरियाँ
लिए रहती,
अनेकों तान छत वाली
बहुत ऊँची,
गगन छूती डालियाँ
खिल उठी हैं
हो के मतवाली।
छा गई मैदान पर,
रक्तिम छटाएँ
चलो नंगे पाँव तो,
वे गुदगुदाएँ
खदबदाती सी खड़ी
वेपीर लगती है,
खुशी के पल भरा पूरा
नीड़ लगती हैं।
ग्रीष्म भर उड़ती रहेगीं रेशे ..रेशे
जो कभी विचलित,
कभी प्रतिकूल लगती है।
विछ गयें हैं शूल,
तन...मन के
लो आई गर्मियाँ ।
विछ गये हैं फूल,
सेमल के
लो आई गर्मियाँ ।
कमलेश कुमार दीवान
१० मार्च २००८
नोटःः यह गीत ग्रीष्म ऋतु मे सेमल के पेड़ के फूलने फलने
और बीजों को लेकर उड़ते सफेद कोमल रेशों के द्श्य
परिस्थितियों पर लिखा गया है ।
अनुभूति मे नवगीत की पाठशाला मे प्रकाशित
शुक्रवार, 24 मई 2013
एक अकेला हंस
एक अकेला हंस
एक अकेला हंस
युगो से
सैर कराता रहा काग को
पर कौऔ ने
डींग हाँकना
जारी रख्खा है ।
रोज बताते
नये तरीके
ऐसे हम उडान भरते है
कभी पँख फैला देते है
और सिमट गोता भरते हैं
जब बारी आती उडान की
पीठ हँस की बैठ लिये है
करते मानसरोवर यात्रा
क्रम अब भी
जारी रख्खा है ।
एक अकेला हंस...
कमलेश कुमार दीवान
२२।०५।१३
गुरुवार, 11 अप्रैल 2013
नव वर्ष गीत आओ नव वर्ष
नव वर्ष गीत
आओ नव वर्ष
हम करे बँदन।
खुश हो सब
सुखी रहें
हो अभिनंदन ।।
आओ नव वर्ष....
काल की कृपा होगी
सारे सुख पायेगें
पीकर हम हालाहल
अमृत बरसायेगें ।
धरती गुड़..धानी दे
पर्वतों पर पेड़ रहें
रेलो मे सड़को पर
हम सबकी खेर रहें।
माँग मे सिंदूर रहे
भाल पर तिलक चंदन
आओ नव वर्ष
हम करे बँदन ।
नूतन वर्ष मंगलमय हो ।शुभकामनाओ सहित..
कमलेश कुमार दीवान
होशंगाबाद म.प्र.
kamleshkumardiwan.youtube.com
॥ ॐ श्री गणेशाय नमः ॥
भारतवर्ष के नव संवत् विक्रम संवत् २०७०
गुड़ी पड़वा चैत्र शुक्ल प्रथम के पावन पर्व पर
शुभमंगलकामनाएँ है। देशवाशियों को यह गीत
सादर समर्पित है......
नव संवत् शुभ..फलदायक हों
नव संवत् शुभ..फलदायक हों।
ग्रह नक्षत्र
काल गणनाएँ
मानवता को सफल बनाएँ
नव मत..सम्मति वरदायक हो।
नव संवत् शुभ...फलदायक हो।
जीवन के संघर्ष
सरल हों
आपस के संबंध
सहज हों
नया भोर यह,नया दौर है
विपत्ति निबारक सुखदायक हो।
नव संवत् शुभ...फलदायक हो ।
नव संवत् शुभ...फलदायक हो ।
कमलेश कुमार दीवान
चैत्र शुक्ल एकम् संवत् २०७०
बुधवार, 27 मार्च 2013
होली के रंग
होली के रंग
होली के रंग छाँयेगे
कोई न हो उदास ।
मौसम ही सब समायेगे
कोई न हो उदास ।
नदियाँ ही रँग लाई हैं
तितली के पँखों से
ध्वनियाँ मधुर सुनाई दें
पूजा के शँखो से
पँछी भी चहचहायेगे
आ जाये आस पास ।
होली के रँग छायेगे
कोई न हो उदास ।
पुरवाईयो ने बाग बाग
पात झराये
बागो से उड़ी खुशबूओं ने
भँबरे बुलाये
अमिया हुई सुनहरी
मौसम का है अंदाज ।
बोली के ढँग आयेगें
कोई न हो उदास ।
होली के रँग छाँयेगे
कोई न हो उदास ।
कमलेश कुमार दीवान
26/02/10
सदस्यता लें
संदेश (Atom)